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अमेरिका की एक अपीलीय अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को लगभग हर देश पर व्यापक टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने का कानूनी अधिकार नहीं था। हालांकि अदालत ने फिलहाल इन टैरिफ को तुरंत खत्म नहीं किया है और सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का समय दिया है।
फेडरल सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने 7-4 के फैसले में कहा कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति को असीमित अधिकार देने का इरादा नहीं किया था कि वह हर देश पर आयात शुल्क लगा सकें। अदालत का यह फैसला मई में न्यूयॉर्क की एक विशेष व्यापार अदालत द्वारा दिए गए फैसले को काफी हद तक बरकरार रखता है।
ट्रंप ने इस फैसले को चुनौती देने की बात कही है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा, “अगर यह फैसला बरकरार रहा तो अमेरिका बर्बाद हो जाएगा।” वहीं, व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा कि ट्रंप ने पूरी तरह कानूनी तरीके से कार्रवाई की है और सरकार को इस मामले में जीत मिलेगी।
यह फैसला ट्रंप की उस नीति को चुनौती देता है जिसके तहत वह अकेले अमेरिकी व्यापार नीति को पूरी तरह बदलना चाहते थे। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के पास आयात शुल्क लगाने के अन्य कानूनी रास्ते भी हैं, लेकिन उन पर उनकी ताकत सीमित रहेगी। उनके लगाए गए टैरिफ और अचानक लिए गए फैसलों ने वैश्विक बाजारों को हिलाया है, अमेरिकी सहयोगियों को नाराज किया है और ऊंची कीमतों तथा धीमी आर्थिक वृद्धि की आशंका बढ़ाई है।
ट्रंप ने यूरोपीय संघ, जापान और अन्य देशों पर दबाव बनाने के लिए भी इन शुल्कों का इस्तेमाल किया था। उनका कहना है कि इनसे अमेरिकी खजाने में अरबों डॉलर आए, जिनका इस्तेमाल 4 जुलाई को पास किए गए टैक्स कटौती कानून को लागू करने में किया गया।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर टैरिफ खत्म हुए तो अमेरिकी प्रशासन की वार्ता रणनीति कमजोर हो जाएगी और अन्य देश सख्त रुख अपना सकते हैं। सरकार का तर्क है कि यदि अदालत ने टैरिफ पूरी तरह रद्द कर दिए तो पहले से वसूले गए अरबों डॉलर वापस करने पड़ सकते हैं, जिससे खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा।
ट्रंप पहले भी चेतावनी दे चुके हैं कि अगर यह व्यवस्था खत्म हुई तो हालात 1929 जैसी महामंदी वाले हो जाएंगे।
अमेरिका में ट्रंप सरकार द्वारा लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) से जुलाई तक 159 अरब डॉलर की कमाई हुई है, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा है। हालांकि, इन टैरिफ को लेकर अब कानूनी लड़ाई तेज हो गई है। न्याय विभाग ने अदालत में चेतावनी दी है कि अगर ये टैरिफ हटाए गए तो अमेरिका की वित्तीय स्थिति पर गंभीर असर पड़ सकता है।
यह मामला दो अलग-अलग प्रकार के आयात शुल्क से जुड़ा है, जिन्हें ट्रंप ने 1977 के International Emergency Economic Powers Act (IEEPA) के तहत राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर लागू किया था।
पहला सेट है “Liberation Day” टैरिफ, जिसकी घोषणा 2 अप्रैल को की गई थी। इसके तहत अमेरिका ने उन देशों पर 50% तक शुल्क लगाया जिनसे उसका व्यापार घाटा है, और बाकी सभी पर कम से कम 10% शुल्क लगाया। अगस्त में दरों में थोड़े बदलाव किए गए, लेकिन यहां तक कि वे देश भी प्रभावित हुए जिनसे अमेरिका को व्यापार अधिशेष है।
दूसरा सेट है “Trafficking Tariffs”, जिसकी घोषणा 1 फरवरी को कनाडा, चीन और मैक्सिको पर की गई थी। इनका मकसद इन देशों पर दबाव बनाना था कि वे अमेरिका में हो रही अवैध ड्रग्स और प्रवासियों की तस्करी को रोकें।
संविधान के मुताबिक, टैरिफ लगाने का अधिकार संसद के पास है। लेकिन समय के साथ संसद ने राष्ट्रपति को इस क्षेत्र में कई शक्तियां सौंप दीं और ट्रंप ने इन्हीं का उपयोग किया। हालांकि, IEEPA के जरिए आयात पर टैरिफ लगाने का यह पहला मामला था, क्योंकि इस कानून का उपयोग आमतौर पर निर्यात प्रतिबंध और दुश्मन देशों (जैसे ईरान और उत्तर कोरिया) पर पाबंदियों के लिए किया जाता रहा है।
कई कंपनियों और 12 अमेरिकी राज्यों ने अदालत में चुनौती दी कि व्यापार घाटा कोई “असामान्य और असाधारण खतरा” नहीं है, क्योंकि अमेरिका पिछले 49 साल से लगातार व्यापार घाटे में है। वहीं, ट्रंप प्रशासन ने दलील दी कि राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भी 1971 में सोने से डॉलर की लिंकिंग खत्म करने के बाद उत्पन्न संकट में इसी तरह के आपातकालीन प्रावधानों का इस्तेमाल किया था।
हालांकि, मई में न्यूयॉर्क की US Court of International Trade ने ट्रंप के पक्ष को खारिज कर दिया और कहा कि “Liberation Day” टैरिफ राष्ट्रपति को मिले अधिकारों से परे हैं। अदालत ने दो याचिकाओं (एक पांच कंपनियों की और दूसरी 12 राज्यों की) को मिलाकर यह फैसला सुनाया।
अमेरिका की ट्रेड कोर्ट ने ड्रग तस्करी और इमिग्रेशन को लेकर कनाडा, चीन और मैक्सिको पर लगाए गए टैरिफ (शुल्क) को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ये शुल्क IEEPA (International Emergency Economic Powers Act) की उस शर्त को पूरा नहीं करते, जिसके तहत लगाए गए कदम सीधे उस समस्या से जुड़े होने चाहिए जिसे हल करने के लिए वे उठाए गए हैं।
हालांकि, यह चुनौती ट्रंप के अन्य टैरिफ पर लागू नहीं होती। इनमें विदेशी स्टील, एल्युमीनियम और ऑटो पर लगाए गए शुल्क शामिल हैं। ट्रंप प्रशासन ने इन्हें कॉमर्स डिपार्टमेंट की उस जांच के बाद लगाया था, जिसमें कहा गया था कि ये आयात अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
इसी तरह, ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीन पर लगाए गए टैरिफ भी इसमें शामिल नहीं हैं। बाद में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इन्हें जारी रखा क्योंकि जांच में पाया गया कि चीन अपनी टेक्नोलॉजी कंपनियों को अनुचित लाभ देने के लिए गलत तरीके अपनाता है, जिससे अमेरिकी और अन्य पश्चिमी देशों की कंपनियां प्रभावित होती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप अन्य कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल कर फिर से आयात शुल्क लगा सकते हैं, लेकिन उनकी सीमाएं हैं। उदाहरण के लिए, 1974 के ट्रेड एक्ट की धारा 122 के तहत राष्ट्रपति उन देशों पर 15 फीसदी तक शुल्क लगा सकते हैं जिनके साथ अमेरिका का बड़ा व्यापार घाटा है। हालांकि, यह अवधि अधिकतम 150 दिन तक ही सीमित होगी।
वहीं, उसी कानून की धारा 301 राष्ट्रपति को उन देशों पर शुल्क लगाने की अनुमति देती है जिन पर अनुचित व्यापार प्रथाओं का आरोप साबित हो जाता है। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में इसी धारा का इस्तेमाल कर चीन के खिलाफ बड़ा ट्रेड वॉर शुरू किया था।