देश की प्रमुख आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) द्वारा सिटीग्रुप के बीपीओ कारोबार का अधिग्रहण थोड़ा महंगा साबित हो सकता है, क्योंकि ऐसे कारोबार आईटी सेवा कारोबार की तुलना में कम लाभप्रद हैं।
लेकिन इसके साथ-साथ सिटीग्रुप से किया गया 2.5 अरब डॉलर का एक और सौदा फायदेमंद है, क्योंकि इसका मतलब है राजस्व का निश्चितता। यह सौदा लगभग 9 वर्षों में पूरा किया जाना है। कंपनी को इस सौदे के लिए भुगतान को लेकर मुश्किल नहीं आएगी, क्योंकि इसके पास तकरीबन 3800 करोड़ रुपये की नकदी और तरल निवेश है।
पिछले कुछ वर्षों में सिटीग्लोबल सर्विसेज लिमिटेड (सीजीएसएल) की बिक्री 25 फीसदी की दर से बढी है और इसके ईबीआईटी (ब्याज एवं कर पूर्व आमदनी) प्रॉफिट मार्जिन में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस हिसाब से इस निवेश पर प्रतिफल हासिल करने में करीब 8-9 साल लग सकते हैं। हालांकि इस सौदे से कुछ ही वर्षों में सौदा आय-में इजाफा दिखने लगेगा।
टीसीएस को अपने बीपीओ कारोबार को खड़ा करने में काफी समय लगा है। जून, 2008 की तिमाही में इसके 6,410 करोड़ रुपये के राजस्व में बीपीओ कारोबार की भागीदारी महज 6 फीसदी है। बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी सीजीएसएल के अधिग्रहण से टीसीएस को अपना उत्पाद पोर्टफोलियो सुधारने में मदद मिलेगी।
सीजीएसएल को नकदी, व्यापार, कंज्यूमर लोन और मॉर्गेज में विशेषज्ञता हासिल है और इसने कई स्वामित्व अनुप्रयोगों को अंजाम दिया है। टीसीएस अन्य बड़े और छोटे बैंकों के साथ बुनियादी मंच का स्पष्ट रूप से फायदा उठाएगी।
कंपनी के प्रबंधन को भरोसा है कि यह अगले साल के शुरू में ग्राहकों को बिक्री शुरू करने में सक्षम हो जाएगी। वहीं विश्लेषकों का अनुमान है कि सीजीएसएल वित्त वर्ष 2010 में टीसीएस के राजस्व में तकरीबन 3 फीसदी का योगदान करेगी।
सीजीएसएल को अपनी झोली में डालने के बाद अब टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या 22,500 हो जाएगी। फिलहाल टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या 10,000 है। इसके साथ ही सिटीग्रुप पांच शीर्ष कंपनियों में शामिल हो जाएगी। 2002 में स्पेक्ट्रामाइंड का अधिग्रहण करने वाली विप्रो का बीपीओ राजस्व जून की तिमाही में तकरीबन 386 करोड़ रुपये रहा है।
जून की तिमाही में इन्फोसिस का बीपीओ राजस्व तकरीबन 306 करोड़ रुपये रहा जो इसके कुल राजस्व का 6.3 फीसदी है। इस क्षेत्र में छोटी कंपनियों के साथ सत्यम का इस तिमाही में राजस्व महज तकरीबन 50 करोड़ रुपये है।
वित्त वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही : गिरावट का सत्र
बाजार में लंबे समय से उतार-चढ़ाव बना हुआ है जिसका असर सितंबर की तिमाही की आय पर भी पड़ा है। पूरी दुनिया के बाजारों में बिक्री की रफ्तार मंद हुई है और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। इस साल की शुरुआत के बाद से सूचकांक 44 फीसदी की गिरावट के साथ 11,328 पर आ गया है।
पिछले एक महीने में इसमें 24 फीसदी की गिरावट आई। शेयरों की कीमत में उछाल आना निश्चित नहीं है। घरेलू म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों ने सौदों के लिए तलाश शुरू कर दी है। यदि आय अपेक्षा से थोड़ी कम रही तो भविष्य में बाजार में और गिरावट आ सकती है। जून की तिमाही का परिणाम थोड़ा बेहतर रहा। लेकिन सितंबर की तिमाही को लेकर विश्लेषक आशान्वित नहीं हैं।
कोटक सिक्योरिटीज ने आय में 12 फीसदी की गिरावट आने की आशंका जताई है। इस नुकसान के लिए तेल कंपनियों को हुए घाटे, ऑटोमोबाइल कंपनियों के कम लाभ जैसे कारण काफी हद तक जिम्मेदार हैं। सीमेंट, मेटल्स और यूटीलिटीज के मुनाफे पर दबाव पड़ सकता है।
हालांकि ओएनजीसी का परिणाम बेहतर रहने और इससे आमदनी में इजाफा होने की संभावना है। आईटी कंपनियों को रुपये के कमजोर होने से मदद मिलेगी, लेकिन यूरो के मुकाबले डॉलर की कीमत में बढ़ोतरी से उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
एसएसकेआई का मानना है कि जहां कैपिटल गुड्स निर्माता कंपनियां 24-29 फीसदी के बीच उच्च राजस्व दर्ज करेंगी वहीं स्टील की अधिक कीमतों के कारण ऑपरेटिंग मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है।
वैश्विक वित्तीय संकट गहराता जा रहा है और प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी की मार झेल रही हैं। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था भी इसकी चपेट में आए बगैर नहीं रह सकेगी। सख्त तरलता ने उत्पादन और खपत पर दबाव डालना पहले ही शुरू कर दिया है।