बैंकिंग सेक्टर में आएगी बहार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 5:23 PM IST

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने वित्तीय बाजार में स्थायित्व के  लिए जो कदम उठाए हैं,उसकी प्रशंसा हो रही है।


अमेरिका में मंदी का दौर जबसे जारी है तबसे लेकर आज तक  फेडरल रिजर्व का यह सबसे साहसिक कदम माना जा रहा है क्योंकि अब तक इसने अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोई ठोस पहल नहीं की थी। बाजार में पिछले कुछ महीनों से बढ़ती मंदी के डर को खत्म करने के लिहाज से फेडरल रिजर्व का यह एक सार्थक कदम माना जा रहा है। मंदी का यह दौर उम्मीदों की बजाय ज्यादा डरावना ही लगता है।


हालांकि जो भी रुझान है वह बिल्कुल साफ दिख रहे हैं। मार्च का महीना डरावना था और कोई भी डर या अस्थिरता केवल संपत्ति की बर्बादी ही नहीं करता बल्कि यह कीमतों में भी गिरावट की स्थिति पैदा कर देता है।


अगर यह मंदी का दौर है तब भी दुनिया के बाजारों के बंद होने की संभावना तो नहीं बन सकती है। हालांकि बाजार में लंबी स्थिरता का दौर कायम है। फिर भी यह ठीक है। मंद बाजार का चेहरा ही अलग होता है फिर भी वह पूंजी बनाने का समय होता है। उस दौर को बेहतर तरीके से समझने के लिए भी थोड़ी क्षमता चाहिए। कई कारोबारियों ने जो सालों से इन रुझानों को समझते हैं,  पिछले दशक के दौरान भारत में मंदी के दौर को भुनाकर अच्छा पैसा बनाया है।


मंदी के बारे में कुछ भ्रामक धारणाएं भी हैं। जैसे कि यह पूरी तरह हावी हो जाता है और दूसरा कि इसके चार पांव होते हैं। यह पूरी तरह गलत है। बाजार और दूसरे सेक्टर मंदी के दौर में धीरे ही सही  पर अपनी राह चलते जरूर हैं। अगर किसी एक  सेक्टर में मंदी का दौर कायम है तो हो सकता है कि दूसरे सेक्टर में तब तक पिछली तेजी का रुख कायम हो। मिसाल के तौर पर, 2007 की शुरूआत में सीएनएक्स आईटी में मंदी छाने लगी थी पर  बैंकिंग सेक्टर में मंदी का दौर एक साल बाद फरवरी 2008 में आया।


बैंकिंग सेक्टर में 42 प्रतिशत की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई। इसकी तुलना बीएसई सूचकांक की 30 प्रतिशत गिरावट से करें तो हम पाएंगे कि बैंकों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। ऐसे हालात में हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। फिलहाल जैसे हालात दिख रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि भारतीय बैंकों का दशकों पुराना किस्सा अब खत्म ही होने वाला है।


साख में होने वाली कमी में उतार-चढ़ाव एक हकीकत है जिससे बैंकों में फेरबदल की संभावना बन सकती है। इस सेक्टर सूची में सुधार की संभावना इस साल की पहली तिमाही से ही नजर आने लगी है , यानी अब कई चीजें साफ होनी चाहिए। ऐसी उम्मीद है कि बीएसई बैंकेक्स में 7,316 अंकों की जो गिरावट थी उसमें कमी आ सकती है।


बैकिंग सेक्टर शुरू से ही अर्थव्यवस्था के चक्र क ो चलाने वाली कडी रही है। बैकिंग सेक्टर में उछाल आने के चार साल बाद 2001 से ही सेंसेक्स में तेजी का दौर शुरू हो गया है। अगर सेंसेक्स को इस साल बेहतर प्रदर्शन करना है तो बैकिंग सेक्टर में तेजी होना जरूरी है। मार्च में लगातार ठहराव की स्थिति बनी रही। बैंकेक्स में 10,000, आईसीआईसीआई में 1,000 और एचडीएफसी बैंक में 1,400 अंकों की गिरावट के  साथ मंदी का असर दिखने लगा।


यहां जो भी कयास लगाए जाते हैं, वह संयोग से सही साबित भी हो जाते हैं। सीएनएक्स आईटी में जनवरी 2007 के शुरुआत से ही मंदी का असर दिखने लगा था। इसमें फरवरी 2007 से ही 42 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी। यह तकनीकी सेक्टर के  निराशाजनक प्रदर्शन की मिसाल थी जो सेंसेक्स के प्रर्दशन से भी ज्यादा था। उसके बाद ऑटो सेक्टर की बारी है जिसका नकारात्मक प्रर्दशन अभी जारी है।


इस तरह के सभी नकारात्मक रुझानों के बावजूद यह उम्मीद कायम है कि सेंसेक्स एक  नयी  ऊंचाई पर जाएगा। हालांकि यह आश्चर्य की बात होगी। सभी सेक्टरों और सूचकांकों में अपेक्षित बदलाव क ी वजह से संभव है कि न्यूनतम मानदंड को भी ऊपर ले जाने की जरूरत होगी। हालांकि कम ही सही लेकिन मार्च के बीच में कमी देखने को मिला है।


इस महीने बाजार में बदलाव का जो दौर दिखा वह सेंसेक्स में गिरावट का दौर था, जिसकी तुलना एस ऐंड पी सीएनएक्स निफ्टी की तेज गिरावट से की जा सकती है। निफ्टी में 4,448 अंकों के बाद ठहराव दिखा। उसमें तब्दीली लाने की जरूरत है ताकि सेंसेक्स पर कोई नकारात्मक असर न दिखे। इसके अलावा बीएसई ऑयल में होने वाला उतार-चढ़ाव दूसरे सेक्टर के सूचकांकों में 50 अंक प्रति सप्ताह के औसतन होनवाले उतार चढ़ाव से ज्यादा ही है।


इससे एक अलग तरह का भ्रम होता है कि सभी सेक्टर जिनमें मंदी है वह लगातार गिरावट के दौर से गुजर रहे हैं। मंदी के दौर के भी तीन हिस्से हैं गिरावट का , उसके बाद संभलने का  और फिर आखिरी गिरावट का। इसीलिए बाजार में जब मंदी आती है तब लोगों में निराशा होती है और वे किसी राहत का इंतजार करते हैं।


वैश्विक बाजार में अस्थिरता की जो स्थिति दिख रही है चाहे वह रूस का आईआरटीएस, चीन  का एसएसईसी, ब्राजील का बीवीएसपी, निक्केई एन255, डाउ इंडस्ट्रियल्स, डीजेआई या डाउ ट्रांसपोर्ट हो, इनमें भी वही अस्थिरता नजर आती है। वैश्विक बाजार में अब से कुछ हफ्ते बाद से ही तेजी आने की उम्मीद है। यह भविष्यवाणी शायद गलत भी हो सकती है। बाजार में 50 प्रतिशत की भी गिरावट उतनी जोखिम भरी नहीं होगी जितनी कि तेजी के बाद का रोना।    

First Published : March 30, 2008 | 11:29 PM IST