सरकार ने इस साल खरीफ सत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने वाली धान की किस्मों की कुल बोआई में हिस्सेदारी बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस साल गेहूं के ऐसे बीजों की गेहूं के बंपर उत्पादन में सफलता को देखते हुए धान की फसल में भी यह प्रयोग करने का लक्ष्य रखा गया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने आज कहा कि अभी हाल में खत्म हुए रबी के बोआई के सत्र में गेहूं के कुल रकबे में करीब 75 प्रतिशत हिस्सेदारी जलवायु प्रतिरोधी किस्मों की थी। इसके परिणामस्वरूप 2024-25 विपणन सत्र में गेहूं का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 1,130 लाख टन रहने की संभावना है।
पाठक ने कहा कि जलवायु प्रतिरोधी धान के बीज की किस्में सूखे, लंबे समय तक धान के पौध के गिरे रहने और जलभराव से निपट सकती हैं। पिछले साल खरीफ के धान में करीब 16 प्रतिशत रकबा जलवायु प्रतिरोधी किस्मों का था।
चीन के बाद भारत, विश्व का दूसरा बड़ा चावल उत्पादक देश है।शोध से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में फसल की उत्पादकता न्यूनतम उत्सर्जन की स्थिति में 3 से 5 प्रतिशत और अधिकतम उत्सर्जन पर 31.3 प्रतिशत तक घट सकती है।