पंजाब में ‘बादशाह’ की बादशाहत खत्म हो गई है, ‘ज्योति’ की रोशनी चली गयी है, ‘सूर्या’ मध्दिम पड़ गया है तो ‘चंद्रमुखी’ मुरझा गयी है। असल में बादशाह, ज्योति, सूर्या व चंद्रमुखी, ये सभी पंजाब के दोआब क्षेत्र में उगाए जाने वाले आलू की प्रजाति है।
बादशाह परेशान होगा तो लाजिमी है कि प्रजा भी खुश नहीं रहेगी। जालंधर व आसपास के इलाकों में ऐसा ही हो रहा है। आलू की दुर्दशा के कारण इन इलाकों के रेस्टोरेंट से लेकर ऑटोमोबाइल बाजार तक की बिक्री घट गई है।
ऊपर से इस साल प्रवासी भारतीयों के भारत भ्रमण नहीं करने से भी दोआब इलाके का बाजार और बैठता नजर आ रहा है। जालंधर के मॉडल टाउन स्थित सब-वे रेस्टोरेंट के संचालक के मुताबिक उनकी रोजाना की बिक्री में 7-8 हजार रुपये की गिरावट आ चुकी है।
आलू किसानों को अच्छी कीमत नहीं मिलने से उनकी बिक्री प्रभावित हुई है। 2007 में जालंधर की मंडी में 400 रुपये प्रति क्विंटल तो 2006 में 600 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाले आलू की कीमत इस साल 150-200 रुपये प्रति क्विंटल रह गयी है।
लिहाजा जालंधर व आसपास के इलाकों में रहने वाले छोटे-बड़े 7000 से अधिक आलू किसानों की क्रयशक्ति शून्य से भी कम हो गयी है। उन्हें प्रति एकड़ कम से कम 7-8 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है।
जालंधर स्थित मकसूदा मंडी के आलू विक्रेता संघ के पदाधिकारी जवाहर डल कहते हैं, ‘किसानों के साथ कारोबारियों की आर्थिक हालत नाजुक हो गयी है। जिन कारोबारियों ने आलू का स्टॉक किया था वे सभी भारी घाटे में हैं। बिक्री कम होने से उनकी कमाई भी काफी कम हो गयी है।’
जालंधर के स्थानीय निवासियों के मुताबिक इस इलाके की अर्थव्यवस्था में आलू किसान का अहम योगदान है। यहां के छोटे किसान भी 50-60 एकड़ में आलू की खेती करते हैं और बड़े किसानों के लिए तो 500-1000 एकड़ में आलू की खेती करना मामूली बात है।
उन्हें लाखों में मुनाफा और उसी अनुपात में घाटा भी होता है। ऑटोमोबाइल डीलरों के मुताबिक नई कार की बात तो दूर, किसान मोटरसाइकिल तक की खोजखबर नहीं ले रहे हैं। जब आलू की कीमत अच्छी मिलती है तो इस दौरान जालंधर शहर के हर कार शो-रूम की मौज आ जाती है।
कादियांवाला गांव के किसान कहते हैं, पंजाब के किसानों को अच्छे मकान व अच्छी कार का शौक सबसे अधिक है। कमाई होने पर वे सबसे अधिक इन दोनों पर ही खर्च करते हैं।