गुजरात स्थित गोकुल रिफॉइल्स एंड सॉल्वेंट (जीआरएसएल) बीज परिशोधन, सॉल्वेंट एक्सट्रैशन से लेकर वनस्पति घी के निर्माण संबंधी कारोबार से जुड़ा हुआ है, और कारोबार में 125-140 करोड़ रुपये जुटाने के लिए इसने प्राथमिक बाजार में कदम रख दिया है।
देश में बढ़ रही खपत और आपूर्ति संबंधी समस्याओं के मद्देनजर यह 175-195 रुपये प्रति शेयर बैंड प्राइस वाले कुल 71.6 लाख से अधिक शेयर जारी करने जा रही है। इस इश्यू में कंपनी के 27 फीसदी शेयर डायल्यूट होंगे, जबकि प्रोमोटरों को उम्मीद है कि पोस्ट इश्यू कैपिटल के 70 फीसदी पर हक उनका होगा।
गौरतलब है कि कंपनी के कारोबार की खासी मांग है, क्योंकि चीन और अमेरिका के बाद भारत खाद्य तेलों की खपत के मामले में तीसरे नंबर पर है। लिहाजा, आपूर्ति के लिए आयात करना पड़ता है, जो खासा महंगा पड़ता है। 2005-06 में आयात 30 फीसदी के दर पर किया जा रहा था। दूसरी ओर मौजूदा प्रति व्यक्ति खपत 10.2 किलोग्राम प्रतिवर्ष है, जो 2010 तक 15 किलोग्राम प्रतिवर्ष होने के आसार हैं।
इन सब स्थितियों के बीच जीआरएसएल के लिए यह माकूल वक्त है,कि अपने कारोबार को वह विस्तार प्रदान करे। कंपनी ने गांधीग्राम स्थित सॉल्वेंट एक्सट्रैशन प्लांट में उपलब्ध सुविधाओं में इजाफा करने के साथ-साथ नए प्लांट स्थापित करते हुए एक्सटै्रक्श्न क्षमता में 250 फीसदी की बढ़ोतरी करने जा रहा है।
इसी के साथ उसकी सॉल्वेंट एक्सट्रैकशन क्षमता 6.3 लाख टन प्रति वर्ष हो जाएगी। इसी प्रकार,तेल परिशोधन क्षमता में 25 फीसदी के इजाफे के साथ कुल 4.5 लाख टन तेल को परिशोधन करने की योजना को भी अमली-जामा पहनाने की बात है। इसे अंजाम देने के लिए कंपनी अपनी सूरत प्लांट में तेल परिशोधन 100 टन से बढ़ाकर 400 टन प्रति दिन करेगा।
इन विस्तार कार्यक्रम का जुलाई 2008 से आरंभ होने की उम्मीद है। इसके अलावा सिंगापुर प्लांट में भी निवेश किए जाने की बात चल रही है, ताकि इसे एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने में भी आसानी हो।
सकारात्मक पहलू
कंपनी के पास मौजूदा सुविधाओं का तकाजा है कि यह सरसों तेल, सोयाबीन तेल और पाम ऑयल सहित अपने प्रोडक्ट में इजाफा कर सकता है। इससे न केवल एक साथ कई कच्चे मालों को संभाला जा सकता है, बल्कि बाजार में किसी विशेष तेल की मांग की आपूर्ति भी की जा सकती है। इसके अलावा सूरत, गांधीग्राम और सिधपुर स्थित प्लांट समुद्रतट से काफी नजदीक हैं, लिहाजा कच्चे मालों के आयात में भी कोई दिक्कतें नही आती है।
कंपनी के पास तगड़ा रेवेन्यू स्रोत भी है और महज दस कस्टमर कंपनी के कुल बिक्री का 26 फीसदी खरीद लेते हैं। देशभर में इसका जबर्दस्त वितरण नेटवर्क हैं। इसके अलावा पिछले कंपनी के पास दो दशकों से ज्यादा अनुभव वाले प्रोमोटर्स हैं। खासकर ताजा हालात बिल्कुल कंपनी के पक्ष में है। बात चाहे कच्चे तेलों की उफनती कीमतों की हो, या फिर तेल पैदा करने वाले अनाजों का बायो-डीजल के रूप में बढ़ते इस्तेमाल का, सभी ने खाद्य तेल की मांग में इजाफा ही किया है।
खासकर देश में बढ़ती तेल खपत की स्थिति यह है कि तेल कीमतें आसमान तो छू ही रही है, इसकी मांग और आपूर्ति के बीच खासा असंतुलन भी है। हालांकि मौजूदा स्थिति का फायदा सिर्फ गोकुल लि. को ही नही मिलेगा, बल्कि कई और ऐसी कंपनियां हैं जो लागत मूल्य में कमी कर कीमतों पर लगाम लगाने के साथ-साथ बढ़ी हुई मांग की आपूर्ति कर सकते हैं।
नकारात्मक पहलू
कंपनी की मौजूदगी उत्तर और उत्तर पश्चिम भारत (आसाम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के अलावा) तक सिमटी हुई है। इसके अलावा, दूसरे अन्य क्षेत्रों में सीमित मौजूदगी और असंगठित खिलाड़ियों (60-65 फीसदी) से क ड़ी टक्कर मिलना भी एक कारक है कि कंपनी को इसके लिए कमर कसनी होगी। विशेषकर, कंपनी खाद्य पदार्थों से संबंधित कारोबार से ज्यादा जुड़ी हुई है, जिनपर मौके-बेमौके सरकारी गाज गिरने की संभावना बनी रहती है।
इसके अलावा कच्चे माल की उपलब्धता भी एक अहम मसला है, क्योंकि इसमें मौसम की मेहरबानी होनी बेहद जरूरी होती है। बात इतने से ही नही बनती है। कंपनियों के लिए आवश्यक कुल कच्चे माल में से 60 फीसदी तो आयात करने पड़ते हैं।
लिहाजा, कंपनियों के लिए एक ओर तो लागत कीमत ज्यादा हो जाती है, कड़े प्रतिस्पर्धा के दौर में उन्हें लागत और मुनाफे का मार्जिन भी कम ही रखना पड़ता है। हालांकि गोकुल कंपनी के मामले में राहत देने वाले बात यह है कि इसे सिंगापुर स्थित सब्सिडियरी से अच्छी मदद मिल जाती है, क्योंकि वहां कच्चे माल तो प्रचुर मात्रा में हैं ही, वहां से आयात करना भी आसान है।
कारोबारी लेखा-जोखा
कंपनी मुनाफे वाले मोर्चे पर मजबूती से खड़ी हैऔर कंपनी का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। वित्तीय वर्ष 2000 में कुल कारोबार 100 करोड़ रुपये का था, लेकिन 2004 में बिक्री 5 गुना ज्यादा और 2007 आते-आते तक इसने बिक्री में 15 गुना इजाफा करने में सफलता हासिल की। वित्तीय वर्ष 2004 और 2007 में कंपनी ने 46 फीसदी की बिक्री, जबकि 42 फीसदी का आपरेटिंग प्रॉफिट प्राप्त किया।
हालांकि मार्जिन और रिटर्न अनुपात पिछले कुछ वर्षों के दौरान हिचकोले खा रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष के लिए कंपनी ने नवंबर 2007 तक कुल बिक्री का 80 फीसदी हासिल कर लिया था, जबकि पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान कंपनी आपरेटिंग प्रॉफिट बनाने में कामयाब रही। इस बाबत रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने कंपनी को 5 में से 3 अंक दिए।
भविष्य की योजनाएं
अपने मार्जिन को बढ़ाने के लिहाज से कंपनी अपनी मौजूदगी में विस्तार लाते हुए खुद को वैश्विक बनाना चाहती है। इस लिहाज से वह खुद को अमेरिका, यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया तक महज खल्ली निर्यात करने तक तक सीमित नही रहना चाहती है।
इसके अलावा वह गोकुल ब्रांड को भुनाने की कवायद में घरेलू खुदरा क्षेत्र पर भी ध्यान दे रही है। इसने खुदरा क्षेत्र में अपने शेयर बढ़ाकर 30 फीसदी, जबकि निर्यात 13 फीसदी कर लिया है। साथ ही अपने प्रोडक्ट को और अधिक विस्तार देने की योजना पर भी कंपनी काम कर रही है।
निवेश का गणित
वित्तीय वर्ष 2008 के दौरान कंपनी कीबिक्री और आपरेटिंग प्रॉफिट ग्रोथ पिछले साल के मुकाबले कम रहा है। यह कमी कंपनी के एस ऑयल्स की तुलना में दर्ज की गई है। इस दौरान का आपरेटिंग मार्जिन और नेट मार्जिन कुल 4.4 फीसदी और 3.2 फीसदी का रहा है, जो के एस ऑयल्स के 11 फीसदी और 6 फीसदी के मुकाबले कहीं कम हैं।
रुचि सोयाबीन की बात करें तो पाएंगे कि वित्तीय वर्ष 2008 के दौरान इसकी बिक्री 11,656 करोड़ रुपये की रही और इसका आपरेटिंग प्रॉफिट और नेट मार्जिन क्रमश: 3.5 फीसदी और 1 फीसदी ही दर्ज हो पाया। इस प्रकार प्राइस बैंड पर कंपनी का वैल्यूएशन मौजूदा वित्तीय वर्ष की कमाई पर 5.2 से 6 गुणा आकलित की गई है।
जबकि केएस ऑयल और सांवरिया की बात करें तो उनका वैल्यूएशन 17 गुना और 15 गुना है। लिहाजा इन तस्वीरों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अभी कंपनी को काफी कुछ साबित करना है।
इश्यू बंद होगा: 13 मई 2008