वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट पूर्व बैठक में स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने वित्त वर्ष 2021-22 के आगामी बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र पर ज्यादा खर्च किए जाने की मांग की है, जिससे सार्वभौम बीमा, चिकित्सकों व नर्सों के कौशल बढ़ाने, शोध गतिविधियों और कुल मिलाकर स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने का काम किया जा सके। वित्त मंत्री ने गुरुवार को स्वास्थ्य क्षेत्र सहित सामाजिक क्षेत्र के हिस्सेदारों के साथ 6 बजट पूर्व परामर्श किए।
मेदांता के चेयरमैन और सीआईआई हेल्थकेयर काउंसिल के प्रमुख नरेश त्रेहन ने कहा, ‘सरकार बहुत ग्रहणशील है। हमें लगता है कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है और यह आखिरी महामारी भी नहीं है। हमें तैयार रहने की जरूरत है।’
त्रेहन ने कहा कि सरकार को जमीनी स्तर पर सुधार करने व शुरुआती चेतावनी व्यवस्था विकसित करने के लिए प्रावधान बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘हमने वित्त मंत्रालय से अनुरोध किया है कि स्वास्थ्य के लिए बजट में आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए और हेल्थकेयर को क्षेत्र विशेष को मिलने वाला लाभ एमएसएमई या दूरसंचार क्षेत्र की तरह मुहैया कराया जाना चाहिए।’
उन्होंने यह भी कहा कि आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को प्रोत्साहित किए जाने के दौरान सरकार की ओर से मेडिकल टेक्नोलॉजी कंपनियों व स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच तालमेल के लिए छूट दी जानी चाहिए।
इसके पहले वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने कहा था कि केंद्र व राज्य दोनों का स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय 2024 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक किया जाना चाहिए, जो अभी 0.9 प्रतिशत है।
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक न सिर्फ वैक्सीन पर आने वाले खर्च के लिए स्वास्थ्य पर आवंटन बहुत ज्यादा बढ़ाना होगा बल्कि बुनियादी ढांचे के सृजन व वितरण चैनलों को समर्थन के लिए भी खर्च करना पड़ेगा।
वित्त वर्ष 2021 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को आवंटित 67,111 करोड़ रुपये में से करीब 58 प्रतिशत राशि का इस्तेमाल हो चुका है। इसमें से स्वास्थ्य शोध विभाग को आवंटित 2100 करोड़ रुपये बजट आवंटन की तुलना में 7 प्रतिशत ज्यादा खर्च हो चुका है। सितंबर तक विभाग ने 2,248 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। पिछले साल की समान अवधि में विभाग ने आवंटन का सिर्फ 52 प्रतिशत ही इस्तेमाल किया था।
इस माह की शुरुआत में घोषित तीसरे प्रोत्साहन पैकेज के हिस्सा के रूप में सीतारमण ने कोविड-198 वैक्सीन के शोध व विकास के लिए 900 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। यह वैक्सीन की लागत और उसके वितरण की लॉजिस्टिक्स पर आने वाले खर्च से इतर है।