अगर देखा जाए तो घोड़ों की रेस और निवेश कमोबेश एक जैसे हैं। दोनों की कई प्रक्रियाएं एक समान हैं।
जिस तरह एक घुड़दौड़ के विजेता के बारे में कयास लगाए जाते हैं उसी तरह निवेश की प्रक्रिया में किसी उद्योग के सबसे दमदार खिलाड़ी का अनुमान लगाया जाता है।
दोनों ही मामलों में विश्लेषक इसके स्वरूप और स्थानीय हालातों का छानबीन करते हैं। अगर घुड़दौड़ की बात करें तो उसमें घोड़े का पूर्व प्रदर्शन, उसके प्रशिक्षक और जॉकी का रिकार्ड और प्रतिष्ठा वगैरह।
इसी तरह एक निवेशक जब किसी कंपनी में निवेश करने चलता है तो वहृ कंपनी का कारोबार, उसका लाभ स्तर, विकास दर, प्रबंधन का रिकॉर्ड और सरकारी नीतियां वगैरह जानने समझने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया का दूसरा पायदान यानी मूल्यांकन भी काफी हद तक दोनों में समान है।
मान लीजिए अगर एक पंटर को लगता है कि रेस नंबर 3 में 1 नंबर वाला घोड़ा जीतेगा तब भी वह इस पर सट्टा नहीं लगाएगा अगर अनुमानों उसकी राय से मेल नहीं खाते। इसी आधार पर निवेशक भी किसी बड़ी कंपनी में हाथ डालने से हिचकिचा सकते हैं।
रेस में एक तीसरी प्रक्रिया भी होती है जो बहुत हद तक किसी कंपनी के तकनीकी विश्लेषण से जुड़ी है। तकनीकी विश्लेषक एंट्री और एक्जिट के बेहतर बिंदुओं की जानकारी के लिए पैसे को आधार बनाता है। इसी तरह एक पंटर सट्टे में आ रहे पैसों व अनुमानों पर उसके प्रभाव पर नजर रखता है और सबसे बेहतर अनुमान पर सट्टा खेलता है। इस तीन स्तरों वाली प्रक्रिया में पहला और तीसरा स्तर व्याख्यात्मक है।
अगर आप देश के अनेक विश्लेषकों को एक ही आंकड़े दे तो वह उसी आधार बाजार के अलग अलग कद्दावरों के नाम गिना देंगे। एक ही कीमत स्तर वाले चार्ट देखने पर भी विश्लेषकों का अनुमान अलग होगा। इस व्यख्यात्मकता की वजह यह है कि एक ही कीमत पर खरीदने और बेचने वाले बहुतेरे हैं। मूल्यांकन भले ही व्याख्यात्मक है लेकिन यह निवेश प्रक्रिया का सबसे वस्तुनिष्ठ पहलू है।
सट्टेबाजी की प्रक्रिया में यह पूरी तरह जोखिम और लाभ के स्तर पर काम करता है। शर्त हारने पर सारा पैसा डूब जाएगा लेकिन अनुमान पुख्ता होने की स्थिति में फायदा कई गुना बढ़ेगा। शेयरों का मूल्यांकन हालांकि उतना साफ तौर पर तो नहीं किया जा सकता लेकिन बहुत हद तक वह भी जोखिम और लाभ का ही खेल है।
एक उच्च मूल्यांकित कंपनी भी जोखिम रहित लाभ या इंडेक्स रिटर्न बेंचमार्क के बराबर लाभ नहीं कमा सकती। यही वजह है कि निवेशक लाभांश, लो प्राइस बुक वैल्यू और कम कीमत पर आय जैसी बातों की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं। इन आधारों पर वैल्युएशन जितना कम होगा लाभ कमाने की संभावना उतनी ज्यादा होगी।
फंडामेंटल सूचकांक का नया कॉन्सेप्ट वैल्युएशन की तस्वीर को स्पष्ट करने का एक कारगर तरीका है। फंडामेंटल सूचकांक (एफआई) को तैयार करने में केवल बैलेंस शीट डाटा जैसे कि टर्नओवर, नकद मुनाफा, बुक वैल्यू और लाभांश का ध्यान रखा जाता है। इसमें कीमतों को शामिल नहीं किया जाता।
अपने प्रकृति के अनुकूल एफआई हाई वैल्यू के छोटे कारोबार की तुलना में लो वैल्यू के मुनाफे वाले कारोबार को तवज्जो देती है। अगर बाजार ऐसे बड़े कारोबारों को कमतर आंकती है तो ऐसी स्थिति में ज्यादा रिटर्न की संभावना बनती है।फंडामेंटल सूचकांक पर नजर रखने वाली रिसर्च एसोसिएट्स की ओर से किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि ऐसे एफआई ने सामान्य मार्केट कैप इंडेक्स सूचकांक रिटर्न पर ठोस प्रीमियम कमाया है।
वैल्युएशन का अनुमान ज्ञात करने के लिए फंडामेंटल सूचकांक एक आसान सा तरीका है। एक आधार तारीख बना लें। उस तारीख पर किसी बड़े सूचकांक के लिए शेयरों का बैलेंस शीट डाटा तैयार कर लें। हर तिमाही में इसे अपडेट करते रहें।
ऐसे निवेशक जो एफआई का पालन करते हैं उन्हें एर्फआई की ओर से सुझाए गए शेयर ही खरीदने चाहिए। सामान्य बाजार पूंजीकरण का हाल देखते हुए इन शेयरों की खरीदारी उचित नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि एफआई ट्रैकर बाजार का हाल देखते हुए ही अपने अनुमानों औैर सुझावों को बदलता रहता है।
हालांकि यह दीगर बात है कि एफआई को लेकर बुद्धिजीवियों में हमेशा से तकरार होता रहा है। जॉन बोगल औैर बर्टन मैलकील का मानना है कि एफआई के जरिए जंबे समय तक अच्छा मुनाफा पाते रहना मुमकिन नहीं है। कुछ का मानना है कि एफआई ट्रैकर्स अतिरिक्त मुनाफे को अपनी झोली में डाल लेंगे। वहीं कुछ विश्लेषकों का मानना है कि एफआई ट्रैफीकिंग एक सरल मशीनीकृत प्रक्रिया है और इसमें किसी तरीके की दखल की कोई जरूरत नहीं है।