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Mutual funds: विदेशी निवेश सीमा बढ़ाने की मांग फिर उठी, रुपये पर दबाव बनी बाधा

विदेशी निवेश पर पाबंदी का विस्तार 2 साल से आगे होने पर फंडों की नई अर्जी

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अभिषेक कुमार   
Last Updated- February 07, 2024 | 10:15 PM IST

म्युचुअल फंडों ने एक बार फिर से विदेशी निवेश की सीमा में बढ़ोतरी किए जाने की कोशिश शुरू कर दी है। उद्योग के स्तर पर 7 अरब डॉलर की निवेश सीमा खत्म हो जाने के बाद बाजार नियामक सेबी ने दो साल पहले उनके विदेशी निवेश पर पाबंदी लगाई थी।

कुछ फंड हाउस ने निवेश सीमा में इजाफे के लिए हाल के हफ्तों में भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क किया है। केंद्रीय बैंक के साथ साझा किए गए एक प्रस्ताव में कहा गया है कि म्युचुअल फंडों के विदेशी निवेश की सीमा का जुड़ाव देश के विदेशी मुद्रा भंडार के साथ होना चाहिए। इससे निवेश सीमा में मानवीय स्तर पर संशोधन की जरूरत खत्म हो जाएगी।

आरबीआई को एक चीज ने सीमा में इजाफा करने से रोका है और वह है रुपये पर दबाव, जिसकी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध है। पिछले महीने एक कार्यक्रम में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि म्युचुअल फंडों की अंतरराष्ट्रीय निवेश सीमा में इजाफे पर फैसला तब लिया जाएगा जब केंद्रीय बैंक को भरोसा हो जाएगा कि दीर्घावधि आधार पर रुपया स्थिर है।

म्युचुअल फंड अधिकारियों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए म्युचुअल फंडों का विकल्प खोले जाने से रुपये की स्थिरता पर बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ा क्योंकि विदेशी धन प्रेषण के अन्य जरिये खुले हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विदेशी एमएफ योजनाओं में निवेशकों का आधार काफी छोटा है।

एक वरिष्ठ फंड अधिकारी ने कहा, किसी भी तरह से रकम तो निकल रही है, चाहे पर्यटन के लिए हो या फिर शिक्षा के लिए। ऐसे में एमएफ निवेश का विकल्प खोला जाना कोई मसला नहीं होना चाहिए। फंडों के जरिये विदेशी शेयरों में निवेश बहुत तेजी से नहीं बढ़ा है, इसके बावजूद इसे पोर्टफोलियो में विविधता का अहम जरिया माना जाता है।

मार्च 2023 में घरेलू फंड कंपनियों के विदेशी निवेश की वैल्यू 5.6 अरब डॉलर थी, जो मार्च 2022 के आंकडों से 13.5 फीसदी कम है। आरबीआई के आंकड़ों से यह जानकारी मिली। गिरावट की वजह विदेशी फंड योजनाओं में नए निवेश का अभाव रहा है। इसके अलावा विदेशी बाजारों में तेज गिरावट भी इसका एक कारण रही, खास तौर से अमेरिका में।

विदेशी इक्विटी निवेश पर पाबंदी आपात श्रेणी के लिए परेशानी पैदा करने वाला साबित हुई है। विदेश में निवेश करने वाले फंड ऑफ फंड्स मार्च 2020 और मार्च 2022 के बीच दोगुने होकर 45 हो गए क्योंकि फंडों ने मार्च 2020 में कोविड के कारण बाजार में आई गिरावट के बाद भौगोलिक विवधता के प्रति जागरूकता बढ़ा दी।

गैर-इक्विटी एमएफ योजनाओं के कराधान में बदलाव (जो 2023 के बजट का हिस्सा था) ने भी अंतरराष्ट्रीय फंडों का आकर्षण खत्म कर दिया। नए नियमों में उन निवेशकों को एमएफ योजनाओं में कर रियायत नहीं मिलेगी जिनका 35 फीसदी से कम आवंटन देसी इक्विटी में होगा। पहले सभी गैर-इक्विटी फंडों को इंडेक्सेशन का फायदा मिलता था, जिसके लिए जरूरी यह था कि निवेशक तीन साल से ज्यादा समय तक निवेशित रहें।

विदेशी फंडों ने वित्त वर्ष 24 में लगातार निकासी देखी है और निवेशकों ने अप्रैल-दिसंबर की अवधि में शुद्ध रूप से 2,700 करोड़ रुपये निकाले। म्युचुअल फंडों के अधिकारियों के मुताबिक निवेश निकासी की मुख्य वजह मुनाफावसूली थी। निवेश निकासी ने फंडों के लिए नए निवेश की खातिर अपनी योजनाएं दोबारा खोलने की गुंजाइश बनाई।

कैलेंडर वर्ष 2022 में लाल निशान के साथ बंद होने वाले अमेरिकी फंडों ने साल 2023 में 95 फीसदी का लाभ दर्ज किया। हालांकि साल 2024 में अमेरिकी बाजार के लिए परिदृश्य बहुत अच्छा नहीं दिखता। वैश्विक फंड मैनेजर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में खासी गिरावट का जोखिम भी देख रहे हैं।

First Published : February 7, 2024 | 10:05 PM IST