योजना आयोग के उपाध्यक्ष और सरकारी की आर्थिक फौज के प्रमुख महारथी मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने महंगाई के खिलाफ लड़ाई में किसी भी सूरत में जीत का ऐलान कर दिया।
जीत की उनकी इस जिद में सबसे पहले निशाने पर लिया उन्होंने इस्पात कंपनियों को, जिन्हें उन्होंने साफ चेताया कि अगर इस्पात कंपनियों ने कीमतें नहीं घटाईं तो सरकार का प्रतिस्पर्धा आयोग उनके खिलाफ कार्रवाई करेगा। हालांकि इसी मौके पर उन्होंने महंगाई की आग में घी डालने का आरोप झेल रहे वायदा बाजार को साफ बरी कर दिया।
अहलुवालिया ने एक सेमिनार में कहा- अगर इस्पात कंपनियां कीमतें घटाएंगी तो यह उनके ही हित में होगा। वरना प्रतिस्पर्धा आयोग उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। इस साल इस्पात की कीमतों में भारी वृध्दि की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि इस्पात कंपनियां बढ़ती मांग का फायदा उठाने के लिए कीमतें बढ़ाकर बाजार का दोहन कर रही हैं। यही नहीं, इस्पात कंपनियों ने सभी सीमाओं को लांघते हुए कीमतें बढ़ाई हैं।
गौरतलब है कि पिछले एक साल में इस्पात की कीमतें करीब 50 फीसदी तक बढ़ गई हैं। थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर में करीब एक चौथाई हिस्सेदारी रखने वाले इस्पात की कीमतें बढ़ने से इस समस्या में जबदस्त इजाफा हुआ है। सीमेंट की कीमतें पिछले साल के मुकाबले उतनी नहीं बढ़ी हैं।
वायदा बाजार को क्लीन चिट : अहलूवालिया ने महंगाई के लिए जिम्मेदार माने जा रहे वायदा बाजार को क्लीन चिट दे दी। वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाने की वामदलों और अन्य पार्टियों की मांग के बीच अहलूवालिया ने कहा कि बढ़ती कीमतों का इस कारोबार से संबंध नहीं है।
अभिजीत सेन समिति इस पूरे मुद्दे का अध्ययन कर रही है। उन्होंने कहा कि कुछ जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगने के बावजूद उनकी कीमतें बढ़ी हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में तेजी का दौर है। खतरा तब पैदा होता है, जब वायदा बाजार से छेड़छाड़ की जाती है।
निर्यात पर लंबे समय तक पाबंदी नहीं: अहलूवालिया ने कहा कि कुछ जिंसों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना दीर्घकालिक रणनीति नहीं है बल्कि यह तो बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण लगाने की अल्पकालिक कोशिश है। परिस्थिति विशेष में निर्यात आवश्यक हो जाता है। सरकार ने गैर बासमती चावल, गेहूं, दाल और खाद्य तेलों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।