साल 2008 में झंडु फार्मास्युटिकल्स की अपनी हिस्सेदारी कोलकाता की इमामी को बेचने के बाद पारिख फैमिली (झंडु के पूर्व प्रवर्तक) अब दवा कारोबार से बाहर निकल रहे हैं। उन्होंने बल्क ड्रग फर्म जेडसीएल केमिकल्स की 80 फीसदी हिस्सेदारी 1,600 करोड़ रुपये में बेच दी।
प्राइवेट इक्विटी फर्म एडवेंट इंटरनैशनल 2,000 करोड़ रुपये में जेडसीएल की खरीद रही है। इस फर्म में मॉर्गन स्टैनली की करीब 19 फीसदी हिस्सेदारी है और वह इस सौदे से 390 करोड़ रुपये हासिल करेगी।
उद्योग के सूत्रों के मुताबिक, जेडसीएल का कारोबार वित्त वर्ष 2020 में 261 करोड़ रुपये का रहा और वह वित्त वर्ष 2021 की समाप्ति अनुमानित तौर पर 300 करोड़ रुपये के कारोबार से कर सकती है। सूत्रों ने कहा कि इस सौदे का मूल्यांकन वित्त वर्ष 2020 के एबिटा के 25 गुने और वित्त वर्ष 2021 के अनुमानित एबिटा के 14.2 गुने पर हुआ है।
जेडसीएल के कार्यकारी निदेशक निहार पारिख ने कहा, हमें मॉर्गन स्टैनली को बाहर निकलने का रास्ता देना था, ऐसे में हमने अपने बैंकर जेफरीज के साथ प्रक्रिया लॉन्च की। हमें महसूस हुआ कि निवेशक समुदाय के बीच इस फर्म को लेकर काफी दिलचस्पी है।
उन्होंने कहा, निजी बाजार इस एंटरप्राइजेज का मूल्यांकन सार्वजनिक बाजारों के समान कर रहा है। पारिख ने कहा, एक ही कारण से हम सार्वजनिक बाजार में उतरेंगे और वह होगा मूल्यांकन। हमने आकलन किया और डेल्टा बेहतर नहींं था। ऐसे में हमने सीधे इसकी बिक्री का फैसला लिया।
झंडु केमिकल्स के नाम से मशहूर जेडसीएल को इमामी से अजय पारिख ने 12.5 करोड़ रुपये में वापस खरीदा था और उसे अपने बेटे निहार के हवाले कर दिया था। बेल्जियम मेंं काम कर रहा 22 वर्षीय केमिकल इंजीनियर निहार भारत लौटा और नुकसान उठा रही फर्म का कार्यभार संभाल लिया, जिसका टर्नओवर करीब 30 करोड़ रुपये का था।
साल 2008 में इमामी ने इसके जबरिया अधिग्रहण के लिए बोली लगाई जब पारिख के सह-प्रवर्तक वैद्य ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी। इस अधिग्रहण को रोकने की कोशिश करने वाले पारिख ने अंतत: अपनी 40 फीसदी हिस्सेदारी 400 करोड़ रुपये में बेच दी।
निहार कहते हैं, मेरे 55 वर्षीय दादा ने बेल्जियम में मुझे फोन किया और कहा कि भविष्य के लिए उसकी क्या योजना है। उन्होंने कहा कि हम झंडु केमिकल्स खरीद सकते हैं और उसे उसके हवाले कर सकते हैं क्योंकि मेरा बैकग्राउंड केमिकल इंजीनियरिंग का था। मैंं लौट आया और शुरू में थोड़ी परेशानी हुई जब हमने फैमिली की तरफ से संचालित एंटरप्राइज का परिचालन शुरू किया।
निहार ने फर्म का पुनर्गठन किया, सन फार्मा, जाइडस, ल्यूपिन आदि अग्रणी दवा कंपनियों से प्रोफेशनल की नियुक्ति की और मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। पारिख ने कहा, हम एपीआई में उतरे और यूएसएफडीए की तरफ से अंकलेश्वर के संयंत्र को मंजूरी मिल गई। हमें लगा कि देसी बाजार की हिस्सेदारी के लिए दवा दिग्गजों से संघर्ष करने में मुश्किल होगी। ऐसे में हमने अपना ध्यान विदेश के विनियमित बाजारों के निर्यात पर केंद्रित किया।
साल 2008 में जेडसीएल के पास एक संयंत्र था और अब चार हैं और उसका 90 फीसदी राजस्व निर्यात से आता है। बढ़त के लिए फंडिंग शुरुआती तौर पर आंतरिक संग्रह और कुछ कर्ज से हुई।
साल 2016 में जेडसीएल ने प्राइवेट इक्विटी फर्म से रकम जुटाई, जहां मॉर्गन स्टैनली पीई एशिया ने 19 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 150 करोड़ रुपये निवेश किया और इस तरह से जेडसीएल का मूल्यांकन 750 करोड़ रुपये हो गया। अब जेडसीएल का मूल्यांकन 2000 करोड़ रुपये है। मॉर्गन स्टैनली का शुरुआती निवेश 2.6 गुना हो गया।
साल 2008 में मूल्यांकन 12.5 करोड़ रुपये था, जो 13 साल में 160 गुना बढ़ा। ऐसे में पारिख फैमिली की दूसरी पीढ़ी का अगला कदम क्या होगा?
निहार इस बारे में कुछ नहीं बताना चाहते, लेकिन उन्होंने कहा कि न्यूट्रास्युटिकल्स क्षेत्र उन्हें उत्साहित करता है। उन्होंने कहा, दवा ऐसा क्षेत्र है जिसके बारे में हम जानते हैं और हमने इसमें काम किया है। ऐसे में हम इस क्षेत्र में एक साथ कुछ करने की संभावना से इनकार नहीं करते।
अगला उद्यम अधिग्रहण से शुरू हो सकता है और जेडसीएल के बिजनेस टु बिजनेस मॉडल के बजाय बिजनेस टु कंज्यूमर मॉडल हो सकता है।
