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सेसा गोवा- पिघलना शुरू

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 9:46 PM IST

लौह अयस्क का उत्पादन करने वाली कंपनी सेसा गोवा के शेयरों की कीमत में जून 2008 से 47 फीसदी की कमी आई है। इसकी वजह लौह अयस्क की कीमतों में आई कमी है।

जुलाई से लौह अयस्क की कीमतों में 30 फीसदी से भी अधिक का सुधार आया है और यह 130 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई हैं।

इसके अतिरिक्त 3,579 करोड़ की सेसा गोवा द्वारा बेचे जाने वाले लो ग्रेड लौह अयस्क की मांग में भी कमी आई है क्योंकि चीन अब इसकी कम खरीदारी कर रहा है क्योंकि इसकी प्रक्रिया में ज्यादा मात्रा में कोयले की जरूरत होती है।

चीन अब ब्राजील और आस्ट्रेलिया से उच्च स्तर वाला लौह अयस्क खरीद रहा है। इसी वजह से सेसागोवा की अगस्त की ढुलाई सालना आधार पर 53 फीसदी कम होकर 25 लाख टन रही।

विश्लेषकों का मानना है कि चीन के पत्तनों पर ऊंचे इनवेंटरीज और दूसरे देशों की बढ़ती आपूर्ति के बीच लो ग्रेड लौह अयस्क की मांग कुछ और समय तक धीमी रह सकती है।

चीन का पिग ऑयरन उत्पादन में जनवरी से जून 2008 के बीच सालाना आधार 8.8 फीसदी की कमी आई है। यह सी-बॉर्न लोहे की मांग को पूरा करने का मुख्य श्रोत है।

रिपोर्ट की मानी जाए तो उत्पादन में आठ सालों में पहली बार करीब एक फीसदी की कमी आई है और यह अगस्त में चार करोड़ टन रहा।

वित्त्तीय वर्ष 2007 में भी ग्रोथ 15 फीसदी के काफी ऊंचे स्तर पर रही जबकि वित्त्तीय वर्ष 2006 में 24 फीसदी के साथ काफी मजबूत रही। इसके अतिरिक्त बड़ी खनन कंपनियों जैसे बीएचपी बिलिटन और रियो टिंटो की आपूर्ति भी बढ़ रही है।

वित्त्तीय वर्ष 2008 की पहली छमाही में बीएचपी के उत्पादन में 14 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई जबकि रियो का उत्पादन 14.5 फीसदी बढ़ा।

आस्ट्रेलियन खनन कंपनियों की ओर से आपूर्ति में बढ़ोतरी हुई। इसी वजह से लौह अयस्क की कीमतों में भी तेजी से गिरावट आई जबकि  फ्रेट रेट भी घटे।

इस वजह से भारत को ब्राजील पर प्राथमिकता मिलती थी और सेसा गोवा के लौह अयस्क की मांग में भी कमी आई। सेसा गोवा की योजना 2011 तक उत्पादन बढ़ाकर 2.5 करोड़ टन तक करने की है जबकि मौजूदा समय में कंपनी 1.2 करोड़ टन का उत्पादन करती है।

साल 2007 में कंपनी काफी मात्रा बेच रही थी यद्यपि कंपनी ने ज्यादातर लंबी अवधि के सौदे किए हुए थे। यदि स्पॉट कीमतों में आगे कमी आती है तो कंपनी को अपने उत्पादन की विस्तार योजनाओं के बारे में सोचना पड़ सकता है।

मौजूदा बाजार मूल्य 103 रुपए पर कंपनी के शेयरों का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से चार गुना के स्तर पर हो रहा है।

भारत-अनिश्चित आय

बाजार अभी तक मध्य जुलाई के न्यूनतम स्तर 12,514 अंकों के स्तर पर नहीं पहुंच सकता है लेकिन बीएसई सूचकांक में आज दिन भर के कारोबार के दौरान 705 अंक गिरकर 12,558 अंकों के स्तर पर पहुंच गया।

निवेशक भी निराशा के घेरे में हैं विशेषकर अमेरिकी वित्त्तीय बाजार में चल रहे संकट और एशिया, ब्राजील और रूस की कमजोरी की वजह से। साल की शुरूवात से सूचकांक में 33 फीसदी की गिरावट के बाद वैल्यूएशन इस समय एक महीने पहले से ज्यादा आकर्षक है।

मौजूदा 13,315 अंकों के स्तर पर सूचकांक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 13 गुना के स्तर पर हो रहा है।

यह 18 सालों के औसत 15.6 गुना से 22 फीसदी कम है जबकि उच्चतम स्तर से 50 फीसदी कम है। ऐतिहासिक दृष्टि से भारत एक महंगा बाजार नहीं रहा है। हालांकि इस समय यह दूसरे एशियाई बाजारों से ज्यादा महंगा है।

कोरियाई बाजार का कारोबार 11 गुना के स्तर पर जबकि ताईवान का कारोबार नौ गुना के स्तर पर हो रहा है।

इस वजह से भी पूंजी दूसरे बाजारों में जा रही है। दूसरी वजह है कि कारपोरेट आय में बाजार के अनुमानों से अधिक की कमी आई है।

पिछले कुछ सालों में 25 से 30 फीसदी चढने के बाद आय के अब अनुमानित रूप से 15 से 18 फीसदी के लिहाज से बढने की संभावना है।

यह भी एक चुनौती हो सकती है। मैक्रो इकोनोमिक हालात एक महीनें पहले की तुलना में ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि तेल की कीमतों में करीब 40 फीसदी कमी आई है और इससे वित्त्तीय घाटे पर होने वाला नुकसान भी कम हुआ है।

इसके अतिरिक्त दूसरी अन्य कमोडिटी जैसे स्टील और एल्युमिनियम की कीमतों में भी कमी आई है। रुपए की कीमत में भी इस साल 16 फीसदी की कमी आई है और पिछले दो महीनों में यह छह फीसदी गिरा है।

इससे निर्यातकों को मदद मिलेगी लेकिन जिनके पास फॉरेन करेंसी लोन्स हैं, उन्हें यह सौदा महंगा पड़ेगा। इसके अतिरिक्त ब्याज दरों के ऊंचे बने रहने की संभावना है और कंपनियों को क्रेडिट आसानी से हासिल नहीं होगा।

इसलिए प्रोजेक्ट की फाइनेसिंग करना महंगा हो जाएगा। यदि पूंजीगत खर्चे कम होते हैं तो कारपोरेट लाभ निश्चित रूप से गिरेगा।

First Published : September 20, 2008 | 3:20 PM IST