मेंथा उत्पादन के सबसे बड़े गढ़ उत्तर प्रदेश में इस बार मेंथा की फसल बारिश की वजह से खतरे में पड़ी दिखाई देती है।
हालांकि पिछले कुछ दिनों से राज्य में बारिश नहीं हुई है फिर भी कारोबारियों और जिंस विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी पैदावार बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करेगी। समय से पहले ही मानसून के आ जाने और भारी बारिश से मुख्य उत्पादन क्षेत्रों से मेंथा की आवक में पहले ही लगभग दो हफ्ते की देर हो चुकी है।
अभी इसकी हार्वेस्टिंग पूरी तेजी से चल रही है पर अनुमान लगाया जा रहा है कि जुलाई के मध्य से ही इसकी हार्वेस्टिंग अपनी रफ्तार पकड़ पाएगी। उत्तर प्रदेश के मेंथा कारोबारियों का कहना है कि हालांकि अब तक हुई बारिश का इसकी फसल पर खासा असर नहीं पड़ा है। कारिबोरियों के अनुसार, बड़ी मुश्किल से 5 या 10 फीसदी उत्पादन प्रभावित हुआ होगा। हालांकि उनका कहना है कि ये बारिश यदि आगे भी जारी रही तो खेतों में खड़ी मेंथा की फसल बुरी तरह चौपट हो जाएगी।
सामान्यत: उत्तर प्रदेश में जून के आखिर में मानसून दस्तक देता है जबकि इसके आने से पहले ही मेंथा के उत्पादक इसकी हार्वेस्टिंग पूरी कर लेते हैं। हालांकि मेंथा के उत्पादन का कोई वास्तविक अनुमान अब तक जारी नहीं किया जा सका है। पर कारोबारी सूत्रों के अनुसार, इसका उत्पादन 40 हजार से 55 हजार टन के रहने का अनुमान है। बरेली के एक कारोबारी ने बताया कि राज्य में पिछले साल 32 हजार टन मेंथा उत्पादित हुआ था पर इस साल का उत्पादन 1.5 गुना हो जाने की उम्मीद जतायी जा रही है। जानकारों की राय में पैदा होने वाली कुल मेंथा में से लगभग 20 हजार टन का निर्यात किया जाएगा।
चंदौसी के एक निर्यातक भुवनेश कुमार वार्ष्णेय ने बताया कि पिछले साल का जमा भंडार लगभग 5 हजार टन होने का आकलन है। उसके मुताबिक, चीन और यूरोप से होने वाली निर्यात मांग में इस समय ठहराव है पर उन्हें उम्मीद है कि बड़ी जल्द ही मेंथा की निर्यात मांग दुबारा लौट आएगी। इस साल मेंथा का भंडार साल के अंत तक 45 हजार टन तक पहुंच जाएगा जो पिछले साल की तुलना में 40 फीसदी ज्यादा है।