Categories: विशेष

2021 में काम के मोर्चे पर राहत और चुनौतियां दोनों रहीं

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:43 PM IST

एक और मुश्किल वर्ष पलक झपकते ही गुजर गया। ऐसा साल, जिसमें हालात बदलते रहे और इस दौरान हम आशा और निराशा के बीच झूलते रहे और अब इन दोनों के कहीं बीच में हैं। जनवरी 2021 कोविड टीके की उम्मीद लेकर आया और आंशिक स्तर पर कार्यालयों में लौटने की संभावना दिखाई दी। कार्यालय की चर्चा में ‘हाइब्रिड’ का विचार यानी कुछ कर्मचारियों का कार्यालय से और कुछ का घर से काम करना प्रमुख बन गया। जब विभिन्न क्षेत्रों के संगठनों ने करीब एक साल तक घर से काम के बाद कर्मचारियों को दफ्तर वापस बुलाने का इंतजाम शुरू किया तो डेल्टा स्वरूप ने उनकी सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया। अब डर और दुख के बीच एक बार फिर निराशा गहरा रही है।
भारत में कोविड संक्रमण का पहला मामला आने के करीब एक साल बाद जनवरी मेें कृष्ण जी इन्सान अपने दफ्तर लौट चुके थे, जबकि उस समय ज्यादातर कंपनियों में वर्क फ्रॉम होम चल रहा था। इसकी वाजिब वजह भी थी। इन्सान असम में ऑयल इंडिया लिमिटेड के वरिष्ठ प्रबंधक हैं, इसलिए उनका क्षेत्र आवश्यक सेवा क्षेत्र है। वह रोजाना दफ्तर जाते थे, लेकिन सुरक्षा की खातिर सहयोगियों के साथ ज्यादातर वर्चुअल बैठकें करते थे। उस समय उन्होंने इस संवाददाता को बताया था, ‘टीके का बहुत ज्यादा इंतजार है।’
आज 11 महीने बाद डेल्टा स्वरूप जा चुका है और एक अरब से अधिक भारतीयों को टीके लग गए हैं और उन जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो गया है। वह कहते हैं कि लोगों ने कोविड नियमों का पालन करते हुए फिर से साहस जुटाया है। वह हाल में दक्षिण कोरिया में जी20 लीडरशिप सम्मेलन से लौटे हैं, जिसमें 15 देशों के 22 लोगों को आमंत्रित किया गया था। उन्हें पूरा भरोसा है कि वर्ष 2022 में कारोबारी यात्रा ठीक से होने लगेंगी। वह कहते हैं, ‘दुबई एक्सपो पहले ही में हमें इसकी झलक दे चुका है।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि कोरोनावायरस के नए स्वरूप ओमीक्रोन से स्थितियां नहीं बिगड़ेंगी।
उन्होंने पाया है कि संगठनों ने युवाओं के लिए कुछ प्रत्यक्ष मौजूदगी में प्रशिक्षण शुरू किए हैं ताकि उन्हें सीखने का बेहतर माहौल मुहैया कराया जा सके।
दूर बैठकर काम करने के माहौल में नए कर्मचारियों को प्रशिक्षण और उन्हें संगठनों की कार्य संस्कृति से अगवत कराना बहुत सी कंपनियों के लिए मुश्किल रहा है। गुरुग्राम में एक फिनटेक कंपनी के साथ काम करने वाले कुमार आदित्य ने कहा, ‘हमने यह कदम तुरंत उठा लिया था और यह सोच लिया था कि भविष्य में वर्क फ्रॉम होम जारी रहेगा।’ वह कहते हैं कि ‘वर्क फ्रॉम होम तभी काम करेगा, जब अन्य स्थितियां ऐसी ही बनी रहेंगी।’ वह कहते हैं, ‘जब हमने वर्क फ्रॉम होम का मॉडल शुरू किया था, तब हम अपने सहयोगियों को अच्छी तरह जानते थे और उनके साथ काफी सहज थे। पिछले दो साल में नए लोग जुड़े हैं और हम उनसे घुलने-मिलने के लिए सहज नहीं हैं, इसलिए हमारा उनके साथ कम संपर्क है।’
वह कहते हैं कि वर्चुअल मॉडल में नए कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने में ज्यादा समय और ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। यही वजह है कि आईटी कंपनियां उन कंपनियों में शामिल हैं, जिन्होंने सबसे पहले कहा है कि वे उम्मीद कर रही हैं कि एक निश्चित आयु से कम उम्र के कर्मचारी फिर से कार्यालय से काम करेंगे। हालांकि आईटी कंपनियों ने ही सबसे पहले अपनी वर्क फ्रॉम होम की योजनाओं की घोषणा की थी।
आदित्य ने कहा, ‘नए कर्मचारी काफी कुछ चीजें अपने वरिष्ठों को देखकर सीखते हैं, इसलिए यह प्रशिक्षण प्रभावित हुआ है।’ उन्होंने कहा, ‘आप एक दिन की आमने-सामने की बैठकों में वे सब चीजें बता सकते हैं, जिनमें अन्यथा कई सप्ताह लगेंगे और कई थकाऊ वर्चुअल बैठकें करनी होंगी। इसमें कोई अचंभा नहीं होना चाहिए कि कार्यालयों को दोबारा खोलने पर जोर शीर्ष प्रबंधन या निचले स्तर के कर्मचारी नहीं बल्कि मध्यम प्रबंधन और परिचालन लीडर दे रहे हैं।’
नए कर्मचारी भी मानते हैं कि वे दफ्तर के माहौल के बारे में नहीं सीख पा रहे हैं। इस साल की शुरुआत में मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम शुरू करने वाली गरिमा मेहता (आग्रह पर नाम परिवर्तित) ने कहा कि उनकी ज्यादातर ऊर्जा यह अनुमान लगाने में ही खर्च हो जाती है कि क्या उनका प्रदर्शन पटरी पर है और क्या उनकी निकट निरीक्षक ने उनके काम की प्रशंसा की। जब उनका दफ्तर दोबारा खुला और कर्मचारियों को सप्ताह में दो दिन आने की मंजूरी दी गई तो उन्होंने महसूस किया कि यह खाई कितनी आसानी से पट गई और उनके सहकर्मी कितने मददगार और मित्रवत हैं। उन्होंने कहा, ‘इस अवरोध को तोडऩे के लिए आपसी मुलाकात करनी पड़ी।’
महामारी के दूसरे साल में बहुत से लोग लंबे समय से वर्क फ्रॉम होम के कारण उबाऊपन महसूस कर रहे हैं क्योंकि घर और दफ्तर के बीच की सीमा खत्म हो गई है। आदित्य ने कहा, ‘गंभीरता से काम करने पर असर पड़ा है। निर्धारित समयसीमा का पालन तो दफ्तर के माहौल में ही संभव है।’ इसके अलावा ऐसे भी लोग हैं, जो दफ्तर लौटना नहीं चाहते हैं। वे छोटे शहरों में अपने घर से काम कर रहे हैं। इस तरह किराये, मनोरंजन और बाहर खाने पर होने वाला खर्च बचा रहे हैं। महानगरों में इन्हीं चीजों पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च होता है। इस महामारी की वजह से कंपनियों को कर्मचारियों के करियर में बदलाव और नौकरी छोडऩे की ऊंची दर से भी जूझना पड़ रहा है। रसायन कारोबार की एक कंपनी के सीईओ ने कहा, ‘हमारा कारोबार इस साल महामारी से पहले के स्तर पर रहा है, जबकि एक भी आमने-सामने बैठक नहीं हुई क्योंकि कंपनियां व्यक्तिगत रूप से नहीं मिलना चाहती हैं।’ एक कंपनी के प्रमुख ने नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा, ‘महामारी ने लोगों को ज्यादा संसाधन संपन्न होना सिखाया है। पहले जो डीलर तकनीकी ज्ञान नहीं रखते थे, वे भी अब जूम कॉल पर आ गए हैं। हम भी अपने सभी काम ऑनलाइन करते हैं। रिसेप्शनिस्ट या कुछ प्रशासकीय भूमिकाओं जैसी कुछ नौकरियां खत्म हो गई हैं। ऐसे लोगों ने अपना कौशल बढ़ाया है या अपने कौशल में बदलाव किया है।’

First Published : December 21, 2021 | 11:10 PM IST