देश के सबसे पुराने औद्योगिक इलाकों में से एक पुणे में टीका निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीटूयट ऑफ इंडिया के 50 साल पुराने संयंत्र ने कोविड-19 महामारी का प्रकोप फैलने के साथ ही खासी चर्चा बटोरनी शुरू कर दी थी और महामारी की रोकथाम के लिए विकसित कई टीकों की 3.2 अरब खुराकों की आपूर्ति का ठेका हासिल कर अपना डंका बजा दिया है।
हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी टीका उत्पादक कंपनी के लिए इतने बड़े पैमाने पर टीका खुराकों के उत्पादन का यह कोई पहला मामला नहीं है। यह अलग बात है कि उसे कोविड टीकों की 3.2 अरब खुराकों का जो उत्पादन करना है वह पिछले साल तैयार 1.5 अरब खुराकों के दोगुने से भी अधिक है।
अगर आंकड़ों के ही नजरिये से देखें तो दुनिया की अगर 70 फीसदी आबादी को कोविड के टीके लगाए जाने हैं तो करीब 5.4 अरब लोगों के लिए 11 अरब खुराकों की जरूरत होगी।
सीरम इंस्टीट्यूट के पुणे में हडपसर संयंत्र से कोविशील्ड (एजेडडी1222) टीके की 1 अरब खुराकें ब्रिटिश दवा कंपनी ऐस्ट्राजेनेका को और अमेरिकी दवा कंपनी नोवावैक्स को 2 अरब खुराकों की आपूर्ति की जाएगी।
सीरम इंस्टीट्यूट को बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से करीब 30 करोड़ डॉलर का जोखिम फंड मिला है जिसके तहत वह वैक्सीन एलायंस गावी को 3 डॉलर प्रति खुराक की तय कीमत पर 20 करोड़ खुराकों की आपूर्ति इन दोनों कंपनियों को करेगी। कोविड टीके को दुनिया के निर्धन देशों तक पहुंचाने में मदद के इरादे से गावी का गठन किया गया है।
सीरम के मुख्य कार्याधिकारी अदार पूनावाला ने पडपसर संयंत्र के क्षमता विस्तार पर 20 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश इस इरादे से किया था कि मध्य 2021 तक वह 2.5 अरब टीका खुराकों के उत्पादन की क्षमता हासिल कर सके। जब इस महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में लिया तो पूनावाला की यह पुख्ता राय थी कि लंबे समय तक लॉकडाउन करने से इसके संक्रमण पर काबू पाना मुमकिन नहीं होगा। उन्होंने कहा था कि दुनिया को जल्द से जल्द इस बीमारी की रोकथाम के लिए टीका बनाने की जरूरत है।
ऑक्सफर्ड-ऐस्ट्राजेनेका टीके का उत्पादन शुरू करने वाले लोगों में पूनावाला भी शामिल थे जिसे अब आपात इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है। पूनावाला कहते हैं कि यह निजी जोखिम पर टीका लगाने का मामला है।
इस टीके के क्लिनिकल परीक्षण के लिए पहले बैच का इस्तेमाल किया गया था और अब सीरम इंस्टीट्यूट के पास 5 करोड़ खुराकों का भंडार इक_ा हो चुका है। भारतीय औषधि नियामक से अंतिम अनुमति मिलने के साथ ही सीरम इंस्टीट्यूट इन खुराकों की आपूर्ति शुरू कर सकता है। वैसे अगले दौर के क्लिनिकल परीक्षण अभी जारी रहेंगे।
पूनावाला ने अपनी कंपनी को दूसरे टीका निर्माताओं से आगे रखने के लिए एक बड़ा जोखिम लिया था। लेकिन इसी की वजह से आज सीरम इंस्टीट्यूट के पास कई करोड़ खुराकों का अग्रिम भंडार मौजूद है और भारत में प्राथमिकता के आधार पर जनसंख्या के एक हिस्से को टीका लगाने की कवायद में यह एक लाभ वाली स्थिति है।
कोविशील्ड टीके को मंजूरी मिलने के बाद मिली व्यापक पहचान के बावजूद पूनावाला ने अपनी कंपनी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने से इनकार किया है। उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी स्वतंत्रता बाधित होगी क्योंकि तिमाही नतीजे जारी करने के दबाव में निर्णय प्रभावित होने लगेंगे।
कंपनी ने टीका उत्पादन के लिए कई भागीदारी कर एक और रणनीतिक कदम उठाया था। ऐस्ट्राजेनेका एवं नोवावैक्स के अलावा उसने कोडेजेनिक्स के साथ ही टीका दावेदार को लेकर एक करार किया था। इसके अलावा अंदरूनी स्तर पर वह बीसीजी टीके पर क्लिनिकल परीक्षण भी कर रही है।
कुछ लोगों को लग सकता है कि कोविड टीके के उत्पादन के लिए अपनी विनिर्माण क्षमता के एक हिस्से को अलग रख देना जोखिम-भरी रणनीति थी लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक सुरेश जाधव इससे इत्तफाक नहीं रखते हैं। वह कहते हैं कि कंपनी ने नए टीकों के उत्पादन के लिए अपने विस्तार योजना पर पहले से ही काम शुरू कर दिया था। सीरम इस समय करीब आधा दर्जन नए उत्पादों के विकास में लगा हुआ है। उत्पादन लाइसेंस मिलने में अमूमन 5-7 साल तक लग जाते हैं।
बहरहाल कोविड टीके की मांग बनी रहने पर सीरम इंस्टीट्यूट को अपनी क्षमता बढ़ाने की जरूरत होगी। वहीं कोविड टीके की मांग गिरने पर वह अतिरिक्त क्षमता का इस्तेमाल नए टीकों के उत्पादन में करेगा।
बीता दशक सीरम इंस्टीट्यूट के वैश्विक प्रसार का वक्त रहा है। वर्ष 2005-06 में 35 देशों में टीका आपूर्ति करने वाली यह कंपनी आज 150 देशों में अपने यहां तैयार टीके भेजती है। और कोविड टीके की आपूर्ति उसे नया मुकाम देगी।
