बाजार

विदेशी निवेश को गिरावट से ठेस

बिकवाली की इस लहर ने मुख्य सूचकांकों को भी नीचे गिरा दिया है और निफ्टी का अभी तक का इस साल का रिटर्न सितंबर के 21 प्रतिशत के ऊंचे स्तर से घटकर 11% रह गया है।

Published by
सुन्दर सेतुरामन   
Last Updated- November 10, 2024 | 10:26 PM IST

अक्टूबर से बड़ी बिकवाली के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का निवेश प्रवाह 2024 में इस साल जनवरी से अब तक (वाईटीडी) ऋणात्मक हो गया है। यानी इस साल जितना निवेश किया, उससे ज्यादा निकाल लिया। सितंबर के शुरू में यह निवेश 22,000 करोड़ रुपये (1 जनवरी से) की ऊंचाई पर पहुंच गया था।

बिकवाली की इस लहर ने मुख्य सूचकांकों को भी नीचे गिरा दिया है और निफ्टी का अभी तक का इस साल का रिटर्न सितंबर के 21 प्रतिशत के ऊंचे स्तर से घटकर 11 प्रतिशत रह गया है।

एफपीआई के रुझान में बदलाव के  मुख्य कारण

एफपीआई के रुझान में बदलाव के तीन मुख्य कारण रहें हैः– चीन के आक्रामक प्रोत्साहन उपायों की वजह से वहां के बाजारों सुधार, फेडरल रिजर्व के दरों को लेकर नरम रुख अपनाने के बावजूद अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में मजबूती और भारतीय कंपनियों के जुलाई-सितंबर तिमाही के कमजोर नतीजे।

मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी ने कहा, ‘तीन मजबूत वर्षों के बाद अर्थव्यवस्था चक्रीय मंदी की ओर बढ़ रही है। इसका संकेत पिछली दो तिमाहियों की कॉरपोरेट आय से मिलता है। आय में इस मंदी के बावजूद बाजार अपने ऊंचे मूल्यांकन के करीब बने हुए हैं। एफपीआई के लिए काफी विकल्प उपलब्ध हैं। इसलिए कई बाहर निकल गए हैं और यह रुझान जारी रहने की संभावना है।’

हाल के महीनों में चीन के प्रोत्साहन उपायों ने उसके शेयर बाजारों को ऊंचा बढ़ाया है जो भारत के मूल्यांकन के मुकाबले आधे से भी कम पर कारोबार कर रहे थे। परिणामस्वरूप कुछ निवेशकों ने अपना पैसा भारत से निकालकर चीन में लगा दिया है।

शुक्रवार को चीन की सर्वोच्च विधायी संस्था ने 1.4 लाख करोड़ डॉलर के अतिरिक्त प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की लेकिन वह उम्मीदों से कम था। विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि भारतीय शेयरों के लिए चीन का खतरा कम हो गया है। लेकिन कमजोर आय के साथ-साथ बढ़ते अमेरिकी डॉलर और ट्रेजरी यील्ड अब बड़ी चुनौती बन गए हैं।

पिछले सप्ताह अपनी बैठक में फेड ने नीतिगत दर 25 आधार अंक तक घटा दी। इससे पहले सितंबर में दरों में 50 आधार अंक की कटौती की गई थी। फिर भी, 10-वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी का यील्ड सितंबर के निचले स्तर 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4.49 प्रतिशत तक पहुंच गया है। अमेरिका और भारत के बीच दर में अंतर घटने से एफपीआई अक्टूबर में भारतीय डेट के शुद्ध बिकवाल बन गए।

अमेरिकी डॉलर मजबूत होने और बढ़ते यील्ड से कई उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव पड़ा है जिनमें रुपया भी शामिल है। रुपया पिछले सप्ताह डॉलर की तुलना में 84.4 के निचले स्तर पर आ गया। रुपये के कमजोर पड़ने से अल्पावधि में एफपीआई निवेश की आवक पर और ज्यादा प्रभाव पड़ सकता है।

हालांकि केयरऐज रेटिंग्स का मानना है कि जैसे-जैसे अमेरिकी नीति के संबंध में स्थिति स्पष्ट होगी, मध्यावधि के दौरान एफपीआई के निवेश में वापसी हो सकती है जिससे रुपये पर दबाव कम हो सकता है। फिर भी सुस्त आय वृद्धि से जुड़ी चिंताएं निवेशक मनोबल पर दबाव बनाए रख सकती हैं।

जेएम फाइनैंशियल ने तिमाही नतीजे पेश कर चुकीं 157 कंपनियों के विश्लेषण किया। इससे पता चलता है कि 44 प्रतिशत (69 कंपनियां) अनुमान के मुकाबले प्रदर्शन नहीं कर पाईं, जबकि 41 प्रतिशत (65 प्रतिशत) अनुमान से बेहतर करने में सफल रहीं। शेष 15 प्रतिशत कंपनियों ने अनुमान के अनुरूप प्रदर्शन दर्ज किया।

ब्रोकरेज के अनुसार एफएमसीजी, खुदरा और मोटर वाहन क्षेत्रों की शहरी मांग में मंदी, रसायन और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में नरमी तथा बैंकों और कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के असुरक्षित ऋण खातों में फंसे कर्ज की समस्या ने वित्तीय प्रदर्शन को प्रभावित किया है।

First Published : November 10, 2024 | 10:26 PM IST