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Vande bharat express: वंदे भारत मॉडल में यात्री प्रबंधन में सुधार की दरकार

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श्याम पोनप्पा   
Last Updated- June 02, 2023 | 10:45 PM IST

यात्रियों को ट्रेन सेवाओं का व्यापक अनुभव देने के लिए पूरी प्रणाली पर समग्रता से विचार करना होगा जिसमें अन्य बुनियादी ढांचे और सरकारी सेवाओं में बदलाव शामिल है। बता रहे हैं श्याम पोनप्पा

आजकल, वंदे भारत ट्रेनों को काफी अच्छी कवरेज मिलती है। यह ट्रेन परियोजना वास्तव में लक्ष्य की ओर अग्रसर टीम की उपलब्धि के बेहतरीन मॉडल की पेशकश करती है जो बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में भी संभव है।

हालांकि इसमें ट्रेन में चढ़ने से लेकर ट्रेन से उतरने की प्रक्रिया पूरी करने के दौरान उपयोगकर्ता के अनुभवों के विभिन्न पहलुओं का विस्तार करने की आवश्यकता है। विमानन कंपनियों की तरह यात्रियों के विमान में व्यवस्थित तरीके से चढ़ने और उतरने या मतदान केंद्र प्रणाली की तुलना में इस ट्रेन सेवा के दौरान भी यात्रियों के बेहतर प्रबंधन की दरकार है।

रेलवे बोर्ड के एक पूर्व सदस्य ने इस परियोजना की प्रशंसा करते हुए कहा कि चेन्नई में इंटीग्रल कोच फैक्टरी (ICF) के प्रेरणादायक, प्रतिभाशाली और प्रतिबद्ध रेलवे पेशेवरों की एक टीम ने इस परियोजना की कल्पना करने, उसकी योजना बनाने के साथ ही रिकॉर्ड समय में इस पर सफलतापूर्वक अमल भी किया।

तत्कालीन रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ए के मित्तल ने दो ट्रेनों के सेट की मंजूरी दी थी जिनमें से प्रत्येक का बजट 100 करोड़ रुपये था। इसको बहुत कम आधिकारिक समर्थन मिला था। लेकिन इसके बावजूद इसी बजट के साथ, इसका काम समय पर पूरा कर लिया गया।

चार साल पहले, सफल परीक्षणों के बावजूद कुछ जांच प्रक्रिया की वजह से परियोजना रोक दी गई जो आखिरकार ‘ट्रेन 18’ परियोजना की अग्रणी टीम के शीर्ष नेतृत्वकर्ता के खिलाफ दर्ज हुआ मामला अनुचित ही साबित हुआ। बाद में इसे ही ‘वंदे भारत’ नाम दिया गया। इस जांच में कुछ भी नहीं मिला लेकिन झूठे आरोपों से बरी होने के बावजूद बेहतर प्रदर्शन करने वाली टीम के लिए यह क्षति काफी बड़ी थी।

लेकिन आखिर ‘ट्रेन 18’ ही निशाने पर क्यों आई? इसकी वजह यह थी कि इसके पैरोकार आईसीएफ के महाप्रबंधक सुधांशु मणि की सेवा में महज 18 महीने बचे थे। उनका सपना था कि वह सेवानिवृत्त होने से पहले आईसीएफ को दशकों से स्थापित वैश्विक संचालन पर खरा उतारने की कोशिश की जाए।

इसका उद्देश्य अलग-अलग इंजनों और कोचों के डिजाइन को एक आधुनिक, एकल-इकाई वाले ट्रेन सेट में परिवर्तित करना था जो 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली क्षमता देने में सक्षम हो और इसके निचले ढांचे में ही सभी बिजली और सेवा प्रावधान की सुविधा तैयार की गई। (विवरण के लिए उनकी किताब ‘माई ट्रेन 18 स्टोरी’ पढ़ें)।

आईसीएफ टीम ने अच्छे नेतृत्वकर्ता, सलाहकारों और वेंडर साझेदारों के साथ एक ऐसी चुनौती का सामना किया जिसमें वैश्विक स्तर पर लगने वाले समय से दोगुना समय लगा लेकिन इसकी लागत आधी थी। एक ट्रेन सेट का 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सफल परीक्षण हुआ जिसका करीब 80 प्रतिशत हिस्सा स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया था और इसने प्रधानमंत्री का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया।

वर्ष 2019 में दो ट्रेन सेटों का संचालन शुरू हुआ। हालांकि इस परियोजना की शीर्ष टीम के खिलाफ सतर्कता कार्रवाई के कारण पूरी प्रक्रिया अचानक रोक दी गई। हालांकि बाद में सारे आरोप निराधार साबित हुए।

ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री की दिलचस्पी के परिणामस्वरूप तीन वर्षों के बाद इस कार्यक्रम की शुरुआत फिर से करनी पड़ी। अब 25 मई, 2023 तक 18 ट्रेन सेट संचालित हो रहे हैं और इसके अलावा भी सैकड़ों और ट्रेनों को संचालित करने की योजना है।

ट्रेनों के प्रदर्शन को लेकर कभी-कभी आलोचना होती रहती है जैसे कि इसकी गति अपेक्षाकृत धीमी है, (औसत गति 80 किमी/घंटा से अधिक है) और इसमें ऊर्जा की खपत अधिक है, या इसे जर्मनी, जापान या चीन (फाइनैंशियल टाइम्स) में कुछ खास नहीं माना जाएगा।

वंदे भारत, विदेशी ट्रेनों की तुलना में ऊर्जा खपत के लिहाज से अधिक बेहतर है और 20 अप्रैल को 14 मार्गों पर औसत गति 66 किमी प्रति घंटे से 96 किमी प्रति घंटे तक थी, जिसका औसत लगभग 80 किमी प्रति घंटा था। तुलनात्मक रूप से, 2016 में यूरोप में 300 किमी प्रति घंटे से कम रफ्तार वाले इंटरसिटी मार्गों पर रफ्तार, लगभग 80 किमी प्रति घंटे थी।

मणि की किताब पढ़ने या उनके टेडएक्स टॉक 4 को देखने से ही उनके उच्च स्तर के पेशेवराना रवैये और टीमवर्क का भान होता है जिसकी वजह से इस तरह के परिणाम देखने को मिले। यह ‘हार्डवेयर’ के संदर्भ में अच्छी उपलब्धि है। लेकिन अब सवाल यह भी है कि आखिर यह जिन यात्रियों के लिए बनाया गया था, उनके लिहाज से इसकी उपलब्धि क्या है?

ट्रेन 18 या वंदे भारत का डिजाइन और निर्माण वास्तव में बेहतर सोच और डिजाइन के लिहाज से अनुकरणीय है जिसकी शुरुआत सुरक्षा, गुणवत्ता और यात्रियों को आराम देने के मानदंडों को पूरा करने के साथ ही 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली ट्रेन सेवा देने से होती है।

वर्तमान में इसका विस्तार करने पर जोर दिया जा रहा है जो संभावनाशील है। हालांकि हमेशा की तरह इसमें और अधिक करने की गुंजाइश है जिसके तहत कम से कम 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के लिए पटरियों को उन्नत करना, आधुनिक सिग्नल व्यवस्था से लैस, लंबी दूरी के लिए स्लीपर ट्रेन तैयार करने के साथ ही पटरियों पर बैरियर लगाना आदि शामिल है।

निश्चित रूप से इसका दायरा और पैमाना बहुत बड़ा है। स्थानीय यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के साथ ही इंटरसिटी ट्रेनों को अद्यतन करने के लिए वंदे भारत से परे और भी सुविधाएं देने की आवश्यकता है। इन सेवाओं का उपयोग करने वाले यात्रियों को समकक्ष तंत्र के बराबर ही बेहतर प्रबंधन वाले दृष्टिकोण का लाभ नहीं मिलता है।

रेलवे को स्टेशन पर आने वाले यात्रियों की सुविधा के हिसाब से लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत है ताकि ऐसी (या किसी अन्य तरह) ट्रेनों में चढ़ने, उतरने, प्लेटफॉर्म छोड़ते वक्त ग्राहकों के अनुभवों में बड़े पैमाने पर सुधार लाया जा सके।

वंदे भारत ट्रेनों से उतरने और चढ़ने की प्रक्रिया अब भी व्यवस्थित नहीं है। ट्रेन सीमित समय के लिए प्लेटफॉर्म पर खड़ी होती है, ऐसे में परेशान यात्री और पोर्टर बाहर निकलने या चढ़ने के लिए अफरातफरी वाली स्थिति में रहते हैं। ऐसा लगता है कि एक व्यवस्थित तरीका बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। जहां तक बुनियादी ढांचे के विनिर्माण का संबंध है, इसमें यात्रियों के प्रबंधन के लिए भी उपयुक्त प्रणाली का प्रावधान होना चाहिए।

ट्रेन में चढ़ने के लिए आने वाले यात्रियों को भी एक व्यवस्थित प्रक्रिया के हिसाब से प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि ट्रेन में यात्री के परिवार के लोग या दोस्त भीड़ नहीं लगाएं और उनके कोच नंबर और बैठने के क्रम के अनुसार कतारें लगाई जाएं। आधे लोगों को एक तरफ और आधे लोगों को दूसरी तरफ खड़ा किया जाए, जहां प्रत्येक कोच के रुकने की उम्मीद है।

ठीक उसी तरह उतरते वक्त भी ट्रेन के डिब्बे के दोनों तरफ के हिस्सों का प्रबंधन पहले करने की आवश्यकता होती है, जिसमें प्लेटफॉर्म से बाहर निकलने के लिए एक स्पष्ट रास्त हो। ट्रेन के प्रत्येक कोच में चढ़ने के लिए व्यवस्था करने की जरूरत है जैसे कि सीट नंबर 1 से निकट के दरवाजे पर उस कोच के आधे नंबर तक के यात्री मौजूद हों जबकि बाकी सीट के यात्री ट्रेन के डिब्बे के दूसरे हिस्से के दरवाजे पर मौजूद हों। इस तरह की प्रक्रिया से यात्रियों को ट्रेन में चढ़ने से लेकर उतरने तक की बेहतर सेवाओं का अनुभव होगा।

यात्रियों को ट्रेन सेवाओं का व्यापक अनुभव देने के लिए पूरी प्रणाली पर समग्रता से विचार करना होगा जिसमें अन्य बुनियादी ढांचे और सरकारी सेवाओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव शामिल है। इसके अलावा रेल, सड़कों या फाइबर नेटवर्क का निर्माण करने के साथ-साथ ड्राइविंग मानदंड में स्पष्ट रूप से उपयोगकर्ता-केंद्रित सेवा अनुभवों को भी परिभाषित करने की आवश्यकता है।

इन प्रक्रियाओं को लक्ष्य केंद्रित करने की आवश्यकता होती है और इसके लिए ट्रेन के बुनियादी ढांचे से लेकर यात्रियों की सेवाओं से जुड़े तंत्र के विभिन्न पहलुओं के अनुकूल डिजाइन तैयार करने की आवश्यकता है जिसके बाद मानकों पर अमल निश्चित समय पर हो।

लक्ष्य की ओर निर्देशित सहयोगात्मक उपलब्धि का विस्तार और बुनियादी ढांचे तथा प्रशासन में इसको दोहराए जाने योग्य है और इसके लिए नेतृत्व और मार्गदर्शन देने के साथ ही प्रतिभा और इस तरह के अनुभवों की मिसालों का उपयोग किया जाए। फिर इसके लिए अतिशक्तिपूर्ण बयान की कोई जरूरत नहीं होगी क्योंकि इसके परिणाम ही सब कुछ बयान करेंगे जैसा कि ट्रेन 18 के मामले में हुआ है।

First Published : June 2, 2023 | 10:45 PM IST