कोविड-19 के बीच पिछले सप्ताहांत भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में बैंकों की बैलेंस शीट पर संभावित दबाव का असर सोमवार को निवेशकों की अवधारणा पर नजर आया।
3.6 फीसदी की गिरावट के साथ निफ्टी बैंक इंडेक्स ने सोमवार को 200 दिन के मूविंग एवरेज से नीचे कारोबार किया। उसने न सिर्फ बाजार के अग्रणी सूचकांकों के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन किया बल्कि क्षेत्रीय सूचकांकों में सबसे ज्यादा गंवाने वाला इंडेक्स भी रहा। वास्तव में सोमवार को बीएसई सेंसेक्स में 0.5 फीसदी गिरावट की मुख्य वजह बैंकिंग शेयरों को ही माना गया। परिसंपत्ति गुणवत्ता पर असर की आशंका पहले से ही थी, लेकिन नियामक की तरफ से उसे रेखांकित किया जाना महत्वपूर्ण असर छोड़ गया।
इसके अलावा सप्ताहांत में एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक आदित्य पुरी की तरफ से अक्टूबर में रिटायरमेंट से पहले सर्वाधिक हिस्सेदारी बेचा जाना और आईसीआईसीआई बैंक की जून तिमाही के नतीजों में ज्यादा मोरेटोरियम का दिखना भी बैंकिंग शेयरों को लेकर अवधारणा पर चोट पहुंचा गया।
आरबीआई की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट के मुताबिक, बैंंकिंग उद्योग का सकल एनपीए अनुपात वित्त वर्ष 2021 में 12.5 से 14.7 फीसदी पर पहुंचेगा, जो वित्त्त वर्ष 2020 में 8.5 फीसदी रहा है। इसके अलावा उनका कॉम इक्विटी टियर-1 पूंजी अनुपात भी वित्त वर्ष 2020 के 11.7 फीसदी से घटकर 10.7 से 9.4 फीसदी रह जाएगा। इसकी वजह कोविड-19 के कारण अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती है।
परिसंपत्ति गुणवत्ता की अनिश्चितता न सिर्फ बैंकों के लिए चुनौतीपूर्ण है बल्कि एनबीएफसी के लिए भी। नियामक ने पिछले शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
इंडिया रेटिंग्स के प्रमुख (वित्तीय क्षेत्र की रेटिंग) प्रकाश अग्रवाल ने कहा, आरबीआई की तरफ से एनपीए पर दिया गया संकेत वित्त वर्ष 2021 के हमारे अनुमान के मुताबिक है। बैंकों की तरफ से कर्ज भुगतान में दी गई मोहलत से बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता पर वास्तविक असर सितंबर के बाद नजर आएगा, खास तौर से दिसंबर व मार्च तिमाही में।
एक देसी फंड हाउस के इक्विटी फंड मैनेजर ने कहा कि परिसंपत्ति गुणवत्ता की अनिश्चितता को देखते हुए उनका फंड हाउस बैंकिंग शेयरों पर अंडरवेट है।
वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट के मुताबिक, एनबीएफसी व बैंकों की तरफ से दिए गए कर्ज के आधे हिस्से के लिए अप्रैल 2020 में भुगतान की मोहलत ली गई। कर्ज भुगतान की मोहलत वाले ताजा आंकड़े जून तिमाही के बाद के हैं, लेकिन बैंकों व एनबीएफसी के ये आंकड़े बताते हैं कि मोरेटोरियम खाते में कमी आई है, लेकिन यह बहुत ज्यादा सहजता मुहैया नहीं कराता है। डेलॉयट कैपिटल की विश्लेषक मोना खेतान ने कहा, मोरेटोरियम में कमी का अनिवार्य रूप से यह मतलब नहीं है कि बैंकों या लेनदारों के पोर्टफोलियो पर दबाव कुछ हद तक कम नहीं हुआ है। वास्तव में कोटक इंस्टिट््यूशनल इक्विटी का कहना है कि यह रेखांकित करना अहम होगा कि मोरेटोरियम के दायरे वाले कर्ज की परिभाषा पूरे उद्योग में मानकीकृत नहीं है। यह परिसंपत्ति गुणवत्ता पर स्पष्टता का अभाव बताता है।
पर्यटन व आतिथ्य, निर्माण और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों से दबाव ज्यादा रह सकता है, जिस पर महामारी का प्रतिकूल असर पड़ा है। मौजूदा स्थिति में संघर्ष कर रहे एमएसएमई का 60-65 फीसदी कर्ज अप्रैल 2020 में मोरेटोरियम के दायरे में था। हालांकि खेतान का भी मानना है कि कर्ज के मामले में क्षेत्रीय संकेंद्रण (एमएसएमई, वाणिज्यिक वाहन, रियल एस्टेट) का परिसंपत्ति गुणवत्त्ता पर असर पड़ेगा।