विश्व व्यापार वार्ता के बारे में मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत और अन्य विकासशील देशों में कृषि और उद्योग क्षेत्रों को खोले जाने के बारे में मसौदा प्रस्तावों पर चर्चा की जाएगी।
मसौदा प्रस्ताव इसी महीने विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों को भेजा जाना है।अगर सब कुछ सही रहा तो व्यापार मंत्री डब्ल्यूटीओ के मुख्यालय जिनेवा में मई के बीच में मिलेंगे और इस मुद्दों और प्रस्तावों पर बातचीत के जरिये इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।
इस बहुपक्षीय व्यापार समझौते के तहत टैरिफ की बाधाओं को खत्म करना और सारे देशों में कृषि और औद्योगिक उत्पादों की ज्यादा से ज्यादा आवाजाही सुनिश्चित करना शामिल है।
एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि कृषि और औद्योगिक मुद्दों पर यथासंभव बात की जाएगी और इसके बाद मंत्रियों का एक समूह इस मुद्दे के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात करेगा। इस बातचीत के बाद जिन मुद्दे पर बात नही हो पाएगी उसे ये अधिकारी अपनी आगे की बातचीत में हल करने की कोशिश करेंगे।
इससे पहले जो फरवरी में कृषि पर आधारित प्रस्ताव जारी किए गए थे, उनमें से 130 को इसमें शामिल किया जा रहा है जिसमें विशिष्ट उत्पाद, विशिष्ट सुरक्षा तंत्र, विनिर्माण सामग्री और स्विस फॉर्मूले पर भी बात होनी है। स्विस फॉर्मूले के तहत औद्योगिक उत्पादों पर करों में कटौती का उल्लेख है।
सूत्रों का मानना है कि बढ़ती महंगाई के कारण कृषि मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देने का अनुमान है। अधिकारी ने बताया कि ये मुद्दा वार्ताकारों के दिमाग में रहेगा। पिछले कुछ सप्ताहों में अर्जेंटीना जैसे देश जो कृषि उत्पादों के मुख्य आयातक रहे हैं, ने आयात करना बंद कर दिया है। भारत भी महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए सस्ते दामों पर खाद्य सामग्रियों का आयात करने का विचार कर रहा है।
अधिकारी ने बताया कि भारत खाद्य सामग्रियों की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर कृषि उत्पादों पर सब्सिडी की भी बात कर सकता है। इसमें ऑस्ट्रेलिया में हो रहे खपत शैली में बदलाव , बायो ईंधन की उपज पर जोर आदि मुद्दे भी प्रमुख हैं। किसी भी देश को इन मुद्दे को डब्ल्यूटीओ में उठाने से पहले इसके हरेक पहलुओं पर गौर करना होता है।
भारत ने अनाज के बदले बायो ईंधनों की उपज को प्रोत्साहन देने की अमेरिकी नीति का पहले ही विरोध कर चुकी है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने हाल ही में कहा था कि ऐसा अनुमान है कि अमेरिका में अनाज उपजाने वाले जमीन के 20 प्रतिशत हिस्से पर बायो ईंधन उपजाया जा रहा है।
पूरे विश्व के परिप्रेक्ष्य में यह एक तरह का मूर्खतापूर्ण कदम है कि ईंधन को पाने के लिए उसे उपजाया जाए और लोग अनाज के लिए तरसे। अधिकारी ने बताया कि अमेरिका जो कृषि सब्सिडी देती है उसका लाभ बहुराष्ट्रीय कंपनियों को होता है और उससे उपभोक्ता को कोई विशेष लाभ नही पहुंच पाता है। इसलिए इस सब्सिडी के बावजूद दामों में कोई खास अंतर नजर नहीं आता है।