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मौजूदा रफ्तार पर मनरेगा को चाहिए 1 लाख करोड़ रुपये

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:00 PM IST

आर्थिक गतिविधि के सामान्य होने की शुरुआत हो जाने के बावजूद मनरेगा के लिए मांग मजबूत बनी हुई है। यह जानकारी ताजा आंकड़ों से प्राप्त हुई है। इससे ग्रामीण रिकवरी की शुरुआत करने के लिए आगामी बजट में इस योजना के लिए उचित धन आवंटन की आवश्यकता नजर आती है।
मनरेगा बजट का एक बड़ा हिस्सा पहले खर्च किए जाने के पीछे तर्क यह है कि यह एक मांग आधारित योजना है।
जब कभी मांग बढ़ती है तो केंद्र सरकार इसके लिए धन देती है ताकि मजदूरी को लंबे समय तक लंबित नहीं रखा जाए और सामग्री का खर्च का भुगतान भी समय पर हो।      
हालांकि, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं का दावा है कि आवंटन का बड़ा हिस्सा पहले खर्च करने से उपयुक्त मांग के सृजन में मदद मिली है साथ ही प्रणाली में विश्वास बहाल हुआ है। इससे अचानक धन की कमी जैसी स्थिति से भी बचने में मदद मिलती है।
मांग के मौजूदा रुझान और वित्त वर्ष 2022 में अब तक काम पाने वाले परिवारों की संख्या को देखते हुए एक मोटा आकलन दिखाता है कि 95,000 से 1 लाख करोड़ रुपये तक से कम का बजट वित्त वर्ष 2023 के शुरुआती कुछ महीनों में ही समाप्त हो जाएगा।
इससे दोबारा से वही चक्र आरंभ हो जाएगा जिसमें राज्य बढ़ती लंबित मजदूरी की शिकायत कर रहे होते हैं जिससे धन के संकट को कम करने के लिए जानबूझ कर मांग को दबाने का आरोप लगता है।  
कामगारों की संख्या को अब तक काम पाने वाले परिवारों की कुल संख्या को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की औसत लागत से गुना कर निकाला जाता है। परिवारों की संख्या 6.59 करोड़ है और मजदूरी की दैनिक औसत लागत करीब 292 रुपये है। दोनों को गुना करने से प्राप्त संख्या को साल में प्रति परिवार रोजगार के औसत दिनों जो कि करीब 50 दिन है से गुना किया जाता है।        
इस तरह से प्राप्त आंकड़े से साल भर मनरेगा को आसानी से संचालित करने के लिए अनुमानित बजट का पता लगता है। यह रकम करीब 94,000 करोड़ रुपये बैठती है।
मनरेगा संघर्ष मोर्चा के देवमाल्य नंदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मुझे लगता है कि मजदूरी में इजाफे के साथ सरकार को अगले बजट में कम से कम 1,50,000 करोड़ रुपये का आवंटन करना चाहिए ताकि यह भुगतान में देरी न हो सुनिश्चित किया जा सके।’  
चालू वित्त वर्ष में मनरेगा
वित्त वर्ष 2022 में मनरेगा के लिए बजट अनुमान 73,000 करोड़ रुपये का था। इसमें से 17,000 करोड़ रुपये पिछले वर्ष के लंबित बकाये के भुगतान पर खर्च हुआ।
चूंकि इस वित्त वर्ष में भी मनरेगा के तहत काम की मांग जबरदस्त रही लिहाजा आवंटित बजट का करीब 77 फीसदी पहले पांच महीनों में ही खर्च हो गया।
इसके बाद मजदूरी भुगतान में देरी होने लगी और राज्यों ने धन की भारी कमी होने की शिकायत की जिसके बाद केंद्र ने मांग को पूरा करने के लिए दोबारा से 22,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया।    
वित्त वर्ष 2022 में लगातार दूसरे वर्ष मनरेगा के तहत काम की जबरदस्त मांग रही हालांकि, यह वित्त वर्ष 2021 के मुकाबले यह कम रही। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से दिसंबर के बीच 2 करोड़ से अधिक परिवारों ने काम की मांग की।
इसको संकेत मानते हुए कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण रिकवरी अभी कोविड से पूर्व के स्तर पर नहीं आई है। 

First Published : January 17, 2022 | 11:17 PM IST