नई तकनीक से बेजार भारत बना रहा लाचार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 6:09 AM IST

तेजी से बदलती तकनीकी दुनिया में आतंकवादी हमले भी काफी अत्याधुनिक हो गए हैं। दिनों-दिन बढ़ती आतंकी घटनाएं भारत की सुरक्षा खामियों में लगातार सेंध लगा रही हैं।


इसमें साइबरस्पेस में खामियां भी शामिल हैं। ऐहतियात के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को लेकर भारत बहुत गंभीर नहीं जान पड़ता है। एके-47 और एम-सीरीज के अलावा, भारत की वित्तीय राजधानी पर हुए आतंकी हमले से एक बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि अब आतंकवादी न केवल ई-मेल और वायरलेस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं

बल्कि वे सैटेलाइट फोन (सैटफोन्स) और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) मानचित्रों का भी धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं।

भारतीय तटरक्षक बल के अधिकारियों ने गुजरात के पोरबंदर से मछली पकड़ने वाली एक नौका को अपने कब्जे में लिया जिससे आतंकवादी वहां पहुंचे थे।

इस जहाज से सैटफोन और दक्षिण मुंबई के जीपीएस मानचित्र बरामद किए थे। मौत के घाट उतारे गए 2 आंतकवादियों के पास भी एक सैटफोन बरामद किया गया था।

सुरक्षा विशेषज्ञों ने बताया कि उपग्रह चित्रण का इस्तेमाल अनधिकृत निर्माण या फिर प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान आदि जैसे आवश्यक कार्यों के लिए किया जाता है।

लेकिन आतंकवादी इसका इस्तेमाल आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए इराक में, आतंकवादियों के पास से ब्रिटिश सैन्य ठिकानों की विस्तृत गूगल अर्थ इमेज बरामद की गई थीं।

वहीं दो साल पहले आतंकवादियों ने एक अनुदेशात्मक वीडियो परिचालित किया था, जिसमें गूगल अर्थ का इस्तेमाल अमेरिकी सैनिक अड्डों पर रॉकेट साधने के उद्देश्य से किया गया था।

भारत में कई आधारभूत डिटेक्शन टेक्नोलॉजी तो आतंकवादियों के मुकाबले काफी पाश्चात्य जमाने की है।

विदेशों में रोबोट ड्रोनिज, माइंस डिटेक्टर्स और सेंसिंग उपकरण पहले से ही काफी आम है। लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञ और विक्रेता कहते हैं कि भारत सरकार अभी भी यह समझती है कि इन उपकरणों की खरीद ‘व्यर्थ व्यय’ है।

अहमदाबाद में हुए आंतकवादी विस्फोटों के बाद मुंबई के पांच मुख्य प्रवेश द्वारों- दहीसार, वाशी, एरोली और मुलुंड में दो स्थानों पर निगरानी उपकरणों को लगाने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया था।

इस परियोजना पर सिर्फ एक करोड़ रुपये का खर्च किया जाना है लेकिन इसके बावजूद इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।


यही नहीं पुणे में सीसीटीवी लगाने का प्रस्ताव भी पिछले दो साल से अधर में लटका हुआ है।

फॉयर ऐंड सेफ्टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रमोद राव ने बताया कि देश के ज्यादातर होटलों में तो एक्सरे मशीन ही नहीं लगी हैं, जो एक आवश्यक निगरानी उपकरण है।

सुरक्षा विशेषज्ञ और फिक्की सुरक्षा समिति के अध्यक्ष विजय मुखी ने सुक्षाव देते हुए कहा, ‘हम लोग अमेरिकी सुरक्षा प्रौद्योगिकी को क्यों नहीं अपना सकते हैं।’

अंतरराष्ट्रीय पटल पर देखें तो कनाडा और मेक्सिको की सीमाओं पर ऐसी मशीनों का इस्तेमाल किया जाता जो किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत सूचनाओं का पता लगा सकता है।

हालांकि  भारत इन तकनीकों से अभी भी कोसों दूर है। भारत द्वारा अन्य देशों से सीख लेना एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है लेकिन जरूरत है तेजी से उन चीजों को आत्मसात करने की।

First Published : December 1, 2008 | 9:06 PM IST