रक्षा क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत में हाल में दो मिसाइल का परीक्षण किया गया, जिसमें जमीन से हवा में मार करने वाली ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल शामिल है।
सीमा-पार से बढ़ता तनाव और आतंकी गतिविधियों को देखते हुए भारतीय रक्षा बल को सुदृढ़ बनाने के लिए भारी पैमाने पर निवेश की जरूरत महसूस की जा रही है।
पिछले दिनों भारत के रक्षा मंत्री ने भी रक्षा क्षेत्र के उद्योगों के सेमिनार में कहा था कि रक्षा तंत्र को सजग और सुदृढ़ बनाना हमारी प्राथमिकता है।
उन्होंने बताया कि मौजूदा सुरक्षा परिदृश्य में काफी बदलाव आया है और भारतीय डिफेंस इंडस्ट्रीज (रक्षा उद्योग) न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पकड़ बना रही है। ऐसे में भारतीय सुरक्षा उद्योग का मॉडल न केवल देश के रक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान कर रहा है, बल्कि यह काफी फायदेमंद भी है।
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स की बात करें, तो रक्षा क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। इसका गठन भारतीय रक्षा तंत्र को मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल उपकरणों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया था। इस कंपनी में भारत सरकार की हिस्सेदारी 75.86 फीसदी है।
डिफेंस की जरूरतों के लिए सरकार भारत इलेक्ट्रिॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) पर ही निर्भर है, जबकि करीब 70 फीसदी उपकरणों को बाहर से आयात किया जाता है। घरेलू मांग, यानी 30 फीसदी रक्षा उपकरण के बाजार में भारत इलेक्ट्रसॅनिक्स की हिस्सेदारी करीब 57 फीसदी है।
कंपनी मिलिट्री कम्युनिकेशंस सिस्टम्स, रडार, नेवल सिस्टम्स, टेलिकॉम और ब्रॉडकास्ट सिस्टम्स, इलेक्ट्रिनिक वेलफेयर सिस्टम्स, टैंक इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य रक्षा उपकरण मुहैया कराती है। कुल मिलाकर कहें, तो कंपनी थल सेना, नेवी, वायुसेना और अर्धसैन्य बलों की जरूरतों को पूरा करती है।
यही वजह है कि कंपनी के कुल राजस्व का करीब 83 फीसदी रक्षा क्षेत्र से ही आता है, जबकि 17 फीसदी आय सिविल रक्षा उपकरणों से होती है।
इनमें दूरसंचार, प्रसारण उत्पादों, मसलन- डीटीएच और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) शामिल हैं। कंपनी को चुनाव आयोग से ईवीएम मशीन के लिए हाल में करीब 100 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है।
डिफेंस क्षेत्र सालाना करीब 6-8 फीसदी की दर से विकास कर रहा है। यही नहीं, रक्षा जरूरतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में आगे भी विकास की पूरी संभावनाएं हैं।
हालांकि विकास दर का यह आंकड़ा बहुत उत्साहजनक नहीं है, लेकिन देश में रक्षा क्षेत्र की जरूरतों और मांग को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र का सतत विकास होता रहेगा और कंपनी भी अच्छा मुनाफा कमाएगी।
कंपनी के उत्पादों की मांग की वजह से ही पिछले 10 सालों में कंपनी के राजस्व और शुद्ध मुनाफे में कभी भी गिरावट नहीं देखी गई।
इसके उलट कंपनी की सालाना आय करीब 14.6 फीसदी और मुनाफा करीब 35 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 1999 से वर्ष 2008 तक के हैं।
कंपनी के पास मौजूदा समय में करीब 10,000 करोड़ रुपये का ऑर्डर है, जो वित्त वर्ष 2008 के राजस्व से करीब 2.5 गुना अधिक है।
राजनीतिक परिस्थिति और सीमा-पार से बढ़ते तनाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि भविष्य में भारत का रक्षा बजट और बढ़ेगा, जिसका सीधा फायदा रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी, खासकर बीईएल को होगा। इसके साथ ही कंपनी को नए-नए उपकरण और तकनीक लानी होगी, जिससे रक्षा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भरता कम हो सके।
नई तकनीक और उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने रक्षा उपकरण निर्माण क्षेत्र में 100 फीसदी निजी निवेश की भी अनुमति दे दी है। इसका मकसद रक्षा जरूरतों को पूरा करना है और आयात पर निर्भरता कम करना है। इस क्षेत्र में बढ़ती मांग को देखते हुए लार्सन एंड टुब्रो (एलऐंडटी) जैसी कंपनियां भी संभावनाएं तलाश रही हैं।
इस क्षेत्र में कंपनियों के बीच प्रतिस्पद्र्धा बढ़ने से भारत की रक्षा जरूरतें जहां पूरी होंगी, वहीं आयात भी कम करना होगा। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स भी इस क्षेत्र में संभावनाएं तलाशने और कारोबार के विस्तार के लिए अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनी केपीएमजी के साथ करार किया है।
कंपनी का लक्ष्य वित्त वर्ष 2012 तक 10,000 करोड़ रुपये राजस्व प्राप्ति का है, जबकि वित्त वर्ष 2008 में कंपनी की आय 4,100 करोड़ रुपये थी।
यानी कंपनी का लक्ष्य सालाना 26 फीसदी की दर से विकास करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कंपनी भारी निवेश की योजना बना रही है। इसके तहत वित्त वर्ष 2009 और 2010 में कंपनी करीब 570 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।
यह रकम निर्माण सुविधाओं के विकास और आधुनिकीकरण पर खर्च की जाएगी। इसके साथ ही कंपनी अपने कारोबार के विस्तार के लिए साझेदारों की भी तलाश कर रही है।
उल्लेखनीय है कि बीईएल पहले ही एयरोस्पेस क्षेत्र की दिग्गज कंपनी लॉकहीड मार्टिन और बोइंग के अलावा, वैश्विक डिफेंस कंपनी ईएडीएस, नॉर्थोप ग्रूममैन, रेथॉन और हनीवेल के साथ काम कर रही है।
बीईएल भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए अन्य साझेदारों की तलाश कर रही है। इसके लिए कंपनी वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित भारतीय और विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित करने की बात कर रही है।
बीईएल के निदेशक (विपणन) एन.के. शर्मा का कहना है कि अभी संयुक्त उपक्रमों के लिए कंपननियों के साथ बातचीत प्रारंभिक चरण में है। कंपनी नए-नए उत्पादों को लाने की भी तैयारी कर रही है। वित्त वर्ष 2008 में कंपनी की ओर से 20 नए उत्पाद लॉन्च किए गए थे।
कारोबार को विस्तार देने और उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार के लिए कंपनी शोध एवं अनुसंधान बजट में अजाफा करने की योजना भी बना रही है। वित्त वर्ष 2008 में कंपनी के सालाना कारोबार का करीब 5 फीसदी शोध एवं अनुसंधान पर खर्च किए गया था, जिसे बढ़ा कर 8 से 10 फीसदी करने की योजना है।
कंपनी का कहना है कि शोध एवं अनुसंधान पर खर्च करने से जहां उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार आएगी, वहीं नई-नई तकनीक भी उपलब्ध कराए जा सकेंगे।