लेख

अदाणी मामले ने पैदा किए सवाल

अदाणी मामले ने देश के कारोबारी संचालन मानकों और उसके वित्तीय बाजारों की ईमानदारी के बारे में संदेह उत्पन्न कर दिया है। बता रहे हैं जैमिनी भगवती

Published by
जैमिनी भगवती
Last Updated- February 27, 2023 | 10:43 PM IST

गत 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने के बाद से अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों के दामों में जो तीव्र गिरावट आई है उस पर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय टीकाकारों की नजर निरंतर बनी हुई है।

बहरहाल, इस बारे में तत्काल कोई सूचना उपलब्ध नहीं है कि अदाणी समूह की कंपनियों के मुद्रा बॉन्ड या अन्य प्रतिभूतियों अथवा ओवर द काउंटर डेरिवेटिव शॉर्ट हुए या नहीं। यहां शॉर्ट होने से तात्पर्य है कीमतों में कमी आने से चुनिंदा लोगों का लाभान्वित होना। इस बात की संभावना भी कम है कि ऐसा उन संस्थागत विदेशी निवेशकों ने किया होगा जो भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी के पास पंजीकृत हैं।

ऐसा इसलिए कि उनके लिए बिना पड़ताल अपने जोखिम का बचाव करना मुश्किल होता। व्यापक मुद्दा यह है कि क्या नियामकीय स्तर पर भी कमियां अथवा स्पष्ट चूक का मामला था क्योंकि देश के पूंजी बाजार और बैंकिंग क्षेत्र के माध्यम से हमारी अर्थव्यवस्था अदाणी समूह की कंपनियों से काफी हद तक जुड़ी हुई है। इसी प्रकार यह आलेख बताता है भारतीय नियामक ने अदाणी एंटरप्राइजेज के करीब 20,000 करोड़ रुपये मूल्य के एफपीओ खरीदने वाले सबस्क्राइबर को लेकर पूरे मामले में किस तरह अनदेखी की।

अहमदाबाद की अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) सूचीबद्ध कंपनी है और वह कोयला तथा लौह अयस्क उत्खनन पर केंद्रित है। अदाणी समूह की निम्नलिखित कंपनियों के नाम उनके कार्य क्षेत्र के बारे में संकेत देते हैं- अदाणी पोर्ट्स, अदाणी पावर, अदाणी ट्रांसमिशन और अदाणी ग्रीन एनर्जी। अदाणी समूह से एसीसी और अंबुजा सीमेंट में बहुलांश हिस्सेदारी खरीदी है। इसके अलावा अदाणी एयरपोर्ट्स होल्डिंग्स लिमिटेड (एएएचएल) भी एईएल की पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी कंपनी है। इसने जीवीके समूह से मुंबई एयरपोर्ट के प्रबंधन का काम हासिल किया है।

अदाणी समूह की कंपनियों के नाम से पता चलता है देश के बुनियादी ढांचा क्षेत्रों के लिए उनकी क्या अहमियत है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि समूह की कंपनियां सूचना प्रौद्योगिकी या कृत्रिम मेधा आधारित कारोबार में नहीं हैं जबकि इस क्षेत्र में तमाम कंपनियों ने भविष्य के राजस्व को देखकर जबरदस्त मूल्यांकन हासिल किया है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि अदाणी परिवार के सदस्य समूह की कंपनियों के शेयरों के गोपनीय लेनदेन में शामिल रहे ताकि कीमतों को कृत्रिम रूप से ऊंचा रखा जा सके।

इसके अलावा उसने यह भी कहा कि डेट-सर्विस कवरेज (डीएससी) और ब्याज कवरेज अनुपात (आईसीआर) भी काफी कम स्तर पर हैं। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रवर्तकों के पास अदाणी की कंपनियों की 75 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है और परिवार के सदस्यों ने कर रियायत वाले देशों से संचालन करके ऐसा किया है।

सेबी के नियमन के अनुसार किसी सूचीबद्ध कंपनी में न्यूनतम सार्वजनिक अंशधारिता 25 फीसदी है। यहां तक हिंडनबर्ग रिपोर्ट में इन आरोपों के बिना भी बाजार विश्लेषक इस बात से अवगत थे कि अदाणी की कंपनियों के शेयर असाधारण रूप से ऊंचे स्तर पर हैं। भारतीय म्युचुअल फंड भी अदाणी के शेयरों के समक्ष बहुत सीमित एक्सपोजर रखते हैं।

जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी ने अदाणी की कंपनियों के शेयरों में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है जबकि भारतीय स्टेट बैंक ने समूह की कंपनियों को 21,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया है। फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार अमेरिका और यूरोपीय बैंकों ने 2015 से 2021 के बीच अदाणी समूह की कंपनियों के करीब 83,000 करोड़ रुपये के कर्ज को निपटाया। यह आकार 2023-24 के बजट में ग्रामीण रोजगार गारंटी की मनरेगा योजना के लिए किए गए 60,000 करोड़ रुपये के आवंटन से भी अधिक है।

एलआईसी और स्टेट बैंक का जो जोखिम अदाणी समूह को लेकर है उस पर भी दोनों सरकारी संस्थानों के बोर्ड में अवश्य चर्चा की गई होगी। बाजार के संदर्भ में देखें तो भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण यानी आईआरडीएआई तथा रिजर्व बैंक को एलआईसी और स्टेट बैंक की उन बोर्ड बैठकों की चर्चाओं का अध्ययन करना चाहिए जहां अदाणी समूह की कंपनियों में निवेश करने संबंधी निर्णय लिए गए थे।

सेबी को भी यह देखना चाहिए कि क्या बंबई स्टॉक एक्सचेंज या नैशनल स्टॉक एक्सचेंज के बोर्ड सदस्यों ने अदाणी के शेयरों को सेंसेक्स या निफ्टी 50 में शामिल करने पर कोई सवाल उठाया। यह अहम मसला है कंपनियों के बजाय सूचकांक में निवेश की इच्छा रखने वाले लोगों या संस्थानों ने अनचाहे ही पोर्टफोलियो के जरिये अदाणी के शेयर खरीद लिए
होंगे।

अदाणी की सूचीबद्ध कंपनियों में से कुछ का डीएससी और आईएससी अनुपात कम है और हिंडनबर्ग रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के पहले भी उनका मूल्य-आय अनुपात बहुत अधिक यानी करीब 300 था। उम्मीद तो यही थी कि अदाणी समूह की कुछ कंपनियों बोर्ड सदस्य जो सेवानिवृत्त सरकारी अफसरशाह भी हैं, उन्हें पता होगा कि कम डीएससी/आईसीआर अनुपात तथा अस्वाभाविक रूप से ऊंचा मूल्य-आय अनुपात कमजोर वित्तीय स्थिति का सबूत है।

आंतरिक बाहरी अंकेक्षक भी अदाणी समूह की कंपनियों की वित्तीय स्थिति को लेकर चिंतित हो सकते हैं। इस अफवाह ने भी चिंता बढ़ाई है कि अदाणी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों का स्वामित्व नियामकीय दायरों के बाहर अदाणी परिवार के सदस्यों के पास ही है।

बहरहाल, यह माना जा सकता है कि रिजर्व बैंक और सेबी द्वारा बोर्ड बैठकों के ब्योरों की जांच परख से यही निकल कर आए कि नकदी प्रवाह विश्वसनीय रहा है और सब ठीक है। यह भी कि विकसित देशों के बॉन्ड बाजारों की उधारी का पुनर्भुगतान भी समयबद्ध रहेगा। इस बात की पुष्टि भी हो सकती है कि अदाणी समूह की कंपनियों के बोर्ड सदस्यों ने बाजार, ऋण और परिचालन से जुड़े जोखिमों को उजागर किया और प्रबंधन सभी चिंताओं को दूर करने में कामयाब रहा।

गत 17 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए आरोपों की जांच के लिए बनने वाले विशेषज्ञ समूह के नाम सील लगे लिफाफे में स्वीकार नहीं करेगा। अदालत ने कहा कि वह विशेषज्ञ चयन करेगी और पूरी पारदर्शिता रखेगी। यह सुखद है कि न्यायालय ने संकेत दिया है कि हिंडनबर्ग द्वारा अदाणी समूह की कंपनियों पर लगे आरोपों की जांच करने वाले अत्यंत ईमानदार विशेषज्ञ होंगे। आशा की जानी चाहिए कि हिंडनबर्ग के आरोपों की गहरी पड़ताल जल्दी पूरी होगी और रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा।

(लेखक भारत के पूर्व राजदूत एवं वर्तमान में सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के फेलो हैं)

First Published : February 27, 2023 | 9:21 PM IST