रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शुक्रवार को कहा कि रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों से संबंधित बाधाएं दूर करने के लिए भारत और अपने अन्य भागीदारों के साथ राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार करने की दिशा में आगे बढऩा शुरू कर दिया है। उन्होंने द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों की गति को जारी रखने का संकल्प लिया। लावरोव ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ व्यापक बातचीत के बाद यह टिप्पणी की। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई इस बैठक में रूस-यूक्रेन संघर्ष और रूस-भारत के संबंधों के लिए इसकी जटिलताओं को लेकर चर्चा हुई। अमेरिका द्वारा रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को ‘विफल करने’ के प्रयासों के परिणाम भुगतने की चेतावनी दिए जाने के एक दिन बाद यह वार्ता हुई है।
पत्रकारों के एक समूह के साथ ब्रीफिंग में यह पूछे जाने पर कि क्या रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष को कम करने में भारत मदद कर सकता है, लावरोव ने कहा कि अगर भारत अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रति अपने ‘न्यायसंगत और तर्कसंगत दृष्टिकोण’ के साथ ऐसी प्रक्रिया का समर्थन करना चाहता है, तो कोई भी इसके खिलाफ नहीं होगा। रूसी मंत्री ने कहा कि उन्होंने भारत से इस बारे में कुछ नहीं सुना है। इस सवाल पर कि क्या बातचीत में रूबल-रुपया भुगतान प्रणाली पर चर्चा की गई, लावरोव ने कहा कि भारत और चीन जैसे देशों के साथ व्यापार के लिए ऐसी व्यवस्था कई साल पहले शुरू की गई थी और पश्चिमी भुगतान प्रणालियों को दरकिनार करने के प्रयास अब तेज किए जाएंगे।
लावरोव ने कहा, ‘मुझे याद है कि कई साल पहले हमने भारत, चीन (और) कई अन्य देशों के साथ अपने संबंधों में डॉलर और यूरो के उपयोग से राष्ट्रीय मुद्राओं के अधिक से अधिक उपयोग की ओर बढऩा शुरू किया था। वर्तमान परिस्थितियों में, मुझे विश्वास है कि यह प्रवृत्ति तेज होगी जो स्वाभाविक और स्पष्ट है।’ उन्होंने कहा, ‘हम ऐसी व्यवस्था पर निर्भर नहीं रहना चाहते जो कभी भी बंद हो जाए और हम ऐसी व्यवस्था पर निर्भर नहीं रहना चाहते जिसके मालिक रातोरात आपका पैसा चुरा सकें।’
रूसी विदेश मंत्री ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद द्विपक्षीय व्यापार की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए भारत और रूस के संबंधित मंत्रालयों के बीच ‘बहुत अच्छे संबंधों’ के बारे में बात की। उन्होंने कहा, ‘हमारे व्यापार मंत्रालयों, वित्त मंत्रालयों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं, और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि पश्चिम द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले अवैध और एकतरफा प्रतिबंधों जैसी कृत्रिम बाधाएं दूर करने के लिए एक रास्ता खोजा जाएगा।’ उन्होंने कहा, ‘यह सैन्य-तकनीकी सहयोग के क्षेत्र से भी संबंधित है। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि समाधान मिल जाएगा और संबंधित मंत्रालय इस पर काम कर रहे हैं।’
यह पूछे जाने पर कि क्या रूस से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल की खरीद के लिए भारत की इच्छा पर चर्चा की गई, लावरोव ने कहा, ‘हम भारत को किसी भी सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार होंगे जो भारत खरीदना चाहता है।’ रूसी विदेश मंत्री ने संघर्ष पर भारत की स्थिति की भी सराहना की और कहा कि अधिकतर देश समझते हैं कि क्या हो रहा है और संकट का मूल कारण क्या है। उन्होंने कहा, ‘पश्चिमी सहयोगियों ने इन दिनों अपना असली चेहरा उजागर किया है और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि अधिकतर देश समझ रहे हैं कि क्या हो रहा है।’ लावरोव ने कहा कि प्रतिबंधों के बावजूद रूस भारत के साथ व्यापार के प्रवाह को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंधों पर निर्णय लेना हमारे लिए एक स्वाभाविक मार्ग है। इस तरह की अनुचित प्रतिक्रिया के संदर्भ में, हमें इस दिशा में निष्पक्ष और स्वाभाविक रूप से काम करना होगा, व्यापार और आर्थिक क्षेत्रों में काम करना होगा।’
लावरोव कहा, ‘यह कोई कल की बात नहीं है, बल्कि कई साल से हम पश्चिमी प्रतिबंधों से निपट रहे हैं और हमें इन परिस्थितियों में जीने का अनुभव है तथा हम ठीक हैं और हमारे साथी भी इसमें ठीक हैं।’ लावरोव ने कहा कि वार्ता कई दशकों में भारत के साथ विकसित संबंधों से प्रेरित है और दोनों पक्षों के बीच विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी है। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्रता और वास्तविक राष्ट्रीय वैध हितों पर ध्यान केंद्रित करने से प्रेरित है।’ लावरोव ने कहा कि रूस क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने और दक्षिण एशिया में पारस्परिक रूप से लाभकारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों का समर्थन करता है। कई अन्य प्रमुख देशों के विपरीत, भारत ने अभी तक यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना नहीं की है और उसने संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर रूस की निंदा करने वाले प्रस्तावों पर वोट देने से परहेज किया है। भारत कूटनीति और बातचीत के जरिये संकट के समाधान के लिए जोर देता रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी, 2 मार्च और 7 मार्च को रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ टेलीफोन पर बातचीत की थी। मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमिर जेलेंस्की से भी दो बार बात की थी।
चीन ने प्रतिबंधों को खारिज किया
चीन ने रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की शुक्रवार को फिर से आलोचना की। वहीं, यूरोपीय संघ के शीर्ष अधिकारी चीन से आश्वासन चाहते हैं कि वह यूक्रेन पर हमले के चलते लगाए गए प्रतिबंधों की स्थिति में रूस की मदद नहीं करेगा। चीन के विदेश मंत्रालय ने यूक्रेन में युद्ध के लिए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के रूस की सीमाओं के पास विस्तार की अमेरिका की कोशिशों को भी जिम्मेदार ठहराया। यूरोपीय संघ (ईयू) के 27 में से 21 देश नाटो के सदस्य हैं।
डिजिटल माध्यम से हो रही शिखर वार्ता में यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चाल्र्स माइकल, आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वोन देर लेयेन और यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख जोसेफ बोरेल युद्ध को समाप्त करवाने के लिए चीनी राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री ली क्विंग से मदद के लिए कहेंगे।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने रोजाना के संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘चीन पाबंदियों के जरिए समस्याओं को सुलझाने के तरीके को खारिज करता है और हम एकतरफा प्रतिबंधों का भी विरोध करते हैं।’ झाओ ने कहा कि जहां तक यूक्रेन की बात है तो चीन को ‘कोई एक पक्ष चुनने या दोस्त या दुश्मन जैसा सरल रुख अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। हम खासतौर से शीत युद्ध की विचाराधारा का विरोध करते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘यूक्रेन संकट को बढ़ाने का दोषी अमेरिका 1999 के बाद से पिछले दो दशकों में पूर्वी क्षेत्र में नाटो के विस्तार की कई कोशिशें कर चुका है।’