भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे फाइनेंशियल इंक्लूसन कार्यक्रम में चीन भी शामिल होना चाहता है। चीन की निगाहें भारत के उन ग्रामीण इलाकों पर है, जहां लाखों लोगों के लिए वित्तीय योजनाएं शुरू होनी हैं।
इस बाबत चीन के पीपुल्स बैंक और चाइनीज बैंक असोसिएशएन भारत के प्राथमिक क्षेत्र को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस संबंध में इंडियन बैंक असोसिएशन (आईबीए) का एक शिष्टमंडल चीन भी गया था,जहां उन्होनें चीन के सरकारी अधिकारियों और बैंकरों से समाज के पिछडे, क़म सुविधा प्राप्त लोगों से किस प्रकार कारोबार किया जाए के बारे में विचार-विमर्श किया।
बाद में चीन यात्रा का जिक्र करते हुए आईबीए शिष्टमंडल के एक अधिकारी ने बताया कि हमने चीन के बैंकिंग प्रोफेशनल्स से बात की और बताया कि आपके औसत आय वाले लोगों की ज्यादा मौजूदगी आपके गांवों में है,जो भारत के संगत लोगों के मुकाबले कारोबार के लिहाज से बेहतर स्थिति में हैं। लेकिन चीन के बैंकिंग काम-काज की बात की जाए तो इसके मुकाबले भारत के बैंक ज्यादा प्रभावी तरीके से काम को अंजाम देते हैं।
खासकर भारतीय बैंकों की ग्रामीण इलाकों में पहुंच कहीं बेहतर और प्रभावी है। इसके अलावा स्वंयसेवी संगठन,फ्रिल खातों के खोलने के काम पर भी ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। आईबीए अधिकारी आगे कहते हैं कि चीन के बैंक अपने बैंकों में सूचना तकनीक का उपयोग कैसे करें,के बारे में भी जानना चाहेंगे।
उधर,रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक 29 लाख से ज्यादा स्वंसेवी संगठनों को बैंक संबंधित क्रेडिट फ्लो से लिंक कर दिया गया है।मार्च 2007 तक कुल 18,000 करोड़ रूपये के क्रेडिट फ्लो से इन संगठनों को जोड़ा जा चुका है। इसके अलावा कुल 120 लाख नो फ्रिल खाते खोले जा चुके हैं। हालांकि,चीन भी भारत की भांति महंगाई और विकास संबंधित समस्याओं से जूझ रहा है।