निजी क्षेत्र के बैंक बोर्ड के सदस्यों ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शीर्ष अधिकारियों से बोर्ड पर काम के बोझ को कम करने पर विचार करने का आग्रह किया है। असल में बोर्ड को लगता है कि बहुत सारे मुद्दे हैं जो मंजूरी के लिए बोर्ड के पास जाते हैं और कई बार स्थिति बेकाबू हो जाती है।
निजी क्षेत्र के बैंक बोर्डों के निदेशकों ने ‘साउंड बोर्ड्स के माध्यम से परिवर्तनकारी प्रशासन’ विषय पर एक सम्मेलन में बैंकिंग नियामक से यह
आग्रह किया। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास, डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जे और एम राजेश्वर राव तथा केंद्रीय बैंक के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस सम्मेलन में शिरकत की।
निजी क्षेत्र के बैंक के एक बोर्ड सदस्य ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले एजेंडे पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। यह असहनीय होता जा रहा है क्योंकि काफी सारी चीजें अनुमोदन के लिए बोर्ड के पास जाती हैं।’
नियामक ने एक सुदृढ़ संचालन ढांचा बनाए रखने की जिम्मेदारी बैंकों के बोर्डों पर डाली है। सम्मेलन को संबोधित करते हुए शक्तिकांत दास ने संभावित चुनौतियों की पहचान करने और उनसे निपटने के लिए बोर्डों को सक्रिय नजरिया अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
पिछले साल नियामक ने लघु वित्त बैंकों सहित निजी बैंकों के बोर्ड में कम से कम दो पूर्णकालिक निदेशकों को नियुक्त करना अनिवार्य कर दिया था। अधिकतर निजी बैंकों ने मानक का अनुपालन कर लिया है।
सम्मेलन में उपस्थित बैंकरों के अनुसार साइबर सुरक्षा नियामक के लिए अभी भी बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। आरबीआई ने बैंकों से साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करने के लिए कहा है। एक अन्य बैंकर ने कहा, ‘नियामक ने बैंकों से कहा कि वे आउटसोर्स संस्थाओं पर नजर रखें ताकि वे जोखिम का कारण न बनें।’
सम्मेलन में निजी क्षेत्र के बैंकों के चेयरमैन और प्रबंध निदेशकों तथा मुख्य कार्याधिकारियों सहित 200 से ज्यादा निदेशकों ने हिस्सा लिया। अपेक्षित ऋण हानि ढांचे के मसले पर बैंकरों ने कहा कि आरबीआई ने संकेत दिया है कि इस पर जल्द ही मसौदा मानदंड आएंगे और उस पर प्रतिक्रिया के आधार पर अंतिम दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। जनवरी 2023 में इस पर परिचर्चा पत्र जारी किया गया था और पिछले साल अक्टूबर में बाहरी कार्यसमूह का गठन किया गया था।