तीन साल पहले, जब मैं एक कंपनी बनाने की कोशिश कर रहा था (यह मैं व्यंजना में कह रहा हूं क्योंकि मेरी स्थिर आय नहीं थी), उसी समय कुछ लोगों ने एक शुरू हो रही स्टार्टअप की रणनीतिक दिशा तय करने के लिए मेरी सलाह मांगी। उन्होंने कहा कि यह स्टार्टअप 10 मिनट के भीतर किराना और खाने पीने का सामान पहुंचाने के लिए मीडिया की सुर्खियां बटोरना चाहती है। क्या 10 मिनट के भीतर सामान की आपूर्ति लोगों के काम भी आती है? क्या बेसन, केला या ब्रेड ऐसी चीजें हैं जिनकी आपको आपात स्थिति में तत्काल जरूरत पड़ सकती है?
यह एक अनौपचारिक बातचीत थी और मेरे लिए कोई जोखिम नहीं था इसलिए मैंने थोड़ा मनोरंजन करने की सोची। मैंने उनसे कहा कि इस बात पर ऐसे विचार कीजिए जैसे कि मैं अपने पालतू कुत्ते से बात कर रहा हूं। क्या यह अधिक व्यावहारिक होगा? लेकिन ऐसा करना मजेदार होगा। यह शायद चर्चा का विषय बनेगा और मुझे अमीर भी बना देगा।
यह विचार मेरे मन में आने वाला मूल विचार नहीं था। यह फ्रेंड्स नामक धारावाहिक के सीजन 6 के एपिसोड 14 के चांडलर बिंग नामक किरदार का विचार था। इस एपिसोड में जोई तीन पैरों वाले कुत्ते के बच्चे से तुलना करके चांडलर को रुलाने की कोशिश करती है। ऐसा बच्चा जो दया की भीख मांग रहा हो।
10 मिनट में आपूर्ति का विचार नयापन भरा विचार प्रतीत होता है लेकिन यह बहुत प्रभावशाली विचार नहीं है। जैसा कि पहले भी लिखा जा चुका है कि स्टार्टअप संस्थापकों को अहम समस्याओं को हल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं, एक अखबार के स्तंभकार की राय बहुत अधिक मायने नहीं रखती है लेकिन यह अच्छी बात प्रतीत होती है कि क्विक कॉमर्स किसी बड़ी समस्या को हल करता नहीं नजर आता है।
लाइटस्पीड के साझेदार राहुल तनेजा का मानना है कि यह कोशिश है उन मौजूदा ग्राहकों के व्यवहार को बदलने की जो पड़ोस की किराना दुकान से खाना ऑर्डर करने की आदत रखते हैं। इसके जरिये उनके व्यवहार को बदलने की कोशिश की जा रही है। पहले जो काम फोन कॉल पर होता था अब वह ऐप की मदद से और अधिक किफायती अंदाज में किया जा रहा है। तनेजा ने मुझे बताया, ‘एक तरह से यह व्यवहार में बदलाव के बजाय व्यवहार को अपनाने वाली बात है।’लाइटस्पीड उन प्रमुख नामों में से एक है जिन्हें 21 जून को जेप्टो के ताजा फंडिंग वाले चरण में मदद मिली। क्विक कॉमर्स स्टार्टअप को उससे 3.6 अरब डॉलर का मूल्यांकन प्रदान किया।
क्विक कॉमर्स क्षेत्र की दो अन्य अग्रणी कंपनियां भी बहुत बुरा प्रदर्शन नहीं कर रही हैं। 2022 में जब जोमैटो ने अधिग्रहण किया तब ब्लिंकइट की स्थिति ठीक नहीं थी। इस वर्ष मई में जोमैटो के संस्थापक और सीईओ दीपिंदर गोयल ने अंशधारकों को एक पत्र लिखकर कहा, ‘हमें खुशी है कि हमने ब्लिंकइट पर जो दांव लगाया था वह कामयाब रहा है।’
वह बात को थोड़ा हल्का करके कह रहे थे। वास्तव में ब्लिंकइट मार्च में मुनाफे में आ गई। उसका सकल ऑर्डर मूल्य (जिसके आधार पर हर ट्रिप की आय का अंदाजा लगाया जाता है), 2023-24 की चौथी तिमाही में दोगुना हो गया और सभी पूर्वानुमान बेहतर भविष्य की ओर ही संकेत करते हैं।
स्विगी अपनी प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश करने को तैयार हो रहा है और वह एमेजॉन और रिलायंस जैसी कंपनियों से लोगों को अपने यहां लाकर अपनी क्विक कॉमर्स शाखा इंस्टामार्ट में नेतृत्व को मजबूती दे रहा है।
यकीनन देश में क्विक कॉमर्स सफलता की ऐसी कहानी लिख रहा है जिसकी उम्मीद नहीं रही होगी। भारत के बाहर करीब-करीब हर क्विक कॉमर्स स्टार्टअप बंद हो चुकी है, अपनी रणनीति बदल ली है या उनके मूल्यांकन में बहुत भारी कमी आई है। कई ने तेजी से अपना आकार छोटा किया है।
भारत में इसकी सफलता की वजह क्या है? इसलिए कि यह नए उपभोक्ताओं की जरूरतों और कामनाओं को पूरा कर रही हैं। ये वे उपभोक्ता हैं जिन्हें साप्ताहिक या मासिक खरीदारी की आदत नहीं है। वे अचानक ऑर्डर करते हैं और जल्दी आपूर्ति चाहते हैं। कई बार तो वे एक ही दिन में कई-कई बार ऑर्डर करते हैं। वे किराना दुकान तक जाकर, अलग-अलग शेल्फ खंगालना और बिलिंग की लाइन में लगना नहीं चाहते।
जैसा कि टेकक्रंच ने प्रकाशित किया, बर्नस्टीन सर्वे के अनुसार क्विक कॉमर्स को अपनाने वाले अधिकांश लोग 18 से 35 की आयु के हैं। 36 से अधिक उम्र के लोग भी डिजिटल चैनलों को अपना रहे हैं और इस आयु वर्ग में 30 फीसदी से अधिक लोग क्विक कॉमर्स को अपना रहे हैं।
यकीनन भारत में युवा आबादी बहुत अधिक है लेकिन यह इकलौता ऐसा देश नहीं है जहां युवा रहते हैं। क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म की कामयाबी के लिए बहुत अधिक लोगों की जरूरत भी नहीं पड़ती।
यूट्यूब पर जेप्टो के संस्थापकों के साथ बातचीत में गति सितंबर में जीरोधा के निखिल कामत ने उनसे पूछा कि जेप्टो जैसे ऐप्लीकेशन का इस्तेमाल आबादी के कितने लोग करते हैं। जेप्टो के सीईओ और सह संस्थापक आदित फलीचा ने कहा यह आंकड़ा 0.3 फीसदी है और क्विक कॉमर्स की कमाई 0.35 फीसदी पर होने लगती है।
इसमें सबसे अहम हैं डार्क स्टोर जो छोटे गोदाम की तरह होते हैं जहां उपभोक्ताओं के बजाय पैकर घूमते हैं और सामान ले जाकर लोगों को देते हैं। सफलता के लिए एक कंपनी को उत्पाद या सेवा को एक तय अवधि में ग्राहक को देना होता है।
इसका प्रतिशत अधिक हो तो किराया कम रहेगा। भारत में यह सफल है क्योंकि बड़े शहरों में इसके ग्राहक बहुत अधिक हैं। गुरुग्राम के एक ऊंची इमारतों वाले परिसर में उतने ही संभावित ग्राहक हो सकते हैं जितने कि देश के अन्य हिस्सों के किसी कस्बे में। भारत में श्रम सस्ता है। वहां जल्दी आपूर्ति का काम चंद रुपयों में हो सकता है। अमेरिका में इसके लिए कुछ डॉलर खर्च करने होंगे।
तनेजा ने कहा, ‘भारत में क्विक कॉमर्स आर्थिक रूप से इसलिए बेहतर साबित हुआ कि यहां मांग बहुत अधिक है और डिलिवरी के पते बहुत करीब-करीब। इसके अलावा श्रम की लागत भी कम है। इससे राइडर की लागत और प्रति ऑर्डर आपूर्ति सस्ती होती है।’
जाने माने निवेशक और संस्थापक राजेश साहनी ने हाल ही में एक्स पर कहा क्विक कॉमर्स सीखने की सबसे बेहतर तरकीब है जेप्टो, ब्लिंकिट या इंस्टामार्ट पर डिलिवरी एक्जीक्यूटिव की नौकरी कर ले। उनके एक पोर्टफालियो संस्थापक ने ऐसा किया तथा उसने परिचालन और उपभोक्ताओं के व्यवहार को लेकर कई जानकारियां मिलीं।
अगर कोई व्यक्ति 17वें माले पर रहता है तो उसे अपार्टमेंट के ब्लॉक के गेट तक पहुंचने में पांच मिनट लगेंगे। इसके बाद भी ई-कॉमर्स का डिलिवरी बॉय रोज कई बार ऑर्डर देने के कुछ ही मिनट में आपके घर की घंटी बजा देता है। यह चमत्कार से कम नहीं। ठीक बोलने वाले कुत्ते की तरह।