रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग की ऋण समाधान प्रक्रिया को संभावित निवेशकों से पांच अभिरुचि पत्र (ईओआई) प्राप्त हुए हैं। इसके लिए अभिरुचि पत्र जमा कराने की अंतिम तिथि शनिवार को खत्म हो गई। पूर्व में अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली इस कंपनी को इसी साल जनवरी में भारतीय लेनदारों ने ऋण समाधान के लिए भेजा था। लेनदारों ने कंपनी पर 15,000 करोड़ रुपये के बकाये का दावा किया है। इसमें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सबसे अधिक 2,538 करोड़ रुपये के बकाये का दावा किया है।
एक बैंकिंग सूत्र ने कहा, ‘संभावित निवेशकों की प्रतिक्रिया हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रही और इसलिए लेनदारों की समिति (सीओसी) अभिरुचि पत्र जमा कराने की अंतिम तिथि में एक महीने का विस्तार देने के संबंध में जल्द निर्णय लेगी।’ इस मामले के एक करीबी अन्य सूत्र ने कहा कि अमेरिकी फंड इंटरअप्स ने भी अभिरुचि पत्र जमा कराया है। अभिरुचि पत्र जमा कराने वालों में आर्सिल के अलावा डेनमार्क की कंपनी एपीएम, यूनाइटेड शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ रशिया और नेक्स्ट ऑर्बिट वेंचर्स शामिल हैं। एक बोलीदाता ने कहा कि वह एनसीएलटी में बैंकों द्वारा दूसरी बार ईओआई आमंत्रित करने का विरोध करेगी।
इंटरअप्स ने अपने आवेदन में दावा किया है कि उसके पास 10.8 अरब डॉलर की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां और सक्रिय भागीदारी है। उसने कहा है कि रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग लिमिटेड के अधिग्रहण और समाधान प्रक्रिया में भाग लेने और बोली लगाने के लिए उसके पास पर्याप्त नकदी एवं संसाधन उपलब्ध है। कंपनी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक और एआईएफ मार्ग से रिलायंस नेवल में निवेश करने की योजना बना रही है। इंटरअप्स लवासा कॉरपोरेशन, एशिया कलर कोटेड इस्पात लिमिटेड और एयर इंडिया के अधिग्रहण की दौड़ में भी शामिल है। बैंकरों ने कहा कि कोरोनावायरस वैश्विक महामारी के कारण रिलायंस नेवल की बिक्री पेशकश को संभावित निवेशकों से कमजोर प्रतिक्रिया मिली है। गुजरात के दक्षिणी तट पर कंपनी का एक शिपयार्ड है। एक बैंकर ने कहा, ‘हरेक शीर्ष भारतीय कंपनी कम से कम चालू वित्त वर्ष के अंत तक नकदी संरक्षित करना चाहती है और वह फिलहाल निवेश से परहेज कर रही है। इसके अलावा निजी शिपयार्ड को भारत सरकार से मिलने वाले ऑर्डर का प्रवाह घटकर शून्य हो चुका है।
