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कोविड टीकाकरण के 3 रास्तों में से कौन सा?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 8:22 PM IST

कुछ लोगों को लगता है कि कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाया जाएगा। कोविड-19 के लिए कई टीके आएंगे। तमाम निजी लोग ये टीके खरीदेंगे। कई निजी कंपनियां अपने कर्मचारियों या ग्राहकों के लिए इस टीके की आंशिक फंडिंग करेंगी। देश में टीकाकरण को लेकर हमारी सोच में बाजार की प्रक्रिया और राज्य की क्षमताओं की सीमा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
कई बार हम एक विशालकाय सरकारी योजना के बारे में सोचते हैं जहां सभी टीके सरकार के हाथ में होंगे और हम सभी टीका लगवाने के लिए कतारबद्ध होंगे। परंतु हकीकत में हालात इससे अलग भी हो सकते हैं। कोविड-19 को लेकर तीन टीकों ने अच्छे नतीजे दिखाए हैं। कई और टीका परियोजनाओं के भी सफल होने की आशा है। दुनिया भर में तमाम प्रभावी टीके देखने को मिलेंगे। इन टीकों को लेकर अलग-अलग व्यवस्था बनानी होंगी। मसलन अलग-अलग टीकों को अलग-अलग तापमान पर रखना होगा। उनकी खुराक भी अलग-अलग हो सकती है, उनका प्रभाव और कीमत भी अलहदा हो सकती है।
बड़ी तादाद में लोग टीके चाहेंगे और वे इसके लिए भुगतान भी करने की मंशा रखेंगे। टीके की मांग और आपूर्ति दोनों होगी और यहां बाजार और मूल्य की स्थिति बनेगी। जल्दी ही हम सब के पास ऐसे किस्से होंगे कि आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने किस टीके को मंजूरी दी है और वह किस वेंडर के यहां किस दर पर उपलब्ध है। मानव समाज ऐसे ही काम करता है। भारत की बात करें तो हम ओईसीडी देशों की टीका मंजूरी प्रणाली से लाभान्वित होंगे और हमें यह पता होगा कि आखिर कौन से टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं।
कई कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए टीके खरीदेंगी। कई कंपनियां अपने ग्राहकों के लिए भी टीके खरीद सकती हैं। मसलन विमानन कंपनी अपने यहां नियमित उड़ान भरने वालों में से प्रत्येक के लिए 1,000 रुपये तो व्यय कर ही सकती है। ऐसा करने से उसे विमान परिवहन को एक बार पुन: सामान्य बनाने में मदद ही मिलेगी। टीका बेचने वाली कंपनियों और हजारों खुराक खरीदने वाले निकायों के बीच टीके की कीमत को लेकर भी मोलतोल देखने को मिलेगा।
सहकारी आवासीय समितियों ने महामारी के दौर में सहयोग का प्रदर्शन किया। उन्होंने मिलजुलकर किराना आदि खरीदा। उनमें से कई अब संगठित ढंग से किसी तय तारीख को टीकाकरण कार्यक्रम का संचालन करेंगी।
यह व्यवस्था सरकारी कार्यक्रम से बेहतर होगी। भारत सरकार के पास परिचालन क्षमता उतनी अधिक नहीं है। व्यक्तिगत स्तर पर लोगों के मन में सरकार से मिलने वाली चीजों की गुणवत्ता या असर को लेकर चिंता रहती है। टीके के मामले में भी कोल्ड चेन बरकरार रखने और समुचित प्रक्रियाओं का पालन होने न होने की दुविधाएं सामने रहेंगी। यदि सरकारी कार्यक्रम इन समस्याओं को दूर भी कर लेता है तो भी इसका पैमाना सीमित रहेगा। टीकाकरण का जुनून, प्रबंधन क्षमता और स्थानीय हालात को लेकर प्रतिक्रिया काफी अहम रहेगी।
प्रश्न यह है कि गड़बड़ी कहां हो सकती है? टीकों की आपूर्ति करने वाले कुछ निजी और सरकारी संस्थान जाने-अनजाने परिचालन में नाकाम हो सकते हैं। कुछ ब्रांड इसमें सफल होंगे और इसके लिए उन्हें लाखों लोगों के मन में स्थान हासिल होगा। जबकि इस प्रक्रिया में कुछ ब्रांड मिट्टी में मिल जाएंगे। उत्पादन-कोल्ड चेन और प्राथमिक आपूर्ति तक की पूरी समस्या शुरुआत में महंगी साबित होगी। मूल्य नियंत्रण के मामले में सरकारी हस्तक्षेप का खतरा भी है। यह सही नहीं होगा। बाजार में पहले ही बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा है। कई टीका निर्माता और स्वास्थ्य सेवा संस्थान इस होड़ में रहेंगे। शुरुआत में कीमतें अधिक होंगी और उसके बाद उनमें तेजी से कमी आएगी।
उदाहरण के लिए जांच और व्यक्तिगत संरक्षण उपकरण (पीपीई) बाजार में सरकारी हस्तक्षेप बहुत अधिक रहा। परंतु हमने देखा कि समय बीतने के साथ-साथ बाजार की ताकतों ने इन समस्याओं को हल कर दिया। मांग में तेजी की प्रतिक्रिया स्वरूप आपूर्ति में तेजी आई और इसके साथ ही इन उपकरणों की कीमतों में भी तेजी से गिरावट दर्ज की गई। इसी प्रकार यदि सरकारी ताकत का इस्तेमाल करके टीकों की कीमत पर नियंत्रण करने की कोशिश की गई तो इससे देश में टीकाकरण की गति धीमी होगी। यदि सरकार घोषणा करती है कि पीपीई या जांच के दौरान उठाए गए कदम दोहराए नहीं जाएंगे तो इससे जोखिम में कमी आएगी। ऐसे में टीकाकरण कारोबार में बड़े पैमाने पर निवेश सामने आएगा।
अब तक देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कोविड-19 के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुका है। सर्वेक्षणों के नतीजे बताते हैं कि शहरी गरीबों में काफी हद तक प्रतिरोधक क्षमता तैयार हो चुकी है। ऐसे में 35 से कम उम्र के युवाओं के लिए बेहतर होगा कि वे ऐंटीबॉडी टेस्ट करा लें और उसके सकारात्मक आने पर टीका न लगवाएं। इससे टीके की मांग में कमी आएगी।
देश के कुछ हिस्सों में जहां प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है वहां बिना अत्यधिक गहन टीकाकरण के ही हालात में बेहतरी आएगी और एक महीने या उससे कहीं अधिक समय में महामारी का अंत हो जाएगा। जब मामलों में कमी आनी शुरू हो जाएगी तो इसका टीके की मांग पर नकारात्मक असर होगा। साप्ताहिक तौर पर जारी होने वाले सीरोप्रीवलेंस सर्वे के आंकड़ों के सामने आने से स्थितियां और स्पष्ट होंगी। इन तमाम बातों को एक साथ रखकर देखें तो मांग में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। जैसे-जैसे सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता का विकास होगा और आपूर्ति बढ़ेगी, टीके की कीमत में कमी आएगी क्योंकि कंपनियां जमकर टीका उत्पादन करेंगी और निजी कंपनियां कोल्ड चेन आदि तैयार करेंगी।
नीति निर्माताओं को तीन रास्तों में से चुनाव करना होगा। पहला रास्ता यह है कि निजी कंपनियों को अफसरशाहों तक टीकाकरण सेवाओं की आपूर्ति करने और स्वास्थ्य व्यवस्था में टीकाकरण को लेकर सरकारी क्षमता विकसित करने का अवसर दिया जाए। दूसरा रास्ता यह है कि आम जनता के लिए केंद्रीय योजना के अनुसार टीकाकरण करने की सुविधा दी जाए लेकिन निजी क्षेत्र के टीकाकरण बाजार में भी किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जाए। तीसरा रास्ता यह है कि राज्य की शक्ति का इस्तेमाल करके निजी क्षेत्र के बाजार में हस्तक्षेप किया जाए। यानी आयात प्रतिबंध, चुनिंदा टीकों पर रोक, कीमतों पर नियंत्रण, निर्माताओं को सरकारी आपूर्ति के लिए मजबूर करने जैसे कदम उठाए जाएं। यदि ऐसा होता है तो सरकार के प्रवर्तन संबंधी उपायों की कठिनाइयों का सामना भी करना होगा।
(लेखक स्वतंत्र स्कॉलर हैं)

First Published : December 10, 2020 | 11:37 PM IST