भारतीय कंपनी जगत इनपुट के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर बना हुआ है। सूचीबद्ध भारतीय फर्मों ने वस्तुओं और सेवाओं के आयात के लिए पिछले साल की तुलना में 35.5 प्रतिशत अधिक विदेशी मुद्रा राजस्व खर्च किया है, जबकि वित्त वर्ष 23 में इन कंपनियों ने शुद्ध बिक्री में पिछले साल के मुकाबले 26.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी।
इसके परिणामस्वरूप बैंकों और वित्तीय फर्मों को छोड़कर बिजनेस स्टैंडर्ड के नमूने में शामिल 795 सूचीबद्ध कंपनियों की शुद्ध बिक्री और विदेशी मुद्रा खर्च का अनुपात वित्त वर्ष 23 में आठ साल के शीर्ष स्तर 30.6 प्रतिशत पर पहुंच गया, जो एक साल पहले 28.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 16 में 27.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर था
इसके विपरीत पिछले वित्त वर्ष में निर्यात के जरिये इन कंपनियों द्वारा अर्जित किया गया संयुक्त विदेशी मुद्रा राजस्व इससे पिछले साल की तुलना में 13.7 प्रतिशत अधिक रहा, जिसमें राजस्व वृद्धि की तुलना में बहुत धीमी रफ्तार से इजाफा हुआ था। इसके परिणामस्वरूप कंपनियों की शुद्ध बिक्री में निर्यात का योगदान वित्त वर्ष 23 में घटकर 11 साल के निचले स्तर 19.2 प्रतिशत पर आ गया। एक साल पहले यह 21.3 प्रतिशत था।
नतीजतन भारतीय कंपनी जगत के विदेशी मुद्रा व्यय और विदेशी मुद्रा राजस्व के बीच का अंतर वित्त वर्ष 23 में उछलकर 8.81 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड शीर्ष स्तर पर पहुंच गया, जो पिछले वित्त वर्ष में इन कंपनियों की शुद्ध बिक्री के 11.4 प्रतिशत के बराबर था। नमूने में शामिल इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 23 में 14.82 लाख करोड़ रुपये का संयुक्त विदेशी मुद्रा राजस्व दर्ज किया था, जो एक साल पहले 13.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक था।
इसी अवधि के दौरान इन कंपनियों ने पिछले वित्त वर्ष में संयुक्त रूप से 23.63 लाख करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा व्यय दर्ज किया, जो एक साल पहले के 17.45 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 23 में उनका विदेशी मुद्रा राजस्व और विदेशी मुद्रा व्यय अनुपात गिरकर 62.7 प्रतिशत हो गया, जो वित्त वर्ष 24 के बाद से सबसे कम है।
पिछले पांच वर्षों के दौरान शुद्ध बिक्री में 12.3 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के मुकाबले इन कंपनियों की संयुक्त विदेशी मुद्रा आय में 10.9 प्रतिशत सीएजीआर की दर से इजाफा हुआ है। इस अवधि के दौरान इन कंपनियों का विदेशी मुद्रा व्यय 14.4 प्रतिशत सीएजीआर की दर से बढ़ा है।
अगर टीसीएस और इन्फोसिस जैसी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवा कंपनियों तथा रिलायंस इंडस्ट्रीज और इंडियन ऑयल कंपनी जैसी तेल रिफाइनिंग की प्रमुख कंपनियों को नमूने में शामिल कंपनियों से बाहर रखा जाए, तो विदेशी मुद्रा आय और विदेशी मुद्रा व्यय के बीच का अंतर ज्यादा हो जाता है। आईटी क्षेत्र विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। भारतीय उद्योग जगत के निर्यात राजस्व में इसकी लगभग 35 प्रतिशत हिस्सेदारी है। तेल कंपनियां ज्यादा बड़ी आयातक हैं। आयात में इनकी लगभग 60 प्रतिशत और निर्यात में 31 प्रतिशत हिस्सेदारी रहती है।
आईटी और तेल एवं गैस क्षेत्र को छोड़कर 744 कंपनियों का संयुक्त विदेशी मुद्रा राजस्व पिछले साल की तुलना में पांच प्रतिशत कम होकर 5.08 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले वित्त वर्ष में उनका विदेशी मुद्रा खर्च उससे पिछले साल की तुलना में 19.8 प्रतिशत अधिक रहा। परिणामस्वरूप इन कंपनियों का आयात-निर्यात अनुपात वित्त वर्ष 23 में घटकर 72.5 प्रतिशत रह गया, जो वित्त वर्ष 13 के बाद से सबसे कम है।