केंद्र के बजट भाषणों में अब तक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) को बहुत कम जगह मिली है लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल अलग थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को अपने बजट भाषण में कृषि के बाद अपनी नौ बजट प्राथमिकताओं की सूची में ‘रोजगार एवं कौशल विकास’ को दूसरा स्थान दिया। विभिन्न सहयोगों के माध्यम से आईटीआई को बेहतर बनाने और रोजगार सृजन करने के लिए ‘रोजगार और कौशल विकास’ विषय मुख्य आधार बना, जिससे यह बजट पिछले कई बजट से काफी अलग साबित हुआ।
यह संयोग हो सकता है कि देश की स्वतंत्रता के तुरंत बाद रोजगार के मौके तैयार करने के लिए शुरू किए गए आईटीआई को आजादी के 100 वर्ष पूरे होने और 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य की तैयारी के केंद्र में लाया जा रहा है। आईटीआई एक बार फिर से प्रासंगिक हो गया है लेकिन सवाल यह है कि रोजगार सृजन के अपने प्राथमिक उद्देश्य के लिहाज से उच्च माध्यमिक विद्यार्थियों और स्नातकों को इंजीनियरिंग और गैर-इंजीनियरिंग कौशल देने के संदर्भ में आईटीआई किस जगह पर है?
केंद्र सरकार का कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय, आईटीआई और पूरे कौशल नेटवर्क को नियंत्रित करने वाली नीतियां बनाता है लेकिन इनमें से अधिकांश संस्थान, राज्य सरकारों या राज्यों द्वारा अधिकृत निजी संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं। ऐसे में केंद्र की नीति/पाठ्यक्रम और राज्यों की प्रशिक्षण और रोजगार देने की क्षमता के बीच बेमेलपन स्पष्ट है। कुशल प्रशिक्षकों की कमी, संसाधनों की कमी, प्लेसमेंट के अप्रभावी तरीके, पुराना पाठ्यक्रम और प्रयोगशालाओं में पर्याप्त उपकरण न होना वास्तव में कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका सामना आईटीआई को विभिन्न राज्यों में करना पड़ता है।
आईटीआई की स्थापना के दशकों बाद भी इन संस्थानों में प्रभावी प्लेसमेंट सेल स्थापित करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। पिछले अगस्त में श्रम एवं कौशल विकास पर संसदीय स्थायी समिति ने कौशल विकास मंत्रालय से आईटीआई के लिए प्लेसमेंट और उद्यमिता सेल स्थापित करने का आग्रह किया था। साथ ही समिति ने आईटीआई के लिए अपने स्नातकों के रोजगार की स्थिति पर डेटा अपलोड करना अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया, लेकिन कुछ राज्यों ने ही इन सिफारिशों पर अमल किया है। संसदीय समिति ने पाठ्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया जैसे कि डेटा विश्लेषण और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के क्षेत्रों में अधिकांश की अभी सार्थक शुरुआत नहीं हुई है।
नीति आयोग ने भी पिछले साल आईटीआई तंत्र से जुड़े एक अध्ययन का जिक्र किया जिसमें बदलाव के सुझाव दिए गए थे। अध्ययन में बुनियादी ढांचे, नियमन और पाठ्यक्रम सामग्री के लिहाज से मौजूदा तंत्र की कमजोरियों के बारे में बताया गया था और साथ ही व्यावसायिक शिक्षा की मान्यता के लिए एक केंद्रीय बोर्ड की स्थापना सहित सात सूत्री रणनीति का प्रस्ताव दिया गया था।
हालांकि, इस निराशाजनक पृष्ठभूमि के बावजूद कुछ उम्मीद की किरणें भी हैं। इस साल की शुरुआत में आई समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली के आईटीआई ने पिछले शैक्षणिक वर्ष में 72.3 प्रतिशत की प्लेसमेंट दर हासिल की और कई छात्रों को शीर्ष कंपनियों में नौकरी मिली। दिल्ली के कुछ आईटीआई 94 से 97 प्रतिशत तक की प्लेसमेंट दर हासिल करने में कामयाब रहे। दक्षिण भारत में तमिलनाडु में प्लेसमेंट के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2023 में प्लेसमेंट दर 80 प्रतिशत रही, जो पिछले वर्ष के 77.4 प्रतिशत से अधिक है।
रोजगार पर केंद्रित केंद्रीय बजट पेश किए जाने के कुछ दिनों के भीतर ही वाहन क्षेत्र से जुड़ी कंपनी ह्युंडै ने कौशल विकास योजना के तहत नौ राज्यों में कई सौ आईटीआई छात्रों के लिए नए रोजगार के मौके देने की घोषणा की। उसी दौरान तेलंगाना सरकार ने 65 सरकारी आईटीआई को उत्कृष्टता केंद्रों में बदलने के लिए टाटा टेक्नोलॉजीज के साथ साझेदारी की।
बजट की तैयारी के दौरान भी आईटीआई से संबंधित कुछ उत्साहजनक उदाहरण सामने आए। मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र में कई आईटीआई छात्रों की भर्ती जर्मनी से लेकर जापान, सऊदी अरब से लेकर इजरायल तक की विदेशी कंपनियों में की गई। यह राज्य, अंतरराष्ट्रीय प्लेसमेंट केंद्र भी स्थापित कर रहा है। हाल ही में, जर्मनी ने कथित तौर पर केरल के संस्थानों से लगभग 4,000 पेशेवरों की भर्ती, रेलवे की आधुनिकीकरण परियोजना के लिए की जिनमें आईटीआई जैसे संस्थान भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में हाल ही में बने सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों में से एक, आईटीआई शिकोहाबाद ने इलेक्ट्रिक वाहनों सहित नए पाठ्यक्रम शुरू किए।
आईटीआई की शुरुआत वर्ष 1948 में पुनर्वास मंत्रालय द्वारा विस्थापित व्यक्तियों के व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में हुई थी। दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में मौजूद अरब-की-सराय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान देश के सबसे पुराने आईटीआई में से एक है जिसका नाम कई बार बदला गया है।
आईटीआई के कई दशकों के उतार-चढ़ाव भरे सफर को आंकड़ों से समझा जा सकता है। भारत के लगभग 14,993 सरकारी आईटीआई में 2021-22 में लगभग 25 लाख सीट थीं। प्रशिक्षुओं की संख्या 12 लाख थी। नए नामांकन वर्ष 2014 में हुए 9,46,000 नामांकन से बढ़कर वर्ष 2022 में 12,40,000 (12 लाख) हो गए।
आईटीआई प्लेसमेंट पर व्यापक डेटाबेस के अभाव में, दिल्ली के लोकप्रिय पूसा आईटीआई के ताजा आंकड़ों पर गौर किया जा सकता है। वर्ष 2022 में कुल 659 छात्रों में से 409 की नौकरी लगी, वहीं 101 उच्च शिक्षा के लिए गए और 149 छात्रों की नौकरी नहीं लगी।
हालांकि आंकड़े भी कहानी बताते हैं लेकिन कुछ राज्यों और कुछ संस्थानों द्वारा अलग तरह से काम करने की कोशिशें भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं। केवल अधिक बजट खर्च से फर्क नहीं पड़ सकता। इसके बजाय केंद्र और राज्यों को सफल रोजगार के मौके की तलाश में एक नए दृष्टिकोण के साथ एक ही स्तर पर आना होगा।