ठिठुरते जाड़े की शुरूआत में अगर दिल्ली में आपको कोई छोटे कपड़ों में दिख जाए तो समझ लीजिए कि यह फैशन का सुरूर नहीं बल्कि बाजार में छाई मंदी की मार है।
मंदी ने दिल्ली के रेडीमेड गारमेंट बाजार के हालत भी खस्ता कर दिये है। हालात यह है कि जहां बाजार में उपभोक्ताओं का टोटा है। वहीं मंदी की वजह से उधारी में माल न मिलने के कारण कई कपड़ा व्यापारियों ने अपने कारोबार को ही बंद कर दिया है।
दिल्ली की सुभाष रोड स्थित रेडीमेड गारमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष देशराज मल्होत्रा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस साल मंदी की वजह से 40 फीसदी उपभोक्ता गायब है। तैयार माल भी उधारी में नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में कई छोटे थोक और फुटकर व्यापारी माल खरीदने की क्षमता में नहीं है।
ऐसे में कई व्यापारियों ने अपना काम बंद कर दिया है। रामनगर स्थित रेडीमेड गारमेंट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मनमोहन मेहरा का कहना है कि इस बार मंदी से दिल्ली के कपड़ा कारोबार में 40 से 50 फीसदी की कमी है। बाजार में उपभोक्ता न होने से फुटकर विक्रेताओं का माल बिक नहीं पा रहा है।
ऐसे में थोक व्यापारियों के हाल भी खराब हो गए हैं। मेहरा बताते है दिल्ली में हमारा सबसे बड़ा उपभोक्ता मध्यम वर्ग और निम् वर्ग है। जहां एक तरफ दाल , रोटी और सब्जी जैसी बुनियादी चीजों के दाम आसमान पर है। ऐसे में उपभोक्ता कपड़ों की अतिरिक्त खरीद न कर बचत कर रहा है।
अशोक बाजार रेडीमेड गारमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष के के वली कहते है कि सुभाष नगर, राम नगर, गांधी नगर और अशोक बाजार का रेडीमेड गारमेंट बाजार 3 से 4 लाख लोगों सीधे तौर पर रोजी-रोटी देता है। ऐसे में मंदी की मार ने सबको बेहाल कर दिया है।
इन बाजारों में हर महीने 100 से 150 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। लेकिन इस साल कारोबार 40 फीसदी तक गिर गया है। देशराज मल्होत्रा का कहना है कि दिल्ली में लगभग 10,000 हजार कारोबारी कपड़ा निर्माण से जुडें हुए है।