ऐसा माना जाता है कि जनता में एकाउंट के पेशे की छवि बहुत अच्छी नहीं है।
उदाहरण के तौर पर जब भी कोई कंपनी असफल होती है, उसमें जनता की उंगली सबसे पहले लेखा परीक्षकों पर ही उठती है, कि कैसे खराब स्थिति में होते हुए भी उन्होंने कंपनी को क्लीन चिट दे दी? वैसे एक हरी झंडी मिली हुई ऑडिट रिपोर्ट का यह मतलब कतई नहीं निकालना चाहिए कि कंपनी द्वारा कराया गया ऑडिट लंबी अवधि में किसी समस्या को आमंत्रित नहीं कर रहा है।
ऑडिटरों के पास इस बात का अधिकार होता है कि बैलेंस शीट के एक साल के दौरान कंपनी के सामने जो समस्या हैं, उसके मूल्यांकन का अधिकार ऑडिटरों के पास होता है। ऑडिटर्स बैलेंस शीट की प्रस्तुति और परिसंपत्ति के अलावा देनदारियों को तय करने के उद्देश्य से ऐसा करते भी हैं। दरअसल एक सांविधिक ऑडिट का मतलब है एक कंपनी द्वारा अपने लाभ और हानि का वित्तीय घोषणापत्र।
इसमें गड़बड़ी इसलिए भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसी से पता चलता है कि कंपनी कितना लाभ कमा रही है, कितने नुकसान में जा रही है या कंपनी विकास की ओर जा रही है या फिर डूबने के कगार पर है, वगैरह-वगैरह चीजें सही ऑडिट रिपोर्ट से सामने आती हैं।
एक सांविधिक ऑडिट, एक रणनीतिक ऑडिट नहीं है, जो कंपनी के लक्ष्य और दृष्टिकोण के खिलाफ रणनीति तैयार करता है और रणनीति तैयार करने की प्रक्रिया का मूल्यांकन करे। और न ही उपयुक्त ऑडिट है जो खर्चों के ब्यौरे का औपचारिक मूल्यांकन करने के अलावा आयात के कुछ मामलों के साथ-साथ शेयरधारकों को कितना नुकसान हो रहा है, इस बात का मूल्यांकन करे।
यह तो कंपनी के आंतरिक ऑडिट विभाग के कार्यक्षेत्र में आने वाला मामला है कि वह रणनीतिक ऑडिट, उपयुक्त ऑडिट और योग्यता ऑडिट का काम करे।यदि कोई कंपनी गलत रणनीतियों और परिचालन में अक्षमता के चलते असफल होती है तो इसके लिए अधिकृत ऑडिटरों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अधिकृत ऑडिटरों के बारे में एक और गलत और आम धारणा कायम है। वह यह कि धोखेबाजी और जालसाजी को पकड़ना भी अधिकृत ऑडिटर का ही काम है।
हालांकि प्रबंधन द्वारा की गई गड़बड़ी को पकड़ना लगभग असंभव सा होता है, दरअसल ऑडिट की पूरी प्रक्रिया में मुख्य ध्यान इस ओर होता ही नहीं है। एक सांविधिक ऑडिट एक जासूसी प्रक्रिया नहीं है और अधिकृ त ऑडिटर से यह अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए कि वह जासूस के जैसा काम करे। वैसे वास्तव में कुछ एक्सपेक्टेशन गैप जरूर है, ऑडिट व्यवसाय और एक्सपेक्टेशन गैप के बारे में जनता की सारी आलोचनाओं को नजरअंदाज करना भी गलत होगा।
ऑडिटरों से भी गलतियां होना आम है। कुछ ऑडिट तो ऑडिटर की कम व्यावसायिक समझ के चलते गड़बड़ हो जाते हैं, और कुछ उनके द्वारा अपनाई जाने वाली ऑडिट तकनीकों के गलत चयन के कारण गलत हो जाते हैं।अमेरिका में एक मामला इस लिहाज से बेहद चर्चित रहा है। ये मामला वहां के एक बड़े वित्तीय संस्थान न्यू सेंचुरी फाइनैंशियल कार्पोरेशन से जुड़ा है। बाद में हुई जांच से ऑडिट करने वाली कंपनियों में से एक केपीएमजी को दोषी भी पाया गया।
भारत में अभी तक हम हमको ऑडिटरों के खिलाफ मामले देखने को नहीं मिले हैं। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि भारत में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। यह कोई असामान्य बात नहीं है कि भारत में ऑडिटर नियमों को ताक पर रखने वाली कंपनियों के साथ नरम रवैया अपनाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि भारत में ऑडिट का स्तर गिर रहा है। इसके स्तर को ऊंचा बनाने के लिए कई कदम उठाने की जरूरत है। ऑपरेटिंग लीज के लिए एकाउंटिंग के नियम मैचिंग सिद्धांतों पर आधारित हैं।
लीज का जो ढांचा है वो सामान्यत: लीज की आवश्यकता पर तैयार होता है। इसमें भी लीज का किराया साल दर साल बदलता रहता है। हालांकि लीज परिसंपत्ति से लीज के दौरान फायदा लिया जाता है। इसलिए लीज के किराये और परिसंपत्ति से बनाये गए फायदे की तुलना की जानी चाहिए। कई फर्म लीज का किराया फायदा नुकसान एकाउंट के दौरान लगाती हैं जो कि एकाउंट नियमों पर सही नहीं ठहरता है।
कई मामलों में ऑडिटर इस तरह की चीजों को लेकर विरोध दर्ज नहीं करते हैं। जो कोई भी कार्पोरेट एकाउंटेंटों के संपर्क में रहा होगा वह इस बात से भली-भांति परिचित होगा। कॉर्पोरेट एकाउंटेंट प्रबधन से मिले निर्देशों के अनुसार नियमों को तोड़ मरोड़ देते हैं। उनको अधिकृत ऑडिटर से कोई सहयोग भी नहीं मिलता।
आखिरकार कोई भी अधिकृत ऑडिटर अपने ग्राहक से हाथ धोना नहीं चाहता है। आने वाले सालों में भारत में कुछ बड़े कदम नई बात नहीं रह जाएंगे। पर फिर भी ये ऑडिट की क्वालिटी को पूरी तरह से सुधारने में कामयाब नहीं हो पाएंगे। इसके बाद ऑडिटर और ऑडिट कराने वाले को अपने कागजातों को दुरुस्त रखना होगा, जिससे वे बाद में अपना बचाव करने में सफल रहें। इसमें ऑडिट की लागत बढ़ जाएगी, और इससे निवेशक घाटे में रहेंगे।
ऑडिट व्यवसाय वाले लोगों को कुछ जागरुकता फैलानी चाहिए, और अपनी वास्तविक भूमिका से जनता को अवगत भी कराना चाहिए और जो एक्सपेक्टेशन गैप है, उसको भरना चाहिए। ऑडिट में जो कमियां रह जाती हैं, उनको पूरा करने के लिए भी इनको पूरा ध्यान देना होगा, जिससे ऑडिट सही तरीके से हो पाए। अब यह इस उद्योग से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति पर छोड़ देना चाहिए कि वे इस उद्योग का स्तर सुधारना चाहते हैं या नहीं।