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पुराने वाहनों पर रोक से कश्मीरी गेट का पुर्जा बाजार प्रभावित, कारोबारियों की चिंता बढ़ी

पुराने वाहनों पर रोक और तकनीकी बदलाव ने कश्मीरी गेट पुर्जा बाजार को प्रभावित किया, जहां लोकल पुर्जों की जगह जेनुइन पुर्जों की मांग बढ़ गई और कारोबारियों की आय घटी।

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रामवीर सिंह गुर्जर   
Last Updated- August 17, 2025 | 10:43 PM IST

कोई वक्त था, जब वाहन पुर्जों के बाजार के नाम पर उत्तर भारत में दिल्ली के कश्मीरी गेट का ही नाम कौंधता था। यहां कमोबेश सभी गाड़ियों के पुर्जे मिलते हैं और सस्ते तथा स्थानीय यानी लोकल पुर्जों के कारण खरीदार भी खूब उमड़ते हैं। लेकिन समय के साथ तकनीक बदलने से लोकल पुर्जे बाजार से बाहर होते जा रहे हैं।

कश्मीरा गेट के कारोबारी कहते हैं कि वाहन कंपनियों ने जब से वारंटी बढ़ाकर अपने यहां सर्विस पर जोर देना शुरू किया तभी से वाहन पुर्जों की मांग कमजोर पड़ गई। नई और बेहतर तकनीक की वजह से वाहन जल्दी खराब नहीं होते, इसलिए भी पुर्जों की मांग में गिरावट आ रही है। कारोबारियों को इलेक्ट्रिक वाहन आने से कारोबार में और भी गिरावट का अंदेशा सता रहा है। कभी लोकल पुर्जे ही इस बाजार की खासियत थे मगर ऐसे पुर्जों पर अब वाहन मालिक कम भरोसा कर रहे हैं, जिससे दुकानों पर भी जेनुइन पुर्जे ज्यादा दिख रहे हैं।

ऑटोमोटिव पार्ट्स मर्चेंट एसोसिएशन (अपमा) के अध्यक्ष विनय नारंग ने कहा, ‘पहले कश्मीरी गेट लोकल पुर्जों का बड़ा बाजार था मगर लोग जेनुइन पुर्जे डलवाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए यहां भी कारोबारियों ने जेनुइन पुर्जों पर जोर देना शुरू कर दिया है।’ पास में ही दुकान चला रहे उमेश सेठ इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि लोकल पुर्जे जल्दी खराब हो सकते हैं मगर जेनुइन पुर्जों में शिकायत कम रहती है। इसलिए उनकी मांग बढ़ रही है, जिसे कारोबारी पूरा कर रहे हैं। सेठ ने यह भी बताया कि वाहन कंपनियों ने कई साल तक जेनुइन पुर्जे बाहर बाजार में आने ही नहीं दिए मगर कारोबारियों ने इसके लिए लड़ाई लड़ी और अब पुर्जे बाजार में आने लगे हैं।

अपमा के अध्यक्ष रह चुके भार्गव मोटर्स के मालिक विष्णु भार्गव ने कहा कि बताया कि इस बाजार में आधे पुर्जे जेनुइन ही हो गए हैं क्योंकि तकनीक बदलने से लोकल पुर्जों की मांग लगभग खत्म हो गई है। पहले यहां आसानी से कम खर्च में लोकल पुर्जे बन जाते थे मगर नई तकनीक के पुर्जे बनाना आसान नहीं रहा, इसलिए कारोबारी भी लोकल के बजाय जेनुइन पुर्जे ज्यादा बेच रहे हैं। मगर जेनुइन पुर्जों ने कारोबारियों के मार्जिन पर तगड़ी चोट की है। सेठ ने बताया कि लोकल पुर्जों पर 20-30 फीसदी मार्जिन मिल जाता था, लेकिन जेनुइन पुर्जों पर 10-12 फीसदी मार्जिन ही रहता है। ऑर्डर ज्यादा बड़े हों तो मार्जिन घटाकर 10 फीसदी से भी नीचे करना पड़ता है। लेकिन नारंग ने कहा कि जेनुइन पुर्जे बहुत जल्दी बिक जाते हैं।

कश्मीरी गेट की बदली सूरत

आजादी से पहले जिस कश्मीरी गेट में चंद जुकाने थीं वहां अब पुर्जों की हजारों दुकानें हैं। यह बाजार 2.5 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है और कारोबारियों के मुताबिक यहां 20,000 से ज्यादा विक्रेता वाहन पुर्जे और एक्सेसरीज बेचते हैं। इनका माल दिल्ली-एनसीआर के साथ बाहर के शहरों और दूसरे देशों में भी जाता है। साथ ही कारोबारी चीन से पुर्जे मंगाते भी हैं। कारोबारियों के मुताबिक इस बाजार में 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है और 1 लाख से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रोजगार मिल रहा है।

कश्मीरी गेट में छोटी सी शुरुआत करने वाले कई उद्यमी तो कई राज्यों में फैलकर ब्रांड ही बन गए हैं। इन ब्रांडों में एलोफिक, आनंद मोटर्स प्रोडक्ट्स, गेलियो इंडिया, सियाराम ब्रदर्स, ल्यूकस टीवीस आदि शामिल हैं।

दो दशक पहले तक कश्मीरी गेट से वाहन पुर्जे गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों तक जाते थे। लेकिन सेठ का कहना है कि अब ज्यादातर माल दिल्ली से 200 किलोमीटर के दायरे में बसे शहरों तक ही जाता है। नारंग का कहना है कि जब हर शहर में वाहन कंपनियों के डीलर बैठ गए हैं तो यहां के माल की मांग घटना तय है। बकौल भार्गव, कश्मीरी गेट का बाजार लोकल पुर्जों की वजह से ज्यादा चलता था मगर जेनुइन पुर्जों पर जोर से कारोबार बदल गया है। कारोबारियों का यह भी कहना है दिल्ली-एनसीआर में पुराने वाहनों पर रोक के बाद यहां के कारोबारियों ने दूसरे राज्यों में ज्यादा माल भेजने की कोशिश की मगर पहले जितना माल नहीं भेज पा रहे हैं।

रोक से तगड़ी चपत

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने प्रदूषण का हवाला देकर 2015 में दिल्ली में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर रोक लगाई थी। उच्चतम न्यायालय ने 2018 में इसे बरकरार रखा और आज भी रोक लागू है। नारंग ने कहा कि कश्मीरी गेट में डीजल वाहनों के पुर्जों का ज्यादा कारोबार होता है, इसलिए इन पर रोक के बाद पुर्जों का कारोबार 20 से 25 फीसदी कम हो गया था। कुछ वाहन फिर भी चल रहे थे और कुछ कारोबार मिल रहा था मगर पुराने वाहनों को ईंधन नहीं देने के दिल्ली सरकार के फैसने ने कारोबार पर फिर तलवार लटका दी थी। उच्चतम न्यायालय ने उस पर रोक लगाकर राहत दी है।

सेठ का कहना है इंजन खराब होने पर प्रदूषण का खतरा रहता है, जिसे इंजन और पिस्टन बदलकर दूर किया जा सकता है। लेकिन पूरे वाहन पर रोक लगाने का कोई मतलब नहीं है। कश्मीरी गेट के कारोबारियों के मुताबिक पुराने वाहनों पर रोक से यहां के कारोबार को 2,000 से 2,500 करोड़ रुपये की चपत लगी है।

वारंटी और तकनीक का झटका

सेठ ने बताया कि पहले लोग अपने वाहनों की सर्विस बाहर कराते थे, जिससे उन जैसे कारोबारियों को काफी कमाई होती थी। मगर वाहन कंपनियों ने 1 साल तक फ्री सर्विस और 5 साल की वारंटी शुरू कर दी, जिसके बाद लोग वारंटी खत्म होने के डर से 5 साल तक गाड़ी में बाहर कुछ नहीं कराते। ऐसे ही पहले दिल्ली और मुंबई के बीच एक चक्कर लगाने के बाद ट्रक का सस्पेंशन बदलना पड़ता था मगर अब तकनीक और सड़क अच्छी होने से यह भी बंद हो गया। इससे वाहन पुर्जों की मांग में काफी कमी आ गई है।

भार्गव बताते हैं कि बीएस-4, बीएस-5 मानकों के बाद वाहनों के इंजन से प्रदूषण बहुत कम हो गया है। ऐसे में इंजन रिपेयरिंग या प्रदूषण कम करने वाले वाहन पुर्जों की मांग पहले से गिरी है। बची-खुची कसर ई-वाहनों ने पूरी कर दी क्योंकि उनमें इंजन, गियर बॉक्स, क्लच होते ही नहीं हैं। जैसे-जैसे ई-वाहन बढ़ेंगे, कश्मीरी गेट के बाजार का कारोबार घटता जाएगा।

आयात भी, निर्यात भी

कश्मीरी गेट बाजार से नेपाल, बांग्लादेश, मिस्र तथा अफ्रीकी देशों को छोटे वाहनों के पुर्जे निर्यात किए जाते हैं। बड़े वाहनों के पुर्जे अमेरिका भेजे जाते हैं। कश्मीरी गेट के कुल कारोबार में निर्यात की हिस्सेदारी 10 से 15 फीसदी होगी। यहां गेलियो इंडिया के गौरव कपूर ने कहा कि उनकी कंपनी के कारोबार में निर्यात की हिस्सेदारी 10 फीसदी है। भार्गव ने कहा कि कुछ लोग यहां से सीधे निर्यात करते हैं और कुछ लोग निर्यातकों को माल मुहैया कराते हैं। इस बाजार में चीन से बड़े पैमाने पर वाहन पुर्जे आयात होते हैं। सेठ का कहना है कि चीनी पुर्जे सस्ते होने के कारण खूब मंगाए जाते हैं।

डुप्लीकेट पुर्जे भी हैं कश्मीरी गेट में

कश्मीरी गेट बाजार में वाहनों के डुप्लीकेट पुर्जे भी मिलते हैं। यहां के एक कारोबारी ने बताया कि यहां कुछ लोग डुप्लीकेट माल भी बेच रहे हैं। इन माल पर उन्हें 50 से 60 फीसदी तक मार्जिन मिलता है। इस बाजार में कंपनियों में रिजेक्ट होने वाला माल भी चोरी छिपे बिक रहा है। इस पर भी अच्छी खासी कमाई हो जाती है। लेकिन यहां के कारोबारियों का कहना है कि इस बाजार में डुप्लीकेट माल बेचने का बड़ा नेटवर्क काफी पहले था, जिससे बाजार की बदनामी भी होती थी। मगर अब लोग जागरूक हैं, इसलिए डुप्लीकेट उत्पादों का कारोबार पहले जितना नहीं रहा।

कश्मीरी गेट और पुर्जों का बाजार

कश्मीरी गेट 17वीं शताब्दी में शाहजहां ने बनवाया था। कश्मीर जाने वाली सड़क इसी गेट से शुरू होती थी, जिस कारण इसका यह नाम पडा। उस समय कश्मीर मुगल साम्राज्य का हिस्सा था। दिल्ली पर कब्जे के बाद अंग्रेजों ने कश्मीरी गेट के आसपास रिहायशी इलाका बना लिया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने तोपों से गोले दागकर इसी गेट से ब्रिटिश सेना पर हमला किया था। कश्मीरी गेट के वाहन पुर्जा कारोबारी तारेश बाइसीवाला ने बताया कि आजादी से पहले कश्मीरी गेट में फोर्ड जैसी बड़ी कंपनियों के शोरूम होते थे। जब 1936 में कनॉट प्लेस बना तो शोरूम वहां चले गए। वाहन पुर्जों की कुछ दुकानें भी स समय थीं। तारेश ने बताया कि उनके पिता ने 1946 में कश्मीरी गेट में दुकान खोली थी। आजादी से पहले यहां वाहन पुर्जों की करीब 100 दुकानें थी, जो अब बढ़कर हजारों हो गई हैं। उमेश सेठ का कहना है कि उनके पिता ने 1956 में इस बाजार में पुर्जे बेचने शुरू किए थे और गेलियो इंडिया के गौरव कपूर के मुताबिक उनके परिवार ने 1967 में कश्मीरी गेट में काम शुरू किया था। कारोबार करते-करते 1991 में उन्होंने पुर्जे बनाना भी शुरू कर दिया। अब गेलियो उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के साथ माल विदेश भी भेज रही है।

First Published : August 17, 2025 | 10:36 PM IST