बैसिलस थ्यूरेजिएन्सिस (बीटी) कपास की जबर्दस्त सफलता के बाद बीटी बैगन अगले साल की बुआई सीजन में आने को तैयार है।
बीटी बैगन व्यापक परीक्षण के दौर से सफलतापूर्वक गुजर चुका है। अगर इसे लॉन्च किया जाता है तो बीटी बैगन पहला सीधे तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला खाद्य होगा जिसे जेनेटिकली मोडिफायड (जीएम) बीजों के प्रयोग से उगाया जाएगा।
ऑल इंडिया क्रॉप बायोटेक्नोलॉजी एसोसिएशन (एआईसीबीए) के कार्यकारी निदेशक आर. के. सिन्हा के अनुसार इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) पिछले 4-5 सालों से बीटी बैगन के जेनेटिकली मोडिफायड बीजों का इस्तेमाल करती आ रहा है और इसने पाया है कि संबंधित प्राधिकरण की अनुमति के साथ इसे बाजार में लाने में कोई नुकसान नहीं है।
इस साल आईसीएआर ने देश भर में 15-18 एकड़ में बीटी बैगन की खेती की है ताकि बाजार में लाने की अंतिम अनुमति मिलने से पहले इसके व्यवहार्यता की जांच कर कर ली जाए। सिन्हा ने कहा, ‘बैगन दूर दराज के इलाकों में रहने वाले अधिकांश गरीब लोगों का मुख्य आहार है और इसमें औषधीय गुण भी होते हैं। इसलिए इसके बाजार में लाए जाने से न केवल किसानों को कीटनाशकों के इस्तेमाल में किए जाने वाले खर्च में बचत होगी बल्कि अधिक उत्पादन होने से उनकी आय भी बढ़ेगी।’
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और पी वी सतीश की एक याचिका पर सुनावाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (मैहिको) द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में किए जाने वाले परीक्षण पर रोक लगाने से मना कर दिया था। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली इस कमिटी को अगस्त 2007 में बड़े पैमाने पर खेतों में परीक्षण करने की अनुमति दी गई थी।
बीटी बैगन के तकनीक मुहैया कराने वाली कंपनी और अन्य जीएम खाद्य पदार्थों जैसे बंद गोभी, मक्का, फूलगोभी आदि को बाजार में लाए जाने की पक्षधर, मैहिको के अध्ययन के मुताबिक किसान प्रति एकड़ 100 रुपये प्रति स्प्रे के हिसाब से 90 दिन के बैगन के फसल पर 40 से 45 बार स्प्रे करते हैं।
दूसरी बात यह है कि वर्तमान नियमों के मुताबिक स्प्रे के 4 से 5 दिनों बाद तक कीटनाशकों का असर होने के कारण फसल तोड़े जाने की अनुमति नहीं होती है। लेकिन किसान स्प्रे के दो दिन बाद ही फल तोड़ना शुरू कर देते हैं। इसलिए अभी फल एवं सब्जियों के माध्यम से लोग अधिक मात्रा में कीटनाशकों को उदरस्थ कर रहे हैं।
बीटी बैगन की बुआई करने के बाद मुश्किल से 1 या 2 स्प्रे की आवश्यकता होगी ताकि सबसे आम कीड़े ‘लेटिडोट्रान’ के हमले से बचाव हो सके। लेकिन, मैहिको के महानिदेशक और बीटी बैगन के विकास पर पैनी निगाह रखने वाले डॉ महेन्द्र कुमार शर्मा के अनुसार स्प्रे की संख्या अन्य कीड़े-मकोड़ों के हमलों के अनुसार बढ़ सकती है।
शर्मा ने कहा, ‘हमने धारवाड़ कृषि विश्वविद्यालय, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टिटयूट ऑफ बेजिटेबल रिसर्च, जो आईएआर की एक इकाई है, को बीटी बैगन की तकनीक दे दी है। इसके अतिरिक्त कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को भी हमने यह तकनीक दी है और फिलहाल वे इस तकनीक की सत्यता का अध्ययन कर रहे हैं। एक बार जब वे इसे बाजार में अतारे जाने के लायक समझ लेते हैं तो इसे अनुमति दे देंगे। हालांकि, इसे बाजार में उतारे जाने के संबंध में हम कोई समय-सीमा नहीं बता सकते हैं।’
पांच-छह साल पहले उतारे गए बीटी कपास का इस्तेमाल भारत में लगभग 70 प्रतिशत कपास उत्पादक क्षेत्रों में किया जाता है। इस वर्ष बीटी कपास का क्षेत्र बढ़ कर 80 प्रतिशत होने की उम्मीद है। खेती के तकनीक में हुए परिवर्तन से कपास उत्पादक किसानों का रहन-सहन ही बदल गया है। पहले वे कर्ज के बोझ तले दबे होते थे अब बीटी कपास के इस्तेमाल से वही किसान धनी हो गए हैं।