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हारेगा वो हर बाजी, जब खेलें हम जी-जान से…

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 10:00 PM IST

आतंकवाद से लड़ने वाला कोई देश, फुटबॉल के गोलकीपर सरीखा होता है। भले ही अपनी मुस्तैदी से उसने सैकड़ों आतंकी हमले होने से रोक लिए हों, मगर कोई एक हमला ही सफल हो जाने से सब गुड़गोबर हो जाता है।  पॉल विल्किंसन
बरसों से शायद ही कोई हफ्ता या महीना ऐसा निकला हो, जब पुलिस-खुफिया एजेंसियों ने आतंकवादियों की धर-पकड़ करके बड़े आतंकी हमले की साजिश को नाकाम करने के लिए अपनी पीठ न थपथपाई हो।

मगर जैसा कि हर बार होता है, इस बार भी दिल्ली के दहलते ही लोग उसकी पिछली सारी चौकसी भूल कर इस दहशत में आ गए कि आतंक के खिलाफ चल रही इस लड़ाई में हम कहीं हार तो नहीं रहे हैं? यही नहीं, आतंकियों के इस ‘गोल’ के बाद बदस्तूर होने वाली धरपकड़ से कई खतरनाक आतंकी साजिशों का खुलासा भी बाजार-कारोबार पर छाए दहशत के काले बादलों का रंग और स्याह कर रहा है।

ऐसे में यह सवाल लाजिमी ही है कि जान-माल को निगलने वाले ‘अदृश्य’ दुश्मन के सामने हम खुद को शिकार बना कर थाली में आखिर कब तक पेश करते रहेंगे? क्या बिल्कुल बेबस हैं हम?

भय से तब तक ही डरना चाहिए, जब तक वह सामने न आया हो।  पंचतंत्र

विशेषज्ञ ही नहीं, अब तो देश का हर खासो-आम शख्स यह मानने लगा है कि मौजूदा हालात में जरूरत आतंक से आतंकित होने की नहीं, साहस से उसका मुंहतोड़ जवाब देने की है।

क्योंकि दहशत के इस दानव ने कई बरसों से भारत समेत दुनियाभर में लाखों लोगों की जिंदगी तो बरबाद की ही है, कारोबार की रीढ़ तोड़कर यह बचे-खुचे लोगों की जिंदगियों को भी यह मौत से बदतर बनाने में लगा हुआ है।

अगर सिर्फ अमेरिका की ही बात की जाए, तो 911 के आतंकी हमले के बाद से वह इसके गंभीर आर्थिक नुकसान झेल रहा है। इसके चलते हो रहे कारोबारी नुकसान के कारण 911 के बाद से वहां के उद्योगों ने तकरीबन दो लाख लोगों को नौकरी से निकाला। न्यूयॉर्क शहर में फैली दहशत ने बाजारों की बिक्री में 1.7 अरब डॉलर का चूना लगाया।

इसके अलावा, दुनियाभर में जहां विमान उद्योग को इसने 15 अरब डॉलर की चपत दी, वहीं बीमा कंपनियों के 50 अरब डॉलर भी इसकी भेंट चढ़ गए। जाहिर है, भारत के बाजार और कारोबार भी गहरे नुकसान से रूबरू हो रहे होंगे, जिसका अंदाजा लगाने और कदम उठाने का वक्त अब आ चुका है।

मित्र से, अमित्र से, ज्ञात से, अज्ञात से, हर कहीं से हम अभय हों। हम सब निर्भय हों और सब दिशाओं के लोग हमारे मित्र बनकर रहें।   अथर्ववेद

वेदों का यह श्लोक न सिर्फ समूचे देश और समाज की खुशहाली के लिए की जाने वाली एक प्रार्थना है बल्कि कारोबारी जगत के लिए तो यही समृध्दि का मूल मंत्र है।

लिहाजा बम धमाकों से फैली दहशत से बिगड़ती जा रही हमारे देश की कारोबारी सेहत सुधारने के लिए सरकार को आतंकवादियों के सफाई अभियान के साथ-साथ इस दिशा में भी बिना एक क्षण भी गंवाए गंभीर कदम उठाने चाहिए।

मसलन, निजी क्षेत्र से आर्थिक-भौतिक सहयोग लेकर सरकार को बाजार-कारोबार और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के सुरक्षा के हर पहलू को चाकचौबंद करना चाहिए। इन जगहों को निशाना न बनाया जा सके, इसके लिए खुफिया तंत्र भी यहां लगातार सक्रिय रहना चाहिए।

प्रमुख जगहों पर सर्विलांस (निगरानी) प्रणाली का दायरा भी बढ़ाए जाने की जरूरत है।
बांटों और राज करो अच्छी कहावत है लेकिन एक होकर आगे बढ़ो, इससे भी अच्छी कहावत है।  गोथे
चाहे वह किसी भी संप्रदाय के अतिवादी दल हों, या फिर आतंकवादी, दोनों के क्रियाकलापों से देश की एकता में दरार गहराती जा रही है।

जबकि कारोबार हो या समाज, दोनों की उन्नति तभी हो सकती है, जब सामाजिक एकता अक्षुण्ण हो। लिहाजा इस लड़ाई में सरकार और निजी क्षेत्र, दोनों को यह ध्यान रखना पड़ेगा कि आतंक और आतंकवादी का समूल सफाया करना है, न कि अपनी एकता का।

जीत…, हर हाल में। चाहे कितनी भी दहशत मन में भरी हो, चाहे कितना भी समय लगे और जीत का रास्ता चाहे जितना भी कठिन हो। क्योंकि अगर जीते नहीं तो हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।  विंस्टन चर्चिल

जान-माल यानी समूचे अस्तित्व पर ही आन पड़े इस संकट से चल रही खतरनाक जंग में देश को हर हाल में जीतना ही होगा। मगर सवाल यह उठता है कि कैसे? क्योंकि हम ही नहीं अमेरिका समेत तमाम अगुआ देश भी इसी माथापच्ची में जुटे हुए हैं।

ऐसे में ऐसी ही जटिल गुत्थियों को सुलझाने के लिए शुरू हुए व्यापार गोष्ठी से बेहतर मंच तो बिजानेस स्टैंडर्ड के लिए कोई हो ही नहीं सकता था। हमें पूरी उम्मीद है कि यह गोष्ठी देश के नीति निर्धारकों के लिए जवाबी हमले की रूपरेखा तय करने में बेहद कारगर साबित होगी।

First Published : September 21, 2008 | 11:21 PM IST