वाहन क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर आई मंदी की वजह से पूरे भारत में फोर्जिंग (ढलाई) उद्योग के 50,000 लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं।
अपने इस दर्द को सरकार तक पहुंचाने और आवश्यक मदद के लिए देश की 161 फोर्जिंग इकाइयों ने पुणे, चेन्नई और लुधियाना में हस्ताक्षर अभियान चलाया।
पिछले 4-5 महीने से फोर्जिंग उद्योग वैश्विक मंदी का असर महसूस कर रहा है। इस उद्योग के मुनाफे में पहले तो महंगाई की वजह से कमी आई और रही सही कसर मांग में आई कमी ने निकाल दी।
एसोसिएशन ऑफ फोर्जिंग इंडस्ट्री (एआईएफआई) के सदस्य उन सरकारी नीतियों का विरोध कर रहे हैं जिसका नकारात्मक असर छोटी और मझोली फोर्जिंग इकाइयों पर पड़ रहा है। भारत में तकरीबन 7,000 लघु और मझोली फोर्जिंग इकाइयां हैं। इसमें से भी ज्यादातर पुणे, चेन्नई और लुधियाना में ही हैं।
इस क्षेत्र में अलग-अलग स्तर पर तकरीबन 2 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इस उद्योग का सालाना राजस्व तकरीबन 47 करोड़ डॉलर है। हालांकि मंदी की वजह से इस उद्योग में बड़ी संख्या में छंटनी हुई है। साथ ही 5 इकाइयां तो स्थाई तौर पर बंद भी हो गई हैं।
पश्चिम भारत में एआईएफआई के प्रमुख ए.के. कपूर कहते हैं, ‘फोर्जिंग इकाइयों की बेहतरी के लिए सरकार को शुल्क और कर के मामले को प्राथमिकता देनी चाहिए। मंदी की वजह से मुनाफा घट गया है फोर्जिंग इकाइयों के लिए खुद को बनाए रखना मुश्किल हो गया है।’
वे कहते हैं, ‘हम फोर्जिंग उद्योग के उन लोगों के पक्ष मे समर्थन जुटाना चाहते हैं जिनकी नौकरी चली गई है। हम उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं। हस्ताक्षर अभियान ऐसी ही एक गतिविधि है।’ इस उद्योग से जुड़े 50,000 से ज्यादा लोग अपनी रोजी-रोटी गंवा चुके हैं और हालत अभी भी तेजी से बिगड़ रही है।
अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वित्त वर्ष (2009-10) में इस उद्योग का निर्यात घट कर 35 करोड़ डॉलर रह जाएगा। पिछले वित्त वर्ष में यह 47 करोड़ डॉलर था। एआईएफआई के सचिव एस.आर. सोमवंशी कहते हैं, ‘2008 के शुरुआत में स्टील की कीमत में आए उतार-चढ़ाव ने इस उद्योग को नुकसान पहुंचाया था। उद्योग इससे उबरने की कोशिश कर ही रहा था कि मंदी की वजह से मांग में कमी की समस्या पैदा हो गई।’
सोमवंशी ने कहा, ‘एआईएफआई ने फोर्जिंग उद्योग को बचाने के लिए कई आवश्यक कदम उठाने की मांग केंद्र और राज्य सरकारों से की है। इसमें बुनियादी ढांचा क्षेत्र और वाहन क्षेत्र की ओर से मांग में तेजी लाना, बैंकों द्वारा कर्ज को आसान बनाया जाना और निर्यात सुविधाएं देना आदि शामिल हैं। इसमें भी डीईपीबी सुविधाओं पर विशेष जोर दिया गया है।’
एआईएफआई के प्रमुख विद्याशंकर कृ ष्णन कहते हैं, ‘हमारा अनुमान है कि इस उद्योग की ज्यादातर इकाइयां अपनी क्षमता का महज 20 से 30 फीसदी ही उत्पादन कर रही हैं। कई मझोली कंपनियों ने अपनी इकाइयां बंद कर दी हैं। इससे वहां काम करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं।’
एआईएफआई ने फोर्जिंग उद्योग में काम करने वाले लोगों के सहयोग से इस उद्योग की समस्याओं को गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र्र, पंजाब और तमिलनाडु के नीति निर्माताओं के समक्ष रखने की योजना बनाई है।
