मुश्किल नहीं आसान कारोबार की मंजिल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:03 AM IST

स्केलेबल कारोबार की अवधारणा को समझना काफी आसान है- यह एक ऐसा कारोबार है जो तेजी से बढ़ता है। पर अगर इसकी तुलना कारोबार से की जाए तो इसे और बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।


भले ही किसी कारोबार में तेजी से विकास की क्षमता नहीं हो पर फिर भी वह मुनाफे वाला हो सकता है। इसे समझने के लिए एक रेस्टोरेंट का उदाहरण ले सकते हैं। ऐसा रेस्टोरेंट जहां खास तरीके के व्यंजन बनाए जाते हैं। मिशेलिन स्टार्स पैमाने के अनुसार लोगों को खाना बनाने में प्रशिक्षित करने में सालों लग सकते हैं। वहीं अगर आप बर्गर बनाने वाले रेस्टोरेंट की फ्रैंचाइजी लेना चाहते हैं तो इसके लिए तैयारियों में आपको महज एक हफ्ते का समय ही लगेगा।

हमें समझना होगा कि अधिकांश कारोबार स्केलेबल होते हैं। पर उन्हें खड़ा करने में आने वाली परेशानियों का स्तर अलग-अलग होता है। अगर बात उत्पादन क्षेत्र की करें तो यहां सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न अतिरिक्त जिंस संसाधन ढूंढ़ने का होता है। किसी ऑटो निर्माता या सीमेंट फैक्ट्री के पास अपनी क्षमता के विकास के लिए पर्याप्त पूंजी होनी चाहिए ताकि बढ़ी हुई कीमतों पर भी कच्चा माल खरीदा जा सके और लंबे वेतन बिलों का भुगतान किया जा सके। इन क्षेत्रों में इसी को जिंस की संज्ञा दी जा सकती है।

वहीं कंसल्टेंसी या सेवा कारोबार (वित्तीय, कानूनी, सॉफ्टवेयर या इसी तरह के दूसरे कारोबारों) की अपनी मुश्किले हैं जो इससे भी जटिल हैं। इनकी समस्याएं मूलत: मानव संसाधन (एचआर) से जुड़ी हुई हैं।

कोई कंसल्टेंसी कुछ दिनों तक तो अपने ग्राहकों से अधिक पैसा वसूल कर या फिर तकनीक के जरिए अपनी उत्पादकता को बढ़ाकर बेहतर कारोबर कर सकती है। पर अगर इस कारोबार को लंबे समय तक मुनाफे की पटरी पर दौड़ाना है तो एक ही विकल्प है- कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना। किसी फैक्ट्री में काम करने वाले तकनीशियनों को प्रशिक्षण देने में 3 से 6 महीने तक का समय लगता है।

वहीं कंसल्टेंट बनने के लिए कम से कम 6 से 7 साल का कॉलेज अध्ययन और काम का तजुर्बा होना चाहिए। सॉफ्टवेयर से जुड़े कारोबार या गेम के कारोबार को शुरू करना अपेक्षाकृत आसान होता है। कम से कम शुरुआती दिनों में तो इसे खड़ा करना आसान ही होता है। अगर किसी व्यक्ति या किसी छोटे से टीम की ओर से लिखा गया प्रोग्राम चल निकलता है तो बड़े आराम से उसकी हजारों कॉपियां बेची जा सकती हैं।

मीडिया और मनोरंजन के कारोबार में भी सफलता पाना अपेक्षाकृत आसान है। एक फिल्म या गाने को वृहत स्तर पर दर्शकों तक पहुंचाने और उसे लोकप्रिय बनाने के लिए खास मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। एक हिट और एक फ्लॉप गाने को बनाने में कोई खास अंतर नहीं होता। दोनों को बनाने में एक समान लागत ही आती है। पर अगर किसी अखबार का सर्कुलेशन अच्छा होता है या फिर किसी कार्यक्रम की टीआरपी अच्छी होती है तो उसे ऊंची दर पर विज्ञापन जरूर मिलने लगते हैं।

कुछ कारोबार में शुरुआत में अधिक निवेश और बड़े पैमाने पर काम की जरूरत होती है। टेलिकॉम कारोबार के लिए जितने व्यापक स्तर पर इन्फ्रास्ट्रकचर की व्यवस्था की जाए उतना बेहतर होगा। वजह यह है कि जब ट्रैफिक बढ़ता है तो आपके पास बुनियादी संरचनाओं की कमी नहीं होने पर आप ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं। आपके ग्राहक चाहे 10 लाख हों या फिर 10,000 इससे आपके निवेश पर कुछ ही फर्क पड़ता है।

पर कई बार यह देखने को भी मिलता है कि स्केलेबल कारोबारों से मिलने वाले रिटर्न में अंतर हो। यानी कुछ कारोबारों  से अधिक तो कुछ से कम की आय हो। उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट को घरेलू पर्सनल कंप्यूटर में महारथ हासिल है तो गूगल का वेब विज्ञापन की दुनिया में ऊंचा नाम है। मार्केट शेयर और मुनाफे के लिहाज से इन दोनों को क्रमश: पहला और दूसरा स्थान हासिल है। इन दोनों की आय में भी अंतर स्वाभाविक है।

अगर आप मीडिया या फिर मनोरंजन क्षेत्र में शेयरों का कारोबार करना चाहते हैं तो आपके पास चुनने की अच्छी क्षमता होनी चाहिए। इस क्षेत्र के शेयरों के साथ एक दिक्कत यह है कि इसके शेयर जितनी तेजी से बढ़ते हैं उतनी ही तेजी से लुढ़कते भी हैं।

First Published : May 19, 2008 | 3:06 AM IST