प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने डिजिटल ऋण कारोबार से जुड़ीं ऐसी 40 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की एक सूची तैयार की है, जो चीन के नागरिकों की कंपनियों के लिए मुखौटे के रूप में काम कर रही हैं। ईडी ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इन एनबीएफसी के लाइसेंस रद्द करने को कहा है। मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि देश में ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने आरबीआई से एनबीएफसी लाइसेंस हासिल कर लिया है। इन कंपनियों ने उन डिजिटल ऋण एप्लिकेशन (डीएलए) के साथ गठजोड़ कर लिया है, जो छोटे व्यक्तिगत कर्ज और लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों को कर्ज समेत विभिन्न प्रकार के ऋण मुहैया कराती हैं।
जांच में पाया गया है कि इन एनबीएफसी का ऋण या वसूली पर कोई नियंत्रण नहीं है, जिन्हें विदेशी, मुख्य रूप से चीन के नागरिकों के स्वामित्व वाली फिनटेक नियंत्रित करती हैं। चीन के इन नागरिकों में से ज्यादातर हॉन्गकॉन्ग के हैं। एनबीएफसी का लाइसेंस हासिल करना मुश्किल नहीं है। इसके लिए केवल 2 करोड़ रुपये का खुद का कोष होना जरूरी है। सूत्रों ने कहा कि ये एनबीएफसी ऋण देने के लिए संसाधन जुटाने में सक्षम नहीं होती हैं। ऐसे में वे डिजिटल ऋणदाताओं से करार करती हैं, जिनके हाथ में आम तौर पर पूरा परिचालन होता है।
एक सूत्र ने नाम प्रकाशित नहीं करने का आाग्रह करते हुए कहा, ‘ऐसे कई मामले देखने में आए हैं, जिनमें आरबीआई की स्वीकृति से एनबीएफसी का स्वामित्व विदेशी नागरिकों के स्वामित्व वाले इन प्लेटफॉर्म को हस्तांतरित कर दिया गया। हालांकि अब आरबीआई ने इन एनबीएफसी का स्वामित्व विदेशी, मुख्य रूप से चीन के नागरिकों के स्वामित्व वाली कंपनियों को सौंपने की मंजूरी देना बंद कर दिया है।’
पिछले साल नवंबर में आरबीआई के एक आंतरिक कार्यदल ने पाया था कि जनवरी और फरवरी 2021 के बीच 80 ऐप स्टोर में उपलब्ध 1,100 ऋण ऐप में से 600 अवैध थे। आंतरिक कार्यदल ने ऐसे डिजिटल ऋणदाताओं के लिए नियम कड़े करने का प्रस्ताव रखा था। कार्यदल ने पाया है कि बैंकों की तुलना में एनबीएफसी डिजिटल तरीके से ज्यादा ऋण देती हैं। आंतरिक कार्यदल ने पाया है कि प्लेटफॉर्म आधारित ऋण मार्केट प्लेस लेंडर्स (एमपीएल) या मार्केट प्लेस एग्रीगेटर (एमपीए) द्वारा दिए जाते हैं। ये प्लेटफॉर्म ऋणदाता और कर्जदार की जरूरतों को मिलाने की भूमिका निभाते हैं, जिनका ऋणों को अपनी बैलेंसशीट में शामिल करने का कोई इरादा नहीं होता है।
सूत्रों ने कहा कि इसमें बड़ा मुद्दा ऋण नहीं बल्कि ग्राहकों के डेटा तक पहुंच है।
सूत्र ने कहा, ‘फिनटेक को ग्राहकों का डेटा उपलब्ध हो जाता है, जिसमें आधार संख्या समेत केवाईसी दस्तावेज शामिल हैं। वे ब्याज की ऊंची दर वसूलते हैं।