रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी भू-राजनीतिक घटनाओं और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में तेजी से बढ़ोतरी के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में अधिकतर प्रमुख मुद्राओं में ज्यादा उतार-चढ़ाव देखा गया है।
वैश्विक अनिश्चितता की आंच भी रुपये में महसूस की गई और पिछले वित्त वर्ष के दौरान उसमें डॉलर के मुकाबले 7.8 प्रतिशत गिरावट आई, जो वित्त वर्ष 2019-20 के बाद से सबसे ज्यादा गिरावट है। वित्त वर्ष 2022 के अंत में रुपया 75.79 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था मगर 31 मार्च 2023 को यह 82.18 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
वर्ष 2013-14 में आए मुद्रा संकट के बाद यह दूसरा ऐसा मौका था। उस समय डॉलर के मुकाबले रुपया तकरीबन आठ फीसदी कमजोर हुआ था। मगर चीन की रेनमिनबी, दक्षिण कोरिया की वॉन, मलेशिया की रिंगिट और फिलिपींस की पेसो जैसी तमाम मुद्राओं की तुलना में रुपये ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
कोटक सिक्योरिटीज लिमिटेड में उपाध्यक्ष (करेंसी डेरिवेटिव्स और ब्याज दर डेरिवेटिव्स) अनिंद्य बनर्जी ने कहा कि वैश्विक भू-राजनीति और फेड दर बढ़ोतरी के कारण डॉलर के मुकाबले रुपये में वित्त वर्ष 23 के दौरान कुछ बड़ा बदलाव और अस्थिरता देखी गई है। हम उम्मीद करते हैं कि वित्त वर्ष 24 में उतार-चढ़ाव कम रहेगा क्योंकि केंद्रीय बैंक दर बढ़ाने का सिलसिला थाम सकते हैं और दरें घटाना शुरू कर सकते हैं।
उतार-चढ़ाव थामने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी मुद्रा बाजार में अपना दखल बढ़ाया है। विदेशी मुद्रा भंडार 1 अप्रैल, 2022 को 606 अरब डॉलर था, लेकिन उसी वर्ष 21 अक्टूबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में गिरकर 525 अरब डॉलर रह गया। बाद में उसमें इजाफा हुआ और यह भंडार 24 मार्च, 2023 को बढ़कर 579 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
मेकलाई फाइनैंशियल सर्विसेज के उपाध्यक्ष ऋतेश भंसाली ने कहा कि यूक्रेन-रूस युद्ध, बढ़े हुए दोहरे घाटे, मुद्रास्फीति और तेल के अधिक दामों के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में रुपये में मंदी का रुख रहा।
प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण रुपया 83.29 तक लुढ़क गया, जो उसका अब तक का सबसे कम स्तर था। मुद्रास्फीति पर लगाम कसने के लिए फेड ने दरों में वृद्धि की तो रुपये पर और मार पड़ी। विदेशी संस्थागत निवेशकों की निकासी ने उस पर दबाव और भी बढ़ा दिया।
हालांकि अमेरिकी फेड ब्याज दरों में और वृद्धि कर सकता है, लेकिन बाजार को उम्मीद है कि दरों में बढ़ोतरी का उसका सिलसिला थमने ही वाला है। सिलसिला थमा तो रुपये पर दबाव कम हो सकता है। वास्तव में चालू कैलेंडर वर्ष के पहले तीन महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपया 0.7 प्रतिशत मजबूत हुआ है।
भारत का चालू खाते का घाटा वर्ष 2022 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में गिरकर 18.2 अरब डॉलर (जीडीपी का 2.2 फीसदी) रह गया, जबकि उससे पिछली तिमाही में यह 30.9 अरब डॉलर (जीडीपी का 3.7 फीसदी) और अक्टूबर-दिसंबर, 2021 में 22.2 अरब डॉलर (जीडीपी का 2.7 फीसदी) था।