प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pexels
बीते कुछ वर्षों से पारा तेजी से चढ रहा है। इस गर्म मौसम का न केवल मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि फल-सब्जी खासकर पेरिशेबल( जल्द खराब होने वाली) पर भी जलवायु परिवर्तन की मार पड़ रही है। मौसम में आ रहे इस भारी उतार-चढ़ाव से इन फल सब्जियों की फसल को नुकसान हो रहा है। इससे न केवल उत्पादकता में कमी देखने को मिल मिल रही है, बल्कि इनकी गुणवत्ता पर भी असर देखने को मिल रहा है। असमय अधिक गर्मी या बारिश से फसल चक्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
प्रतिकूल मौसम से उत्पादन घटने पर उपभोक्ताओं को तो महंगे दाम पर ये फल सब्जियां खरीदनी पड़ती हैं। लेकिन किसानों की जेब फिर भी खाली रह जाती है क्योंकि कुल उपज कम होने से उनकी कुल आमदनी घटती है। साथ ही साथ उन्हें उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमत के अनुरूप उनकी उपज का काफी कम दाम मिलता है। इसकी वजह बिचौलियों द्वारा कमाई करना है। जानकारों का कहना है कि इस जलवायु परिवर्तन के कारण फल-सब्जियों की खेती पर पड़ रही मार से बचाने के लिए गर्म मौसम को सहन करने वाली किस्में विकसित करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान व विकास प्रतिष्ठान (एनएचआरडीएफ) के पूर्व निदेशक आर पी गुप्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि 5-7 साल पहले तापमान 30 से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता था। अब अप्रैल में ही यह 40 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच जाता है। मई-जून के दौरान तो यह 40 से 48 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने लगा है। इस बढ़ते पारे से लोगों को गर्मी से तो परेशान होना ही पड़ता है, साथ ही इसकी खासकर जल्द खराब होने वाली फल सब्जियों पर भी मार पड़ रही है। अधिक तापमान से इनका बाहरी हिस्सा खराब होने लगता है। जिससे इनका विकास ढंग से नहीं हो पाता है। इसका सीधा असर इन फल सब्जी के उत्पादन पर दिखता है।
भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के किसान श्रीराम गाढवे कहते हैं कि फूल आने के दौरान अधिक तापमान सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है क्योंकि अधिक गर्मी से फूल मुरझाने लगते हैं। अधिक तापमान से फल-सब्जियों पर वायरस भी हमला करते हैं। जिससे कई बार जल्द खराब होने वाली फल सब्जियों का उत्पादन 30 से 40 फीसदी घट जाता है।
महाराष्ट्र के पुणे जिले में टमाटर, मिर्च,प्याज व अन्य सब्जियों की खेती करने वाले सचिन गाटे कहते हैं कि ज्यादा गर्मी के कारण फल-सब्जियों का विकास रुक जाता है। टमाटर में पल्प कम हो जाता है और इसका आकार भी टेढ़ा मेढ़ा होने की शिकायत आती है। साथ ही इसका उत्पादन पर असर पड़ता है। गर्मी से बचाने के लिए किसानों का खर्चा भी करना पडता है। ताकि फसल खराब न हो और बीमारी भी न लगे। गाटे ने कहा कि टमाटर में तुड़ाई तक एक एकड़ की लागत इस समय डेढ़ लाख रुपये के करीब है। पांच साल पहले यह एक लाख रुपये से काफी कम थी। इस साल तो टमाटर की खेती में काफी घाटा हो रहा है। इस समय किसानों को दो-तीन रुपये किलो टमाटर के दाम मिल रहे हैं।
अखिल भारतीय सेब उत्पादन संघ के अध्यक्ष और हिमाचल के सेब किसान रविंद्र चौहान ने बताया कि जलवायु परिवर्तन की मार सेब पर भी पड़ रही है। सेब के लिए ठंडा मौसम बहुत जरूरी है। गर्मी अधिक पड़ने से सेब के मौसम का चक्र बदल गया है। समय पर बर्फ न पड़ने और बारिश न होने के कारण सेब की फसल प्रभावित हो रही है। बीते कुछ वर्षों के दौरान तापमान में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के कारण सेब के पौधे भी सूख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण सेब का उत्पादन गिर रहा है। बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने कहा कि ज्यादा गर्मी से लीची की फसल भी प्रभावित हो रही है। अब नवंबर-दिसंबर में भी मौसम गर्म ही रहता है। इस दौरान पहले जितना ठंडा मौसम नहीं रहता है।
इस साल अप्रैल में भी अच्छी खासी गर्मी पड़ रही है। इसका लीची की फसल पर बुरा असर पड़ा है। बीते वर्षों में मौसम ज्यादा गर्म रहने के कारण लीची का उत्पादन साल दर साल कम ही हो रहा है। सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो 5 साल पहले देश में 7 लाख टन से अधिक लीची का उत्पादन होता था, जो अब घटकर 6 लाख टन से भी कम रह गया है। खास बात यह है कि लीची के रकबा में कमी नहीं आई है। इसका रकबा 97 से 99 हजार हेक्टेयर के बीच बना हुआ है।
गर्मी सहन करने वाली किस्में विकसित करने पर दिया जाए बल
ग्वालियर और जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति रह चुके विजय सिंह तोमर कहते हैं कि बीते वर्षों में गर्मी तेजी से बढ़ने के कारण सभी कृषि फसलें प्रभावित हो रही हैं। लेकिन जल्द खराब होने वाली फल सब्जियों को अधिक नुकसान हो रहा है। इसलिए इस नुकसान से बचने के लिए गर्मी को सहन करने वाली किस्में विकसित करने की जरूरत है। जैसा गेहूं के मामले में किया जा चुका है। साथ ही फसलों का पैटर्न भी बदलने की आवश्यकता है।
गुप्ता ने कहा कि बागवानी फसलों में गर्मी सहन करने वाली कुछ किस्में विकसित हुई हैं। लेकिन उनका परिणाम बहुत अच्छा नहीं रहा है। इसलिए इन किस्मों पर और काम करने की जरूरत है। गाढवे ने कहा फल-सब्जियों में बदलते मौसम के अनुरूप नई किस्में नहीं आ रही है। सरकार को इन पर ध्यान देने की जरूरत है।
उपभोक्ता व किसान दोनों पर गर्मी का सितम
जलवायु परिवर्तन की किसान और उपभोक्ता दोनों पर मार पड़ रही है। गाटे ने कहा कि दो साल पहले उपभोक्ताओं को टमाटर के लिए 300 रुपये तक दाम चुकाने पड़े थे। इतने महंगे टमाटर के बावजूद किसानों की झोली उतनी नहीं भर पाई, जितनी उपभोक्ताओं की जेब ढीली हुई। क्योंकि किसानों के पास उपज कम थी और उपभोक्ताओं को जिस भाव पर टमाटर बेचा गया, उसका तीसरा हिस्सा भी किसानों को नहीं दिया गया। इस समय भी उपभोक्ताओं को खुदरा बाजार में टमाटर 20 रुपये किलो मिल रहा है, जबकि किसानों को इसकी कीमत 5 रुपये भी नहीं मिल पा रही है।
चौहान ने कहा कि उत्पादन घटने से सेब के दाम तो बढ जाते हैं। लेकिन मौसम की मार से सेब की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। जिससे किसानों को सभी सेब की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। दिल्ली के टमाटर कारोबारी सुभाष चुघ कहते हैं कि न केवल किसानों को नुकसान होता है, बल्कि कारोबारियों को भी नुकसान सहन करना पड़ता है। अधिक गर्मी से ढुलाई और मंडी में रखने पर टमाटर व वन्य फल-सब्जियां खराब भी होती हैं।