प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
कृषि वैज्ञानिक मंच के वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। वैज्ञानिकों के समूह ने पत्र में हाल ही में भारत की पहली आनुवांशिक रूप से संवर्धित चावल की किस्मों को जारी करने की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि चावल की किस्मों को सीआरआईएसपीआर-सीएएस9 तकनीक से विकसित किया गया है, जिसमें बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) से जुड़े मसले खड़े हो सकते हैं। इससे किसानों को जीनोम संवर्धित चावल से मिलने वाला वास्तविक लाभ खो सकता है।
केंद्र सरकार ने बार-बार यह उल्लेख किया है कि जीन संवर्धन से जुड़े सभी आईपीआर मसलों की पूरी तरह से जांच की जा रही है और इसके लिए एक समिति भी गठित की गई है। इसने यह भी आश्वासन दिया है कि सरकार जीन संवर्धन पर आवश्यक लाइसेंस हासिल करेगी और इसका किसानों पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में अकोला के पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति शरद निम्बालकर सहित करीब 20 पूर्व और मौजूदा वैज्ञानिकों का हस्ताक्षर है। पत्र में कहा गया है कि भले ही सीआरआईएसपीआर-सीएएस9 एक उन्नत प्रौद्योगिकी है मगर यह भी बेपटरी हो सकती है, जिसके उम्मीद नहीं किए जाने वाले गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
इसके अलावा पत्र में कहा गया है कि जीन संवर्धित चावल का बड़े पैमाने पर उपयोग करने से भारत के मूल चावल के जर्मप्लाज्म को दूषित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि जीन संवर्धित चावल में आईपीआर से जुड़े मसलों के साथ समस्याएं भारतीय किसानों को विदेशी बीच प्रौद्योगिकी पर निर्भर बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि चावल की किस्मों को पूरी तरह से मूल्यांकन किए बगैर मंजूरी दे दी गई है।
वैज्ञानिकों ने यह पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह को भी भेजा है।
पिछले महीने एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम में सरकार ने देश में पहली बार चावल की दो नई जीनोम संवर्धित किस्में जारी कीं, जिनसे प्रति हेक्टेयर उपज में 30 फीसदी तक की वृद्धि होने का दावा किया गया तथा मौजूदा किस्मों के मुकाबले इसकी फसल पकने में 15 से 20 दिन कम लगने की बात कही गई।
चावल की ये नई किस्में (कमला-डीआरआर धान-100 और पूसा डीएसटी चावल 1) कम पानी का उपयोग करेगी और इससे पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम होगा।