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एक साथ दो डिग्री के विकल्पों पर विशेषज्ञों की हामी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 7:42 PM IST

हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों के चलते कॉलेज के छात्रों को एक साथ दो डिग्री का विकल्प चुनने की अनुमति मिली है। ऐसे में संस्थानों और विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च शिक्षा के स्तर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के क्रियान्वयन में तेजी आएगी। यूजीसी के नए दिशानिर्देशों के चलते छात्रों को एक साथ दो पूर्णकालिक डिग्री लेने की अनुमति दी जाएगी जिसमें वे कक्षाओं में जाकर पढ़ाई भी करेंगे। वर्ष 2020 में, विश्वविद्यालयों के शीर्ष निकाय ने ऐसे ही समान प्रस्ताव की मंजूरी दी थी लेकिन दो डिग्री में से एक ऑनलाइन होने की बात की गई थी।
ये दिशानिर्देश डिप्लोमा, स्नातक के साथ-साथ स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के लिए लागू होंगे और नए दिशानिर्देश के तहत छात्रों को या तो दो ऑफलाइन डिग्री पाठ्यक्रम या एक ऑफलाइन और दूसरे ऑनलाइन पाठ्यक्रम के मिश्रण का विकल्प देते हैं। विश्वविद्यालयों और शिक्षाविदों ने डोमेन-विशिष्ट संस्थानों को चरणबद्ध तरीके से बहु-विषयक विश्वविद्यालयों में तब्दील करने की कोशिश का स्वागत किया है जिससे विशेषज्ञों को डॉक्टरेट की डिग्री या राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा योग्यता के बिना पढ़ाने की अनुमति दी जाएगी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ही तहत एकेडमिक बैंक ऑफ  क्रेडिट (एबीसी) तैयार करने पर जोर दिया जाएगा। हालांकि एनईपी 2020 ने 15 साल का रोडमैप निर्धारित किया है लेकिन टीमलीज सर्विस लिमिटेड की वरिष्ठ उपाध्यक्ष नीति शर्मा ने कहा कि हाल के नियामकीय बदलावों से पता चलता है कि इसे कम से कम उच्च शिक्षा स्तर पर बहुत पहले लागू किया जा सकता था।
उन्होंने कहा, ‘यह न केवल विभिन्न विषयों वाली शिक्षा के लिए जोर दे रहा है बल्कि यह संकाय सदस्य बनने के लिए विशेषज्ञों को पीएचडी करने की शर्त को अनिवार्य न कर उद्योग की भागीदारी भी बढ़ा रहा है। यूजीसी व्यावसायिक कौशल को शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाने के साथ नीति पर तेजी से अमल कर रहा है।’ अनंत नैशनल यूनिवर्सिटी के अकादमिक मामलों की एसोसिएट डीन जैस्मीन गोहिल के अनुसार, निकलने के कई विकल्पों और अनुभवात्मक सीख पर ध्यान केंद्रित करने जैसे कदम भी नीति को क्रियान्वयन में बदल रहे हैं।
वह कहती हैं, ‘पसंद-आधारित क्रेडिट सिस्टम से तैयार होने वाले एबीसी से लेकर स्वयं प्रभा जैसे बड़े पैमाने पर खुले ऑनलाइन पाठ्यक्रम मंच और प्रौद्योगिकी के बलबूते सीखने से जुड़े कार्यक्रमों पर जोर दिया जा रहा है ताकि पाठ्यक्रम में मिश्रित शिक्षा प्रणालियों को एकीकृत किया जा सके और उत्कृष्ट संस्थानों को मान्यता दी जा सके। पाठ्यक्रम बनाने में काफी स्वतंत्रता है जो अधिक अनुभवात्मक, समग्रता से परिपूर्ण और पड़ताल पर आधारित है।’ इस सप्ताह की शुरुआत में, यूजीसी अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने कहा था कि नए दिशानिर्देश, एनईपी 2020 में की गई घोषणाओं के अनुरूप हैं जिसका उद्देश्य छात्रों को कई तरह के कौशल हासिल करने में मदद करना है। उन्होंने कहा कि छात्र एक या दो विश्वविद्यालयों से दो डिग्री हासिल कर सकते हैं। यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को नए दिशानिर्देशों को लागू करने को लेकर निर्देश दिए हैं और कहा है कि नीति के तहत विभिन्न विषयों के संयोजन के लिए लचीले पाठ्यक्रम पर अमल करने पर जोर दिया जाए।
सभी विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों/संस्थानों से छात्रों के लाभ के लिए इन दिशानिर्देशों को लागू करने का अनुरोध किया गया है। हालांकि विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंता जताते हैं कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रत्येक छात्र की समय-तालिकाओं का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि एक साथ कई परीक्षाएं होती हैं और विभिन्न विषयों के बीच ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ छात्रों के नतीजों पर भी इसका असर पड़ सकता है क्योंकि कई बार छात्र इस तरह के बदलावों की मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
वहीं कुछ का मानना है कि इससे सीट और संकाय की कमी जैसी चुनौतियां बढ़ जाएंगी वहीं दूसरों का कहना है कि यह जिम्मेदारी विश्वविद्यालयों पर होगी। अहमदाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति पंकज चंद्रा कहते हैं कि विश्वविद्यालय अपनी क्षमता के हिसाब से ही पाठ्यक्रमों के संयोजन को लागू करने का विकल्प चुनेंगे। उन्होंने कहा, ‘सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह के विकल्प गंभीर छात्रों के लिए उपलब्ध होंगे। इस तरह के कार्यक्रम के लिए छात्रों को अतिरिक्त मेहनत करनी होगी और ऐसी कोई संभावना नहीं है कि सभी छात्र इसके लिए कतार में खड़े होंगे।’
चंद्रा ने सुझाव दिया, ‘प्रत्येक संस्थान को यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों को दो डिग्री पूरी करने के लिए दोगुना समय न देना पड़े क्योंकि इससे इस प्रस्ताव का पूरा लक्ष्य ही प्रभावित हो जाएगा। साथ ही, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि छात्र को दो डिग्री पूरी करने के लिए उत्साह में एक ही समय में कई पाठ्यक्रमों (विषयों) का बोझ एक साथ न लें क्योंकि इससे उनके सीखने की पूरी प्रक्रिया ही प्रभावित होगी।’ हालांकि, भारत में शिक्षा और कौशल विकास की प्रमुख कंपनी केपीएमजी के पार्टनर और विशेषज्ञ नारायणन रामास्वामी का कहना है कि उच्च शिक्षा के स्तर पर नीति के क्रियान्वयन से, जल्द ही स्कूलों में बदलाव लाने की आवश्यकता पड़ेगी। रामास्वामी का कहना है, ‘सीखने का विकल्प कॉलेजों से छात्रों में स्थानांतरित हो गया है। यहां तक कि सरकार छात्रों को प्रवेश और निकलने के कई विकल्पों के साथ बहु-आयामी, बहु-विषयक संस्थानों के लिए जोर देती है। पूरी नीति एक दिन में नहीं बल्कि धीरे-धीरे अस्तित्व में आएगी। यही कारण है कि इसे लागू करने के लिए 2036 तक का समय दिया गया है। सरकार के सामने यह एक बड़ा काम है क्योंकि सरकार को स्कूलों में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।’

First Published : April 21, 2022 | 12:14 AM IST