भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को चेतावनी दी कि वैश्विक महामारी के दोबारा बढऩे से देश में मुद्रास्फीति के दबाव की वापसी हो सकती है। आरबीआई ने अप्रैल के बुलेटिन में अर्थव्यवस्था की रिपोर्ट में कहा कि अगर समय रहते नहीं रोका गया, तो कोविड-19 के दोबारा बढऩे से आपूर्ति शृंखलाओं में दीर्घकालिक प्रतिबंध और अवरोधों का जोखिम है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति दबाव बन सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक महामारी संबंधी प्रोटोकॉल, तीव्र टीकाकरण, अस्पताल और सहायक क्षमता में तेजी लाना और व्यापक आर्थिक तथा वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और स्थायी विकास पर महामारी के बाद दृढ़तापूर्वक ध्यान केंद्रित करना भविष्य की राह है।
दुनिया में वैक्सीन कवरेज धीरे-धीरे और असमान गति से बढ़ रही है। विशेष रूप से भारत के संबंध में अगस्त के अंत तक 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण के लक्ष्य के लिए प्रति दिन औसतन 35 लाख इंजेक्शन लगाए जाने की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान गति से लगभग 13 प्रतिशत अधिक है।
अलबत्ता सरकार ने अब 18 वर्ष से ऊपर वाले लोगों को टीका लगाने का फैसला किया है और मॉनसून अच्छा रहने की उम्मीद है। आरबीआई ने कहा कि आगे चलकर अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा शगुन होना चाहिए।
आरबीआई ने अपने जी-सेक अधिग्रहण कार्यक्रम या जी-एसएपी के जरिये नए क्षेत्र में कमद रखा है, क्योंकिउसने पहली बार एक निर्दिष्ट अवधि में सरकारी प्रतिभूतियों की निर्दिष्ट राशि के अधिग्रहण के लिए प्रतिबंद्धता दिखाई है। आरबीआई इस कार्यक्रम के तहत जून तिमाही में एक लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड द्वितीयक बाजार से खरीदेगा और आने वाल तिमाहियों के दौरान और अधिक खरीद होगी।
आरबीआई ने कहा कि यह कार्यक्रम घाटे का मुद्रीकरण नहीं है, बल्कि यह खुले बाजार के परिचालन से अलग है। फिर भी परिसंपत्तियों के बुलबुले, मुद्रा अवमूल्यन और इसके साथ जुड़ी पूंजी के संबंध में जोखिम रहता है, लेकिन शेष जोखिम जी-सैप 1.0 के पक्ष में है। रिजर्व बैंक ने उम्मीद जताई है कि जी-सैप मूल सिद्धांतों के साथ बाहर और ऑफसाइड कारोबारी स्थिति के मामले में तनाव कम करेगा। वहीं केंद्रीय बैंक ने यह भी सुझाव दिया है कि वह बहुत जल्दी प्रोत्साहन वापस लेने की जल्दबाजी में नहीं है। महंगाई दर मांग के दबाव को लेकर कम संवेदनशील है, जैसा पहले डर था, वहीं केंद्रीय बैंक महामारी के दौर में वृद्धि की ओर कम ध्यान रखेगा, क्योंकि महंगाई दर अभी भी बढ़ रही है।
इसमें कहा गया है, ‘लेकिन जब बाजार में भरोसा कायम नहीं होता और विपरीत दांव होते हैं तो मौद्रिक नीति लंबे समय तक ढीली नहीं रखी जा सकती है।’
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में आर्थिक गतिविधियां कोविड-19 के नए हमले के खिलाफ मजबूती से चल रही हैं। इसमें कहा गया है, ‘आने वाले कमजोर आंकड़ों पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, जो कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रतिबंधों की वजह से है। अभी यह उल्लेखनीय है कि धारणा के संकेतकों में सुधार है। आमने सामने पडऩे वाले क्षेत्रों के अलावा, गतिविधियों के संकेतक मार्च में स्थिर बने रहे और मजबूत गतिविधियों के कारण महामारी के पहले के स्तर पर पहुंच गए।’