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Editorial: राजकोषीय मजबूती और केंद्र-राज्य कोष प्रबंधन पर जोर

वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 5.6 फीसदी के बराबर रहा जो 5.9 फीसदी के बजट अनुमान से कम है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 18, 2024 | 10:06 PM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अगले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी। बजट से अपेक्षाएं हैं कि करों को युक्तिसंगत बनाने, पूंजीगत व्यय बढ़ाने और रोजगार तैयार करने के मुद्दे इसमें अहम रहेंगे। यह संभव है कि पूर्ण बजट अंतरिम बजट के साथ तालमेल वाला होगा और मध्यम अवधि में सरकार की ओर से एक खाके की उम्मीद की जा सकती है।

समग्र राजकोषीय प्रबंधन की बात करें तो फिलहाल जो हालात हैं, महामारी के झटके का सामना करने के बाद केंद्र सरकार लगातार राजकोषीय मोर्चे पर घाटा कम करने की राह पर बढ़ रही है। वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 5.6 फीसदी के बराबर रहा जो 5.9 फीसदी के बजट अनुमान से कम है।

अंतरिम बजट के अनुसार सरकार इस वर्ष राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.1 फीसदी तक सीमित रख सकती है। फिलहाल सारा ध्यान जहां केंद्र सरकार पर है, वहीं वृहद आर्थिक प्रबंधन के लिए सबसे अहम बात है सामान्य सरकारी वित्त। स्पष्ट कहा जाए तो अधिकांश इजाफा केंद्रीय स्तर पर हुआ है लेकिन राज्यों को भी अपनी व्यवस्था सही रखने की जरूरत है।

इस संदर्भ में राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान का एक नया कार्य पत्र जो महामारी के बाद राज्यों की स्थिति की पड़ताल करता है, उसमें कहा गया है कि एक ओर जहां महामारी का असर राज्यों की वित्तीय स्थिति पर उतना नहीं पड़ा है जितना केंद्र सरकार की स्थिति पर पड़ा है तो वहीं राजकोषीय मजबूती की प्रतिबद्धता कमजोर हुई है।

महामारी के दौरान मामूली गिरावट के बाद राज्यों का कर राजस्व 2023-24 में बढ़कर जीडीपी के 7.8 फीसदी के बराबर हो गया। इस बीच राज्यों का पूंजीगत व्यय भी बढ़ा और उसमें एक वर्ष में 36 फीसदी का इजाफा देखने को मिला। बहरहाल पूंजीगत व्यय में इजाफे की भरपाई मोटे तौर पर अतिरिक्त उधारी से की गई। इसमें केंद्र सरकार का 50 वर्षों का ब्याज रहित ऋण भी शामिल है। ब्याज भुगतान भी व्यय का एक बड़ा हिस्सा है जो शायद अन्य खर्चों को पीछे छोड़ रहा है।

व्यापक आर्थिक प्रबंधन के नजरिये से देखें तो यह बात ध्यान देने लायक है कि शोध दर्शाते हैं कि आर्थिक विकास और राज्यों की राजस्व प्राप्तियों के बीच संबंध हैं। उच्च या संतुलित आर्थिक विकास वाले राज्यों मसलन कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र में कुल राजस्व में उनकी कर प्राप्तियों की हिस्सेदारी दो तिहाई तक रही है।

इसके उलट पिछड़े राज्यों में मिलेजुले रुझान देखने को मिले और 2022-23 में उन्होंने अपने राजस्व का केवल 44 फीसदी खुद जुटाया। इसका मतलब वे बाहरी मदद और उधारी पर अधिक निर्भर हैं। बहरहाल पूंजीगत व्यय और विकास संबंधी परिणामों के बीच का रिश्ता बहुत सीधा-सपाट नहीं है। प्रमाण बताते हैं कि पूंजीगत व्यय और सामाजिक व्यय का विकास संबंधी परिणामों पर अधिक प्रभाव नहीं है।

यह संभव है कि इन क्षेत्रों में होने वाला व्यय शायद इतना अधिक नहीं हो कि वह बहुत अधिक प्रभाव छोड़ सके। ऐसे में राज्यों को बेहतर परिणाम के लिए सही क्षेत्र में व्यय करना होगा। इससे राजस्व संग्रह सुधारने और केंद्रीय मदद पर निर्भरता कम करने में भी मदद मिलेगी।

आंकड़े बताते हैं कि राज्यों ने पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में चालू वर्ष में राजकोषीय घाटे के लिए अधिक बजट रखा है। यह बात भी रेखांकित करने लायक है कि केंद्र सरकार ने राजकोषीय मजबूती के लिए अहम प्रयास किए हैं वह भी बिना पूंजीगत व्यय में कमी लाए।

राज्यों को भी राजस्व संग्रह में सुधार के साथ अपने राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास करना चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों ही स्तरों पर सरकार की वित्तीय स्थिति को तत्काल बेहतर बनाने की आवश्यकता है। ऐसे में राजस्व बढ़ाने और फालतू व्यय कम करने के प्रयास करने होंगे। जीडीपी के 80 फीसदी तक हो चुके सार्वजनिक ऋण को कम करने के लिए ऐसा करना जरूरी है।

First Published : July 18, 2024 | 10:06 PM IST