बेंगलूरु की एक फिनटेक कंपनी में काम करने वाली 40 साल की चंदा दामोदरन (नाम परिवर्तित) का महीने के राशन का खर्च पिछले ढाई साल में पूरे 100 फीसदी बढ़ गया है यानी दोगुना हो गया है। चंदा कहती है, ‘महंगाई के इस दौर से कोई अछूता नहीं रह गया। चावल, आटा, दालें, खाना पकाने के तेल जैसा रोजमर्रा के इस्तेमाल का सारा सामान बहुत महंगा हो गया है।’ दिक्कत यह है कि खर्च के हिसाब से कमाई नहीं बढ़ रही, जिससे कई परिवारों की बचत बिगड़ री है। पिछले 1-2 साल में यात्रा, खाद्य तेल, बिजली आदि का खर्च भी काफी बढ़ गया है। चंदा कहती हैं, ‘महीने के आखिर में खर्च पूरे करने के लिए मुझे अक्सर अपने दूसरे खाते में पड़ी रकम का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, जो मैंने मुश्किल के लिए बचाकर रखी है। मैं 18 साल से नौकरी कर रही हूं और इससे पहले कभी मुझे ऐसा नहीं करना पड़ा था।’
चंदा इकलौती नहीं हैं, जिनके लिए लगातार बढ़ती महंगाई से निपटना मुश्किल हो रहा है। मुंबई के उपनगरीय इलाके में पत्नी के साथ रहने वाले 74 साल के आर रानडे (बदला गया नाम) सेवानिवृत्त इंजीनियर हैं। उनका घर बैंक में जमा रकम और लाभांश से ही चलता है। बढ़ती महंगाई ने उन्हें खर्चों में कटौती के लिए मजबूर किया है क्योंकि उनकी कमाई काफी हद तक एक जैसी ही रहती है।
रानडे कहते हैं, ‘केबल के बजाय हमने ओटीटी (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म ले लिए हैं और टेलीफोन का लैंडलाइन कनेक्शन भी कटवा दिया है। खर्च कम करने के लिए मैं आने-जाने में सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने लगा हूं।’
रानडे राशन के सामान में भी अब सस्ते ब्रांड लेने लगे हैं। चूंकि दवा जीवन के लिए आवश्यक हैं, इसलिए उनके खर्च में कटौती नहीं की जा सकती। फिर भी जहां तक संभव हो, वह ब्रांडेड दवाओं के बजाय थोक में जेनरिक दवाएं खरीदने लगे हैं।
आय बढ़ाने, कर्ज घटाने पर जोर आय बढ़ाने के लिए कई लोग पार्ट-टाइम काम कर रहे हैं और अपने जीवनसाथी को भी दोबारा नौकरी या काम शुरू करने में मदद कर रहे हैं। रानडे कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने परामर्श यानी कंसल्टेंसी के सभी काम ठुकरा दिए थे मगर अब वे दोबारा यह काम करना चाहते हैं।
खर्च में कटौती के लिए कई परिवार अपने कर्ज को भी नए सिरे से देख रहे हैं। नोएडा में रहने वाली उद्यमी सुष्मिता सिन्हा के पास बेस दर से जुड़ा आवास ऋण था, जिस पर 8.5 फीसदी ब्याज जाता था। उन्होंने अपना होम लोन रीपो रेट से जुड़वा लिया है, जिस पर 7.55 फीसदी ब्याज ही जाता है। इससे उनकी मासिक किस्त में 2,636 रुपये तक कमी आ गई।
बाकी लोग भी कर्ज कम करने के हरसंभव प्रयास कर रहे है। मुंबई के उपनगरीय इलाके में काम करने वाले 50 साल के एक व्यक्ति ने बताया कि हाल ही में उसने अपनी बचत और कंपनी से मिले सालाना रीइंबर्समेंट को मिलाकर 3 लाख रुपये बैंक में भरे, जिससे 32 लाख रुपये का उसका बकाया होम लोन 29 लाख रुपये ही रह गया। इसके बाद बैंक से मिले विकल्पों में मासिक किस्त कम करने के बजाय उसने कर्ज की अवधि कम करा ली। इससे ब्याज के मामले में उसे कुछ राहत मिलेगी क्योंकि उसके होम लोन पर ब्याज की दर 1 अगस्त से 7.75 फीसदी होने जा रही है, जो अभी 6.90 फीसदी है। पिछले एक साल में ब्याज दर दो बार बढ़ी है। इससे पहले 1 मई को ब्याज दर 6.85 फीसदी थी।
वित्तीय योजनाकार आर्थिक दिक्कत कम करने के लिए कर्ज कम करने या और कर्ज लेने से बचने की सलाह देते हैं। बैंकबाजार के मुख्य कार्य अधिकारी आदिल शेट्टी कहते हैं, ‘क्रेडिट कार्ड पर रिवॉल्विंग क्रेडिट यानी बकाया राशि अगले महीने के लिए खिसका दिया जाना सबसे महंगा कर्ज होता है। जब तक आपका कार्ड बकाया राशि को कम ब्याज की मासिक किस्त में तब्दील नहीं करता तब तक उतना ही खर्च करें, जितना आप हर महीने चुका सकते हैं।’
याद रहे कि क्रेडिट यानी कर्ज मिल रहा है, केवल इसीलिए उसका अंधाधुंध इस्तेमाल न करें। जब आप ‘बाय नाउ पे लेटर’ की सुविधा लेते हैं तो आपको यह मुफ्त लग सकती है। मगर समय पर रकम नहीं चुका पाए तो ब्याज भी लगता है और जुर्माना भी लग सकता है। साथ ही आपका क्रेडिट स्कोर भी इसकी वजह से कम हो जाता है।
यदि आपका होम लोन रीपो दर से जुड़ा है तो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दर बढ़ोतरी की वजह से लोन पर ब्याज की दर बढ़ ही गई होगी। शेट्टी की सलाह है कि समय-समय पर होम लोन का प्री-पेमेंट करते रहें यानी मूलधन की कुछ रकम भरते रहें। जब भी आपको लोन की अवधि या मासिक किस्त कम करने का या बढ़ने से रोकने का मौका मिले, उसका पूरा फायदा उठाएं।
विशेषज्ञों का कहना है कि दरें बढ़ने पर कर्ज की अवधि में इजाफे के बजाय मासिक किस्त में इजाफे का विकल्प चुनना चाहिए। अगर मासिक किस्त से आपका महीने का बजट नहीं बिगड़ रहा है तो यही अच्छा विकल्प है।
कुछ लोग सावधि जमा (एफडी) पूरी होने से पहले ही रकम निकाल लेते हैं क्योंकि एफडी पर ब्याज की दर आम तौर पर होम लोन की ब्याज दर से कम होती है। मगर विशेषज्ञों का कहना है कि अगर एफडी में आपात परिस्थितियों के लिए रकम जमा की है तो ऐसा करने से बचें।
खर्चों पर कसें लगाम
वित्तीय योजनाकारों की सलाह है कि महंगाई से निपटने के लिए लोगों को पहले अपने घरेलू बजट पर इसका असर समझना चाहिए। एमबी वेल्थ फाइनैंशियल सॉल्यूशंस के संस्थापक एम बर्वे कहते हैं, ‘सबसे पहले देखिए कि पैसा जा कहां रहा है और आप किस मद में ज्यादा खर्च कर रहे हैं। इसके बाद जरूरी और गैर जरूरी खर्चों को अलग-अलग कीजिए। अब फिजूलखर्ची पर लगाम कसिए।’
पर्सनल फाइनैंस प्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, ‘मॉल, मल्टीप्लेक्स और महंगे रेस्तरां में जाना कम करें।’ फिजूलखर्ची से बचने के लिए जरूरी सामान के छोटे पैक चुनना, बाहर जाकर खाने के बजाय खाना ऑर्डर करना बेहतर विकल्प हैं। कई ऐप्स पर आकर्षक डील्स आती हैं, जिन पर आप नजर रख सकते हैं। असोसिएशन ऑफ रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के बोर्ड सदस्य विशाल धवन कहते हैं कि राशन का बिल कम करने के लिए दोस्तों और परिजनों के साथ मिलकर रियायती कीमत में थोक खरीदारी कर सकते हैं।
बढ़ते प्रतिफल का उठाएं लाभ
बैंकों ने अपनी जमा दरें बढ़ानी शुरू कर दी हैं और इनमें अभी और भी इजाफा हो सकता है। इसलिए अभी कम अवधि की एफडी और म्युचुअल फंड में निवेश करें। मुद्रास्फीति और ब्याज दर स्थिर होने पर लंबी अवधि की एफडी और म्युचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।
राघव कहते हैं कि कुछ बैंकों ने हाल ही में रीपो दर से जुड़ी जमा योजनाएं शुरू की हैं, जो अच्छा विकल्प हो सकती हैं। उनका कहना है कि 1 साल की एफडी के लिए 6 फीसदी (4.9+1.1 फीसदी) ब्याज दर अच्छी है।
ट्रेजरी बिल भी एफडी की तुलना में बेहतर रिटर्न दे रहे हैं, लेकिन उनमें निवेश करने पर कर ज्यादा नहीं बचता। इक्विटी में अपना निवेश कम नहीं करें क्योंकि लंबी अवधि में अस्थिरता को मात देने के लिए यह सबसे अच्छा विकल्प है। धवन कहते हैं, ‘अपनी इक्विटी निवेश योजनाएं जारी रखें और समय-समय पर इनमें संतुलन बनाते रहें।’