मई से मिलेगी झींगा की एक और किस्म

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 4:41 PM IST


देश में जल्द ही सबसे सस्ती किस्म की झींगा मछली वनमी के पालन का काम शुरू हो जाएगा। उम्मीद है कि आगामी अप्रैल या मई महीने तक सरकार इस मछली पालन को शुरू करने की अपनी इजाजत दे देगी।


सरकार पिछले दो सालों से इस प्रजाति की झींगा मछली के पालन को शुरू करने के लिए अपनी अनुमति देने के लिए सोच

–विचार कर रही है। लेकिन अब कृषि मंत्रालय इसके पालन को शुरू करने के लिए राजी हो गया है। वही वाणिज्य मंत्रालय ने भी लंबे समय से लंबित झींगा निर्यातकों की इस मांग को हरी झंडी दे दी है। कृषि मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सरकार ने इस मामले में आंध्र प्रदेश के दो पायलट परियोजना को हरी झंडी दे दी है। इन दोनों परियोजनाओं के तहत पिछले दो सालों से काफी अच्छे तरीके से वनमी का प ालन किया जा रहा है। हालांकि सरकार के कई अन्य मंत्रालयों ने इस मछली के ब्रूड स्टॉक की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जाहिर की है।


ब्रूड स्टॉक का मतलब उन मछलियों से है जिनके इस्तेमाल से इस प्रजाति की अन्य मछलियों को पैदा किया जाता है। मंत्रालयों का कहना है कि ब्रूडस्टॉक के तहत इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि ये मछलियां किसी भी प्रकार के रोग से मुक्त हो। खास करके उन बीमारियों से जो देश की अन्य मछलियों की प्रजातियों में पायी जाती है। इस बारे में झींगा निर्यातकों की राय है कि ब्रूडस्टॉक का हमें आयात करना चाहिए। और यह आयात उम्दा सुविधा से संपन्न हवाई से करना चाहिए। जहां इस प्रकार की झींगा मछली सौ फीसदी रोग मुक्त होती है।


भारत में मुख्य रूप से मोनोडन व ब्लैक टाइगर प्रजाति की मछलियों का पालन किया जाता है। इस प्रकार की मछलियों का पालन वनमी के पालन से ज्यादा महंगा होता है। इस कारण से देश के झींगा उत्पादन में स्थिरता आ गई है। जबकि अन्य देशों के झींगा उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। भारत में झींगा का उत्पादन

1,50,000 टन पर स्थिर हो गया है जबकि चीन में झींगा का उत्पादन स्तर 6,50000 टन पर पहुंच गया है। थाइलैंड में यह उत्पादन 4,50,000 टन, इंडोनेशिया में 400,000 टन तो वियतनाम में 3,50,000 टन है।

विश्व स्तर पर झींगा के उत्पादन में वनमी प्रजाति की हिस्सेदारी

90 फीसदी है। वनमी की खासियत यह है कि इसके उत्पादन की लागत अपेक्षाकृत अन्य प्रजातियों से कम होती है। दूसरी बात है कि इस प्रजाति को अन्य प्रजातियों की तुलना में बीमारियों से लड़ने की अधिक क्षमता होती है और इस जाति की मछली का स्टॉक घनत्व भी अपेक्षाकृत अधिक होता है। भारत में वनमी के उत्पादन की लागत प्रतिकिलो 70 से 80 रुपये के बीच है वही ब्लैक टाइगर के पालन में इस लागत का दोगुना खर्च होता है। वनमी के पालन में दूसरी प्रजातियों के मुकाबले समय भी कम लगता है। ब्लैक टाइगर को बिक्री लायक होने में जहां 90 से 120 दिन का समय लगता है वही वनमी के लिए यह समय 60 से 90 दिन का होता है।

लेकिन इस मामले में सबसे ध्यान देने की बात यह है कि अगर अनियंत्रित तरीके से वनमी के ब्रूडस्टॉक का आयात किया जाता है तो इससे बीमारियों के फैलने की आशंका ज्यादा रहेगी। खास करके टीबी रोग की। लेकिन इन दिनों होनोलूलू की हवाई झींगा संस्था में रोग मुक्त ब्रूडस्टॉक उपलब्ध है।

वर्ष 2007 में देश के झींगा निर्यात में खासी कमी देखी गई है। यह कमी मुख्य रूप से अमेरिकी बाजार में वनमी झींगा के पहुंचने के कारण आई। वर्ष 2005 में अमेरिका को 35,699 टन झींगा का निर्यात किया गया जो घटकर 2006 में 27,277 टन हो गया और वर्ष वर्ष 2007 में यह 20,776 टन के स्तर पर पहुंच गया।
First Published : March 18, 2008 | 11:34 PM IST