Categories: लेख

महामारी की दूसरी लहर का प्रबंधन

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 4:26 AM IST

देश में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर क्या गड़बडिय़ां हुईं यह सबको पता है। सरकार ने दुनिया के अन्य देशों में दूसरी लहर के अनुभव की अनदेखी की और उचित तैयारी नहीं की। उसे टीका आपूर्ति बढ़ानी चाहिए थी और टीकाकरण की गति तेज करनी थी। उसे प्रतिबंध शिथिल नहीं करने थे। भारतीय मीडिया और विदेशी मीडिया दोनों ने इन बातों के लिए भारत सरकार की उचित आलोचना की है।
इन बातों की पड़ताल करने पर अचरज होता है। दुनिया के अन्य हिस्सों में दूसरी लहर साफ नजर आ रही थी। ऐसे में सरकार इसकी अनदेखी कैसे कर सकती थी? हमारी सरकार को शायद इस लहर की तीव्रता का अनुमान नहीं था। वैज्ञानिकों और सरकारी अर्थशास्त्रियों ने भी खतरे को कम करके आंका था।
सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार तथा दूसरी लहर का मॉडल तैयार करने वाले पैनल के सदस्योंं ने हमें बताया कि उनके मॉडल में महामारी की दूसरी लहर की इस तीव्रता का अनुमान नहीं था। इसमें अधिकतम रोजाना एक लाख मामलोंं का अनुमान था जबकि यह 4 लाख तक पहुंच गया। एक अन्य समूह के मुताबिक उसने वायरस के खतरनाक और बदलते स्वरूप का जिक्र किया था लेकिन मामलों के बारे मेंं अनुमान नहीं जताया था।
वर्ष 2020-21 की आर्थिक समीक्षा मेंं विस्तार से बताया गया है कि कैसे सरकार की महामारी से निपटने की नीति कारगर रही। समीक्षा में यह भी कहा गया कि इस वर्ष टीकाकरण शुरू होने के साथ ही भारत में दूसरी लहर की आशंका कमजोर हुई है। टीकाकारों का कहना है कि सरकार को टीकों की व्यापक आपूर्ति की योजना बनाकर टीकाकरण तेज करना था। वे शायद टीकों के चिकित्सकीय परीक्षण और दुष्प्रभावों के बारे में भूल गए। कुछ लोगों ने जोर दिया कि विदेशों में स्वीकृत टीकों को भारत में मंजूरी देने के पहले चिकित्सकीय परीक्षण किया जाए। टीकाकरण शुरू होने पर लोगों की प्रतिक्रिया भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं थी और तमाम टीके बेकार भी हुए।
कई लोग कहते हैं कि हमने बहुत जल्दी प्रतिबंध शिथिल कर दिए और हमें टीकाकरण के जोर पकडऩे तक प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। वहीं कई अन्य का मानना है कि यदि प्रतिबंध लागू रहते तो अर्थव्यवस्था का पतन हो जाता। विशेषज्ञों ने कहा कि हमारी विशिष्ट जनांकीय प्रोफाइल, जीन और जलवायु के कारण वायरस यहां सफल न हो सका। हमें अभी भी वायरस के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है। चीन ने अप्रैल के मध्य तक महज चार फीसदी आबादी का टीकाकरण किया था लेकिन वहां सबकुछ सामान्य है।
कहने का अर्थ यह है कि सरकार की ओर से महामारी प्रबंधन में चूक की जो आलोचना की जा रही है उसमें से बहुतेरी ऐसी है जिसका कोई आधार ही नहीं है। खासतौर पर सरकार ने जो तरीका अपनाया उसे अतार्किक नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसने विशेषज्ञों और हालात से मिली जानकारी पर कदम उठाए।
सरकार ने कोविड की दूसरी लहर से जन स्वास्थ्य को बचाने के लिए तो कदम उठाए लेकिन अर्थव्यवस्था को जो चुनौती मिली उसका क्या? दूसरी लहर में अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। पहली लहर में गिरावट का दौर था और अर्थव्यवस्था में काफी मंदी आई। अब वह वापसी कर रही है। दूसरी लहर में हालात उतने नहीं बिगड़ेंगे।
दूसरी बात, पहली लहर के दौरान पूरी दुनिया टीकों की तलाश में थी। अब टीकाकरण शुरू हो चुका है। आशा तो यही है कि टीकाकृत लोगों की तादाद बढ़ेगी और महामारी कमजोर पड़ेगी।
तीसरी बात, सरकार ने इस बार पूरा लॉकडाउन न लगाकर सूक्ष्म प्रबंधन पर बल दिया है। इससे भी अर्थव्यवस्था कुछ नकारात्मक प्रभावों से बची है।
चौथी बात, कॉर्पोरेट क्षेत्र इस बार महामारी के कारण उत्पन्न दिक्कतों से बेहतर ढंग से निपटने की स्थिति में है। पहली लहर के दौरान बैंकों की ओर से ऋण स्थगन और ऋण पुनर्गठन संबंधी प्रतिक्रिया में यह परिलक्षित हुआ। केवल 31 फीसदी कारोबारी ऋण ही ऋण स्थगन योजना में आया। सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों में यह 69 फीसदी रहा। विश्लेषकों के मुताबिक बैंकों के खातोंं मेंं महज दो फीसदी का पुनर्गठन हो रहा है जबकि पहले इसके 5-6 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था।
अब सरकार को क्या करने की आवश्यकता है? आशावादी परिदृश्य यही कहता है कि हमें मार्च 2020 जैसे लॉकडाउन की जरूरत नहीं है। मौजूदा प्रतिबंधों के साथ ही मामले नियंत्रण में आ सकते हैं। सरकार इसी अनुमान पर काम करती दिख रही है।
यदि यह अनुमान सही साबित हुआ तो शायद सरकार को अतिरिक्त राजकोषीय प्रोत्साहन न देना पड़े। बैंकिंग क्षेत्र पर जरूर नजर नजर रखनी होगी। पहली लहर के दौरान हुए अनुभव से पता लगता है कि अगर बैंकिंग क्षेत्र पहले की तरह इस झटके को भी झेल गया तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छा होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को जल्दी ही यह समझ में आ गया कि दूसरी लहर को देखते हुए बैंकों को और मदद की आवश्यकता होगी। उसने 5 मई को कुछ अन्य उपायों के साथ यह भी घोषणा कर दी कि बैंक 25 करोड़ रुपये तक के बकाया ऋण का पुनर्गठन कर सकते हैं, बशर्ते कि उन्होंने 31 मार्च, 2021 तक अपना कर्ज चुकाया हो। दूसरी लहर से प्रभावित लोगों और उपक्रमों के लिए यह समय पर उठाया गया कदम है।
यदि बैंक योजना का दुरुपयोग करें तो? यदि पुनर्गठन केवल समस्या को टालने के लिए किया गया तो? यह दायित्व बैंक बोर्डों पर है कि वे पुनर्गठन के मामलों पर नजर रखें। बैंक चाहेंगे कि एमएसएमई के लिए गैर निनष्पादित परिसंपत्ति वर्गीकरण की अवधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन कर दी जाए। आरबीआई को इसका प्रतिरोध करना चाहिए। पुनर्गठन सही है लेकिन जरूरी प्रावधानों की कीमत पर नहीं। सरकार को सरकारी बैंकों को पूंजी देनी चाहिए ताकि वे जरूरी प्रावधान कर सकें।
यदि दूसरी लहर को बिना देशव्यापी लॉकडाउन के रोका जा सकता है तो अर्थव्यवस्था को असल खतरा दूसरी लहर से नहीं बल्कि अमेरिका में ब्याज दर बढऩे और पूंजी के बहिर्गमन से उत्पन्न होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुनियादी ढांचे के लिए 4 लाख करोड़ डॉलर की व्यय योजना घोषित की है। वित मंत्री जेनेट येलेन ने हाल ही मेंं कहा अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ओवर हीटिंग (बढ़ती मांग की तुलना में उत्पादन न बढऩे से बढ़ी महंगाई) को देखते हुए ब्याज दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं।
भारत में दूसरी लहर मेंं बड़ी तादाद में लोगों की जान गई है। यदि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को थाम सकता है तो शायद हम आर्थिक कीमत चुकाने से बच सकें। इन अंधेरे दिनों मेंं यही एक अच्छी संभावना है।

First Published : May 26, 2021 | 9:14 PM IST