इन्वेस्टेक इंडिया में इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के प्रमुख मुकुल कोछड़ का कहना है कि बाजार में गिरावट ने अनुकूल निवेश का माहौल बना दिया है, भले ही निवेशक धारणा सुस्त बनी हुई हो। समी मोडक को दिए ईमेल इंटरव्यू में कोछड़ ने कहा कि सबसे विश्वसनीय निवेश दृष्टिकोण कम कीमत वाले शेयर का चयन करना और उसे लंबे समय तक बनाए रखना है। बातचीत के अंश:
क्या बिकवाली के बाद बाजार आकर्षक हो गया है?
जब बाजार धारणा कमजोर होती है तो मूल्यांकन अक्सर अधिक आकर्षक स्तर पर पहुंच जाते हैं। हमने हाल में अपने सालाना प्रमोटर और संस्थापक सम्मेलन की मेजबानी की जिसमें 100 से अधिक कंपनियों से जुड़ी लगभग 6,000 निवेशक बैठकें आयोजित की गईं। कंपनियों और निवेशकों दोनों के बीच मौजूदा मूड खासा सुस्त था। बावजूद, हमारा मानना है कि हाल में बाजार में आई गिरावट ने निवेश के लिए अनुकूल परिदृश्य बना दिया है। निफ्टी का फॉर्वर्ड मल्टीपल इस समय 17 गुना के आसपास है जो उसके दीर्घावधि औसत से कुछ नीचे है। इससे उचित मूल्यांकन का संकेत मिलता है। लेकिन गिरावट के बाद भी एनएसई मिडकैप सूचकांक निफ्टी के मुकाबले 38 प्रतिशत प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है जो उसके ऐतिहासिक दायरे के ऊपरी छोर के नजदीक है।
क्या आपको हाल के दिनों की तरह तेज रिकवरी की उम्मीद है या इस बार बाजार को नुकसान की भरपाई में समय लगेगा?
इक्विटी बाजार में रिकवरी और बॉटम को हमेशा अतीत के दृष्टिकोण से देखा जाता है जिससे उनके समय के बारे में पूर्वानुमान लगाना जोखिम भरा हो जाता है। बाजार के उतार-चढ़ाव का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश करने के बजाय कम मूल्य वाले या अधिक कीमत वाले शेयरों की पहचान करने पर ध्यान देना ज्यादा कारगर होता है। वहीं, धैर्यपूर्वक उन कारकों की प्रतीक्षा करें जो उनके वास्तविक मूल्य को उजागर करेंगे।
प्रमुख घरेलू और वैश्विक चुनौतियां क्या हैं?
घरेलू चुनौतियों में राष्ट्रीय राजनीति और सुधारों की धीमी रफ्तार शामिल है। द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की ओर बढ़ रही दुनिया में भारत को विकसित बाजार के ट्रेडिंग ब्लॉकों के साथ जुड़ने की आवश्यकता है। वैश्विक मोर्चे की बात करें तो सुस्त आर्थिक वृद्धि बाजारों के लिए चुनौती है क्योंकि दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (अमेरिका) अपने आकार और खर्च को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। परिणामस्वरूप अमेरिका की वृद्धि 2024 के 2.8 प्रतिशत से धीमी पड़कर 2025 में 2.3 प्रतिशत रहने की संभावना है।
क्या चीन के उभार ने भारत का आकर्षण घटा दिया है?
सितंबर के अंत से चीन के बाजार में तेजी के साथ-साथ भारतीय बाजार से धन की निकासी हुई है। साथ ही ‘ट्रम्प ट्रेड’ और डॉलर के मजबूत होने से भी बिकवाली दबाव बढ़ गया। इन कारकों और भारत के बाजार में ऊंचे मूल्यांकनों ने पूंजी निकासी को बढ़ावा दिया है और रुपये की गिरावट को बढ़ाया है। इस मौद्रिक कमजोरी से धारणा और ज्यादा कमजोर हुई है और विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली बढ़ी है। खुद से मजबूती का चक्र जारी रहा है। लेकिन हम अल्पावधि में इसके पलटने की उम्मीद कर रहे हैं। भारत में कीमतें सामान्य होने, डॉलर में नरमी और व्यापार की स्थिति में सुधार से विदेशी निकासी थम सकती है।
आप कौन से क्षेत्रों पर सकारात्मक और नकारात्मक हैं?
हम वित्त को लेकर उत्साहित बने हुए हैं और बड़े बैंकों, बीमा कंपनियों तथा पूंजी बाजार फर्मों को शामिल कर रहे हैं। हमने वाहन, फार्मास्युटिकल और डिस्क्रेशनरी संबंधित खपत क्षेत्रों – खासकर एल्कोहलिक बेवरेज और अच्छी गुणवत्ता के आभूषणों- के साथ साथ यूटिलिटीज पर सकारात्मक रुख अपना रखा है। उद्योगों में, हमने खास रसायन कंपनियों, प्रमुख निर्माण फर्मों और खास इलेक्ट्रॉनिक निर्माण सेवा प्रदाताओं को पसंद किया है। इसके विपरीत, हम कंज्यूमर स्टैपल और सूचना प्रौद्योगिकी पर अंडरवेट बने हुए हैं।