Categories: बाजार

नकदी से हुईं टाइट तो कंपनियां लाईं राइट्स

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 10:46 PM IST


जनवरी से शुरू हुए ऋण संकट के दौर और उसके बाद इक्विटी में आई गिरावट से भारतीय प्रवर्तकों के लिए कोष जुटाना कठिन हो गया है। ऋण की अधिक लागत और शेयर मूल्यों के कम होने से भारतीय कंपनियां पूंजी जुटाने के खयाल से अब अपने ही शेयरधारकों का रुख कर रही हैं। इस कैलेंडर वर्ष में सितंबर तक भारतीय कंपनियों ने राइट्स इश्यू के जरिए रेकॉर्ड 28,000 करोड़ रुपये जुटाए जो साल 2007 में जुटाई गई राशि से साढ़े तीन गुनी अधिक है। वास्तव में, अभी आए टाटा मोटर्स और हिंडाल्को, प्रत्येक के राइट्स इश्यू द्वारा 1-1 अरब डॉलर (कुल मिलाकर 9,000 करोड़ रुपये अधिक) जुटाए जाने की उम्मीद है। क्या वजह है कि कंपनियां कोष जुटाने के लिए इस तरीके को अपना रही हैं और इसके मायने क्या हैं, आइए जानते हैं।




कॉर्पोरेट नजरिया


अपनी जरूरतों के लिए कोष जुटाने के खयाल से कंपनियां पारंपरिक तौर पर राइट्स इश्यू के विकल्प का चयन करती आई हैं और साथसाथ हिस्सेदारी घटाने से बचती आई हैं। इससे शेयरधारकों को भी फायदा होता है। निवेश बैंकरों और विश्लेषकों का मानना है कि कठिन बाजार परिस्थितियों में बिना नियंत्रण खोये राइ्ट्स के जरिए कोष जुटाना तर्कसंगत है और फॉलोऑन ऑफर, क्वालिफायड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट या प्राइवेट इक्विटी के मुकाबले ज्यादा उपयुक्त हैं। प्राथमिक बाजार आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली कंपनी प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक पृथ्वी हल्दिया कहते हैं, ‘कंपनियों के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं क्योंकि बाजार की स्थिति अच्छी नहीं है।’ अधिक ब्याज दरों पर पैसे उगाहना भी ऐसे वातावरण में सही विकल्प नहीं है जब आर्थिक विकास की दर मंद हो रही हो। एक तरफ जहां कुछ कंपनियां अपनी परियोजनाओं में देर कर रही हैं वहीं दूसरी कंपनियां जैसे हिंडाल्को, टाटा मोटर्स और सुजलॉन को समय पर ऋण का पुनर्भुगतान करना है या फिर अधिग्रहणों को पूरा करना है और वे साधन जुटाने में ज्यादा देर नहीं कर सकती हैं। इन कंपनियों का मामला सटीक है लेकिन क्या इससे इश्यू के अभिदान में मदद मिलेगी?




दीर्घावधि का मामला


आमतौर पर कंपनियां शेयरधारकों को लुभाने और अभिदान के लिए आकर्षित करने के लिहाज से बाजार मूल्य की अपेक्षा कम कीमत पर राइट्स इश्यू की पेशकश करती हैं। लेकिन कम समय में राइट्स इश्यू के जरिए पैसे जुटाना कठिन है खास तौर से बाजार के अस्थिर होने की दशा में तो मामला प्रतिकूल भी हो सकता है। उदाहरण के लिए दो कंपनियांइंडियन होटल्स और अवध शुगरके शेयरों का कारोबार छह महीने तक निर्गम मूल्य से कम कीमत पर किया जा रहा था और उनके राइट्स इश्यू बंद होने के एक महीने बाद तक शेयरों की कीमत वैसी ही बनी रही। बाजार परिस्थितियां सही नहीं होने और उद्योग का परिदृश्य कमजोर होने से शायद ऐसा संभव हुआ। निवेश सलाहकार एसपी तुलसियान कहते हैं, ‘अल्पावधि के लिए राइट्स इश्यू में पैसा लगाना ज्यादा फायदे का सौदा नहीं है। इसमें पैसा तभी लगाएं जब आप दीर्घावधि के लिए निवेश करना चाहते है ताकि कंपनी द्वारा किए गए निवेश से लंबी समयावधि में अच्छा मुनाफा कमाया जा सके।’ वर्तमान परिस्थिति में जहां टाटा मोटर्स और हिंडाल्को के राइट्स इश्यू घोषणा के समय रहे शेयर की कीमतों के मुकाबले काफी कम हैं वहीं अगर अस्थिर बाजार परिस्थितियों और समायोजन (इक्विटी घटाने) की वजह से राइट्स इश्यू के मूल्य कम होने का कोई मायने नहीं रह जाता। हल्दिया कहते हैं कि आदर्श तौर पर ‘बंदी के समय अभिदान करने वाले खुदरा निवेशकों को बाजार मूल्य पर 10 प्रतिशत की छूट मिलनी चाहिए।’ विश्लेषक कहते हैं कि कठिन बाजार परिस्थितियों के दौरान सबसे अधिक फायदा संस्थानों और प्रवर्तकों को होता है क्योंकि उन्हें बाजार से कम कीमत पर एक बार में ही अच्छी संख्या में शेयर मिल जाते हैं।




नया तरीका


टाटा मोटर्स का राइट्स इश्यू शायद पहला ऐसा निर्गम होगा जिसमें डिफरेन्शियल वोटिंग राइट्स (डीवीआर) होंगे। इससे पहले पैंटालून रिटेल ने जुलाई महीने में 110 बोनस इश्यू देते समय अपने शेयरधारकों को डीवीआर जारी किया था। वारेन बफेट की कंपनी बर्कशायर हाथवे और गूगल जैसी कंपनियां डीवीआर जारी करती आई हैं लेकिन भारत में यह बिल्कुल नया है। एक तरफ जहां साधारण शेयर आपको मतदान के साथसाथ लाभांश के लिए भी अधिकृत करता है वहीं डीवीआर के मामले में मतदान के लिए आपके पास 10 डीवीआर होने चाहिए (टाटा मोटर्स और पैंटालून के मामले में)। मतदान करने की सीमा के बदले आपको 5 प्रतिशत अधिक लाभांश भुगतान किया जाता है। पैंटालून रीटेल के प्रबंध निदेशक किशोर बियाणी कहते हैं, ‘आप एक अलग उपकरण तैयार करते हैं जिसमें मतदान करने का अधिकार कम है। इस प्रकार बिना अधिक नियंत्रण खोये कोई कंपनी कोष जुटाने में सक्षम हो पाती है। यह तरीका बड़ा प्रचलित है लेकिन इसमें तेजी आना प्रवर्तकों और उनके नजरिये पर निर्भर करता है। अगर निवेशक कम मालिकाना हक और अधिक प्रतिफल पाकर संतुष्ट हैं तो फिर इसे क्यों नहीं अपनाया जाए।’


निवेश का उपकरण जो भी हो, खुदरा निवेशकों को कारोबारी पेशकश के भविष्य को देखते हुए निवेश करना चाहिए। आइए कुछ प्रमुख निर्गमों पर नजर डालें जो बाजार में उपलब्ध हैं या आने वाले कुछ महीनों में आने वाले हैं।




टाटा मोटर्स


जहां टाटा मोटर्स की आरंभिक योजना निर्गम के जरिए 7,200 करोड़ रुपये जुटाने की थी, वहीं इक्विटी की कीमतों में गिरावट के मद्देनजर यह 4,200 करोड़ रुपये के लिए पेशकश करेगी। जगुआर लैंड रोवर के अधिग्रहण के लिए जुटाए गए ऋण के पुनर्भुगतान के लिए टाटा मोटर्स को 3 अरब डॉलर (13,500 करोड़ रुपये) की आवश्यकता है। अनुमान है कि एक तरफ जहां टाटा संस और इस समूह की कंपनियां, जिनकी हिस्सेदारी टाटा मोटर्स में 33.39 प्रतिशत की है, शेयरों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएंगी, वहीं विश्लेषकों का कहना है कि एलआईसी और न्यू इंडिया एश्योरेंस भी बाजार मूल्य पर छूट मिलने और अतिरिक्त लाभांश मिलने के कारण ‘ए’ ऑर्डिनरी शेयर खरीद सकती हैं। साधारण शेयर की कीमतें वर्तमान मूल्य से कम होने केकारण इसका अभिदान कम होने के आसार हैं। इससे अभिदान नहीं किए गए हिस्से को हथियाने में टाटा ग्रुप को मदद मिल सकती है। कारोबारी नजरिये से देखें तो टाटा मोटर्स के पास अभी दो ज्वलंत मुद्दे हैं जिन्हें कुशलता से निपटाने की आवश्यकता है। पहला मुद्दा है नैनो परियोजना के लिए वैकल्पिक जगह ढूंढना और जल्द इसे मूर्त रूप देना। दूसरी चुनौती है जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) को चलाना, खास तौर पर कम प्रदूषण नियमों पर खरा उतरने के लिए शोध गतिविधियों पर होने वाला अधिक खर्च भी इसमें शामिल है। जून 2008 में (जब टाटा ने जेएलआर का अधिग्रहण किया था) जेएलआर ने 580 लाख डॉलर का मुनाफा कमाया था। मुनाफे वाले परिचालन को जारी रखने के लिए वैश्विक बाजार में मंदी के समय में नए उत्पादों तथा तकनीकों के लिए शोध एवं अनुसंधान के लिए निवेश करना कठिन है। घरेलू स्तर पर सुस्त कारोबारी माहौल से हालात सुधरने में मदद नहीं मिल रही। अप्रैल से सितंबर 2008 के दौरान व्हीकल की बिक्री मात्र 5 प्रतिशत बढ़ी है और 2.77 लाख इकाइयां बेची गई हैं। इसका श्रेय लाइट कॉमर्शियल व्हीकल को जाता है (साल दर साल इसमें 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।)




रैमको सिस्टम्स


रैमको सिस्टम्स ईआरपी (इंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) एप्लिकेशन विकसित करने वाली कंपनी है। ईआरपी एप्लिकेशन के प्रयोग से किसी ऑर्गेनाइजेशन के विभिन्न क्षेत्रों की व्यावसायिक प्रक्रियाओं का एकीकरण किया जाता है। वर्षों तक सतत शोध एवं अनुसंधान तथा निवेश करने के बाद रैमको वह पहली कंपनी बनी जिसने इंटरनेटइनैबल्ड सॉफ्टवेयरऐजए सर्विस इस साल फरवरी में भारत में लॉन्च की। ऑनडिमान्ड ईआरपी नामक इस सॉफ्टवेयर के सॉफ्टवेयर मॉड्यूल के लिए मासिक शुल्क देकर ग्राहक बना जा सकता है। रैमको सिस्टम्स इंडिया के इंटरप्राइज सॉल्यूशन के उपाध्यक्ष चेतक पाठक कहते हैं, ‘यह आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर, रख रखाव और सहायता संबंधी जरूरतों का खयाल रखता है। ऑनडिमान्ड ईआरपी 3 से 5 वर्षों की समयावधि में पारंपरिक ईआरपी के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक सस्ता साबित होगा।’ ऑनडिमान्ड ईआरपी की आक्रामक विपणन नीति तथा उधारी (75 करोड़ रुपये)घटाने के लिए रैमको राइट्स इश्यू (वारंट सहित) के जरिए 195.82 करोड़ रुपये जुटाना चाहती है। पिछली जुलाई में कंपनी ने दो इक्विटी शेयर पर तीन राइट्स शेयर (75 रुपये मूल्य के) के आवंटन की घोषणा की थी।


निर्गम की समीक्षा के बाद राइट्स पेशकश और वर्तमान बाजार मूल्य में केवल एक रुपये का फर्क है जिससे पेशकश की कीमत अनाकर्षक हो जाती है। कई वर्षों से कंपनी को नुकसान हो रहा है और कोष के लिए वह तरजीही और राइट्स इश्यू (अभी तक 336 करोड़ रुपये) का सहारा लेती आई है। विश्लेषकों के अनुसार कंपनी की नवीनतम पेशकश ऑनडिमान्ड ईआरपी की मार्केटिंग किस प्रकार की जाती है, इस पर रैमको का भविष्य निर्भर करता है हालांकि छोटे एवं मझोले उद्योगों के बाजार का एक बड़ा हिस्सा अभी भी खुला है। कंपनी को भरोसा है कि ऑनडिमान्ड ईआरपी सेवा की बदौलत इस साल मुनाफा कमाएगी (वित्त वर्ष 2009 की प्रथम तिमाही में समेकित परिचालन घटा मात्र 74 लाख हुआ था)। कंपनी के लगभग 150 ग्राहक हैं और 2,000 लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। प्रत्येक से 7,500 रुपये मासिक लिए जाते हैं (वार्षिक आय 18 करोड़ रुपये)। वित्त वर्ष 2009 के अंत तक इस इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर लगभग 5,000 होने की उम्मीद है और अगले वित्त वर्ष में इसक 10,000 होने की आशा है। कंपनी की आय में इससे अच्छी खासा इजाफा होगा। और चूंकि कंपनी अधिकांश खर्चों का वहन कर चुकी है इसलिए इसके लाभ में बढ़ोतरी होनी चाहिए। कंपनी के विकास की कहानी शुरू होने वाली है। विश्लेषकों का मानना है कि अल्पावधि के लाभ की दृष्टि से बाजार से कम मूल्य पर इसके शेयरों की खरीदारी करना ज्यादा उचित साबित हो सकता है।




हिंडाल्को


पिछले साल कनाडाई कंपनी नोवेलिस इंक. के अधिग्रहण के लिए हिंडाल्को इंडस्ट्रीज ने 3 अरब डॉलर यानी तकरीबन 12,900 करोड़ रुपये ऋण के जरिये जुटाए थे। अब कंपनी ब्रिज लोन की अदायगी के लिए 5,000 करोड़ रुपये के राइट इश्यू के साथ आगे आई है। बाकी 8600 करोड़ रुपये की रकम की व्यवस्था आंतरिक स्रोतों और एक अधिक ब्याज दर के हिसाब से अरब डॉलर के ताजा ऋण के जरिये की जाएगी।


कंपनी फिलहाल 4.8 फीसदी सालाना की दर से ब्याज चुकाती है जो लिबोर (14.4 करोड़ डॉलर का सालाना ब्याज देने के बाद) का 0.3-0.8 फीसदी है। हालांकि कंपनी 6.8 फीसदी की ब्याज दर से 1 अरब डॉलर का ताजा ऋण ले रही है जिससे इसे ऋण स्तर में गिरावट के कारण 342 करोड़ रुपये बचाने में मदद मिलेगी जिसके बदले में राइट इश्यू के कारण इक्विटी में संभावित 43 फीसदी की गिरावट आएगी। विश्लेषकों का मानना है कि कम ऋण से कंपनी को भविष्य की विस्तार योजनाओं के लिए अपनी बैलेंस शीट को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। विस्तार योजनाओं के तहत अगले दोतीन साल में इसकी क्षमता में 50 फीसदी तक का इजाफा किया जाएगा जिस पर तकरीबन 19,800 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है।


अगर दूसरे पहलू पर बात करें तो एल्युमिनियम की कीमतों में और खपत में कमी भी चिंता की बात है। पिछले 5 महीनों में एल्युमिनियम की कीमतों में 29 फीसदी की गिरावट आई है। एल्युमिनियम व्यवसाय में बिक्री से 37 फीसदी और इस व्यवसाय से 83 फीसदी ईबीआईटी (ब्याज और कर पूर्व आय) हासिल करने वाली हिंडाल्को प्रभावित होगी। वित्त वर्ष 2008 में भी वसूली में 11 फीसदी की कमी के कारण एल्युमिनियम व्यवसाय में ईबीआईटी में 17 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसके तांबा कारोबार की राजस्व में 63 फीसदी की भागीदारी है। यह कारोबार बढ़ रहा है, लेकिन इसके कम मार्जिन के कारण मुनाफे में योगदान काफी कम है। एल्युमिनियम कारोबार में 33.9 फीसदी की तुलना में तांबा कारोबार का ईबीआईटी मार्जिन 4.2 फीसदी है।


हिंडाल्को की सहयोगी कंपनी नोवेलिस के प्रदर्शन को लेकर विश्लेषकों ने भी चिंता जताई है। कंपनी ने अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में निवेश किया है और इसलिए इन बाजारों में मंदी वृद्घि के लिए अवरोधक साबित हो सकती है। अन्य चिंताएं उच्च कीमत वाले अनुबंधों की वजह से पैदा हुई हैं जो नोवेलिस ने अपने ग्राहकों के साथ किए हैं। हालांकि नोवेलिस ऐसे अनुबंधों में अपना निवेश घटा रही है। वित्त वर्ष 2007 में इसकी राजस्व भागीदारी 18 फीसदी थी जो वित्त वर्ष 2008 में तकरीबन 10 फीसदी रह गई। इसके अलावा नोवेलिस परिचालन और अन्य खर्च को कम करने का प्रयास कर रही है। इसका असर वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही के परिणाम में स्पष्ट रूप से देखने को मिला। कंपनी ने वित्त वर्ष 2008 की पहली तिमाही के 14.2 करोड़ डॉलर के नुकसान की तुलना में 2009 की पहली तिमाही में 2.5 करोड़ डॉलर का शुद्घ मुनाफा दर्ज किया।


कुल मिला कर, मंद कारोबार माहौल और 96 रुपये प्रति शेयर की ऑफर कीमत के कारण यह राइट इश्यू निवेशकों के लिए कम आकर्षक है।




सुजलॉन एनर्जी


सितंबर में 1800 करोड़ रुपये के राइट्स ऑफर की घोषणा के बाद सुजलॉन एनर्जी का शेयर 15.71 फीसदी लुढ़क गया वहीं सूचकांक में 4.4 फीसदी की गिरावट आई। कंपनी ने जर्मन स्थित आरईपावर सिस्टम्स में मार्टीफेर की 22.48 फीसदी हिस्सेदारी 27 करोड़ यूरो में खरीदने के लिए कोष जुटाने की योजना बनाई है। आरईपावर सिस्टम्स सुजलॉन की 66 फीसदी हिस्सेदारी वाली सहयोगी कंपनी है। इस अधिग्रहण को लेकर समझौता 15 दिसंबर, 2008 तक हो जाने की संभावना है जिसके बाद आरईपावर में सुजलॉन की हिस्सेदारी बढ़ कर 90 फीसदी हो जाएगी। इस ऑफर के आकार से संबंधित विस्तृत ब्योरा आना अभी बाकी है।


आरईपावर ने 2007 में 2.112 करोड़ यूरो का शुद्घ लाभ दर्ज किया था। यदि कैलेंडर वर्ष 2008 में मुनाफे में 20 फीसदी का इजाफा होता है तो इससे आय पर 5.2 फीसदी का प्रभावी असर पड़ेगा। इसके अलावा आरईपावर कई और रास्ते अपना कर भी फायदा उठा सकती है जिनमें उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार और यूरोप एवं चीन जैसे तेजी से उभरते बाजारों में अपनी मौजूदगी का विस्तार आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा सुजलॉन आरईपावर की श्रेष्ठ प्रौद्योगिकी का पूरा फायदा उठाएगी। आरईपावर भी दिसंबर, 2008 तक अपनी क्षमता 1250 मेगावाट से बढ़ा कर 1700 मेगावाट करने जा रही है।


इधर सुजलॉन की क्षमता भी मार्च 2009 तक 2700 मेगावाट से बढ़ कर 5700 मेगावाट हो जाएगी। इसके अलावा गियर बॉक्स निर्माता हेनसेन ट्रांसमिशंस (71.3 फीसदी हिस्सेदारी) के अधिग्रहण के जरिये एकीकरण के उपायों से विंड टर्बाइन जेनरेटर के निर्माण के लिए सुजलॉन को जरूरी प्रमुख कलपुर्जों की समय पर और सुरक्षित रूप से आपूर्ति करने में मदद मिलेगी। हेनसेन भी अपनी क्षमता 3600 मेगावाट से बढ़ा कर 14,600 मेगावाट करने जा रही है जिसका इस्तेमाल सुजलॉन द्वारा किया जाएगा। इसके अलावा अन्य कंपनियों को बिक्री के लिए भी इस क्षमता का इस्तेमाल किया जा सकेगा। बहरहाल, सुजलॉन द्वारा बुक किए गए 3,039.5 मेगावाट या 16,491 करोड़ रुपये के ऑर्डर से कंपनी को अच्छाखासा राजस्व हासिल हुआ है। कुल मिला कर यह उद्योग तेजी से फलफूल रहा है और कंपनी पूरे वैल्यू चेन की क्षमता में इजाफा कर रही है।




डिश टीवी


डायरेक्टटुहोम (डीटीएच) सेवा प्रदाता डिश टीवी के लिए वित्त वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही उपभोक्ताओं की संख्या के लिहाज से श्रेष्ठ तिमाही है। कंपनी ने वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही के 4 लाख उपभोक्ताओं की तुलना में वित्त वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में कंपनी ने 5.3 लाख उपभोक्ता जोड़े। इसके साथ ही कंपनी का उपभोक्ता आधार बढ़ कर 39.4 लाख हो गया है। इसी तरह इसकी बाजार भागीदारी 57 फीसदी हो गई है। लेकिन कीमत को लेकर इसे संघर्ष करना पड़ रहा है। डिश टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स रियायती कीमत पर उपलब्ध करा रही है। टाटा स्काई के सेट टॉप बॉक्स की कीमत 2990 रुपये की तुलना में इसकी शुरुआती कीमत 1990 रुपये काफी कम है। इसके कारण इसके ग्राहक का औसतन खरीद खर्च में इजाफा हुआ है। यह खर्च वित्त वर्ष 2008 के 1800 रुपये था जो अब 2500 रुपये हो गया है और प्रबंधन ने संकेत दिया है कि वित्त वर्ष 2009 में यह बढ़ कर 2800 रुपये हो सकता है। डिश टीवी ने अपनी आक्रामक उपभोक्ता अधिग्रहण रणनीति को सतत रूप से बरकरार रखने के लिए अपना पूंजीगत खर्च बढ़ा कर 1600 करोड़ रुपये किया है। कंपनी राइट्स इश्यू के जरिये 1140 करोड़ रुपये जुटा रही है जिससे इसके कमजोर बैलेंस शीट को मजबूती मिलेगी। कंपनी पर 508 करोड़ रुपये का ऋण है और 31 मार्च, 2008 को इसका घाटा 652.3 करोड़ रुपये था।


सन टीवी, रिलायंस, भारती एयरटेल और वीडियोकॉन के रूप में नए प्रतियोगियों के आ जाने से प्रतिस्पर्धा और कड़ी हो सकती है जो डिश टीवी और टाटा स्काई के विपरीत एमपीईजी-4 तकनीक का इस्तेमाल करेंगे। डिश टीवी और टाटा स्काई एमपीईजी-2 तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। एमपीईजी-4 तकनीक सुपीरियर क्वालिटी की तस्वीर पेश करती है और एमपीईजी-2 के ही अनुरूप है, लेकिन इसमें कुछ असमानताएं हैं। एमपीईजी-4 के सेटटॉप बॉक्स एमपीईजी-2 के फॉर्मेट की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा मंहगे हैं। नई कंपनियों के पास अच्छीखासी पूंजी है जिससे वे लंबे समय तक घाटे का मुकाबला करने में सक्षम हैं। रिलायंस और भारती की भी पहुंच व्यापक है जिसका वे फायदा उठा सकती हैं। इन कारकों से इस कारोबार में कंपनियों के मूल्यांकन पर भार पड़ सकता है। इसमें डिश टीवी भी शामिल है जिसकी


शेयर कीमत में 2008 में 75 फीसदी की गिरावट आई थी।


विश्लेषकों को वित्तीय वर्ष 2010 में 1.8 करोड़ के कुल डीटीएच उपभोक्ता आधार में लगभग 50-60 फीसदी सीएजीआर का अनुमान है। वित्त वर्ष 2008 में डिश टीवी को 413.2 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था जो टाटा स्काई के घाटे 865 करोड़ रुपये से काफी कम है। वित्त वर्ष 2012 तक डिश टीवी के लाभ की स्थिति में आ जाने की संभावना है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि डिश टीवी उन निवेशकों के लिए उपयुक्त बनी हुई है जो लंबे समय के लिए इसके साथ जुड़े रहने को तैयार हैं।



 


 

First Published : October 5, 2008 | 8:22 PM IST